रचनाकारी गौण हुई, लिखना-पढ़ना भी भूल गये,
ब्लागिंग के झूले में टिप्पणी करने वाले झूल गये।
तरकश में से तीर नही, अब शब्द निकलते हैं,
दूर-दूर हैं, दूर-दूर से, आग उगलते हैं।
शब्दों की कुश्ती लड़ने को, व्याकुल लगते है,
शब्द-शब्द से अड़ने को, अब आकुल लगते हैं।
पहले रचना आयी, अब वन्दना मचलती है,
उच्चारण के दंगल में, आँधी सी चलती है।
मुझे अलग से दंगल का अब, ब्लॉग बनाना होगा,
दाँव-पेंच के साथ, चुटीले शब्दों को लाना होगा।
नयी विधा के साथ सभी को खुला निमन्त्रण है,
आओ लड़ो ब्लॉगरों, मेरा यह आमन्त्रण है।
शाश्त्री जी क्यों नाहक दंगल करवा रहे हैं? वैसे ही माहोल आजकल खराब है.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
हा हा--- हाहा। खूब लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंदाँव पेंच सीखे सभी अपने ही अनुकूल।
संभव हो तो रोक दें ये दंगल स्कूल।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सार्थक रचना के लिए बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएं---
तकनीक दृष्टा
ये ब्लोगिंग हैं
जवाब देंहटाएंकोई साहितिक पत्रिका नहीं
आज २० रुपये मे खरीदी और
कल २ रुपए किलो मे बेची
ब्लोगिंग लड़ाई नहीं
दंगल भी नहीं
केवल और केवल
ब्लोगिंग हैं
यानी स्वंत्रता अभिव्यक्ति की
महसूसने को लिख देना ही
ब्लोगिंग हैं
आप को नहीं पसंद आया
तो ब्लोगिंग करना ही
आप को न भाया
पत्रिका आप को अगर चलानी हैं
तो वेबसाइट अपनी बनानी होगी
और आम कमेन्ट पर पाबंदी भी लगानी होगी
गूगल की फ्री सेवा हैं शास्त्री जी
इस पर अधिकार सब का हैं
बस अपशब्दों से परहेज रखना
बाकी शब्दों का खेला हैं
खेल सको तो खेल लो
निमंत्रण आप का था इसी लिये
आयी वरना ब्लॉग और भी हैं
ज़माने मे जहाँ साहित्य के
अलावा भी बहुत कुछ हैं
जो नया हैं
जिसको समझना हैं
रचना सिंह जी!
जवाब देंहटाएंआप इतनी नाराज क्यों हैं?
आप मान रही हैं कि ब्लागिंग में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है तो फिर आपके टिप्पणी कर देने से मैं लिखना तो नही छोड़ सकता हूँ।
आपको आजादी है टिप्पणी करने की तो आप अपने मनोभावों प्रकट करती रहें।
मैं आपकी टिप्पणी हटाऊँगा नही । मैंने अपना ब्लाग सार्वज्निक किया हुआ है और उस पर माडरेशन भी नही लगाया हुआ है तो मुझे आपको टिप्पणी करने से रोकने का कोई अधिकार ही नही है। जब तक कि उसमें कोई अश्लील शब्द न हो।
मैं जानता हूँ आप एक विदूषी ब्लागर हैं। आपका स्वागत है।
यदि मुझे आपके ब्लाग पर कोई प्रविष्टी अच्छी लगेगी तो मैं उस पर निश्चित रूप से टिप्पणी करूँगा।
आपको पसन्द न आये तो आप मेरी टिप्पणी निश्चित रूप से हटा सकती हैं। क्योंकि टिप्पणी हटाने का अधिकार प्रत्येक ब्लाग-स्वामी के पास सुरक्षित होता है।
बेबाक टिप्पणी करने के लिए आपका धन्यवाद।
बहुत जोश भरी रचना है::))
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी क्या बात है!! बहुत खूब रचना है.
जवाब देंहटाएंअरे, वाह!
जवाब देंहटाएंरचना सिंह जी तो
बहुत अच्छी हिंदी टंकित कर लेती हैं!
कुछ समय पहले मुझे
आशा की एक किरण दिखाई दी थी,
मुझे ख़ुशी है कि
इतने कम समय में ही वह
एक नए ऊर्जामय पुंज में बदल गई है!
बहुत-बहुत बधाई!
ऐसा आमंत्रण न ही भेंजे, भूड़ लग जायेगी बरातियों की तो संभाल न पायेंगे. :)
जवाब देंहटाएंआमंत्रण का तहे दिल से स्वागत.
जवाब देंहटाएंकम्पटीशन का जमाना है तो ब्लागरों को इससे क्यों परहेज़.
पहले खेल भी मैत्री- खेल हुआ करते थे, अब सट्टेबाजी और न जाने क्या क्या हो गयी,
जमाना और ज़माने के अर्थ पिपासू न जाने क्या -क्या करवा दें.
आपका प्रथम दंगल कब हो रहा है, प्रथम है तो मैत्री खेल सरीका ही होगा, बहुत हुआ तो महामूर्ख सम्मलेन सा ही होगा, जैसा भी होगा, आजमाने से क्या गुरेज़....................
चन्द्र मोहन गुप्त
mayank ji agar aap ko lagtaa haen maen naaraj hun to yae aap ka bhrm maatr haen
जवाब देंहटाएंaap ne apni pravisti mae mera naam liya aur mae jwaab daena chahtee so diyaa
रावेंद्रकुमार रवि
insaan ko jitni chaahdaer ho paer utnae hi pasaarne chahiyae
kam kahaey ko jyaada samjhey
ये कहाँ आ पहुँचे हैं आप ! जैसा कि आपने लिखा ' रचनाकारी गौण हुई , लिखना-पढ़ना भी भूल गये ', इस दंगल में पड़ कर क्या हासिल होना है ? ये हम पर है कि हम अपनी संवेदनाओं को सृजन का रूप देते हैं या भटकन का | हम ब्लोगिंग क्यों करते हैं इसीलिये न कि हमारी रचनाएं बिना किसी प्रकाशक की मान मनोवल के प्रकाश में आ सकें , निसंदेह ये हमारी आय का साधन नहीं हैं यानि ये हमारा शौक है और खुद-बखुद हो जाता है , और शौक (हौबी ) को आप अपना पूरा दिन रात नहीं दे सकते , पहली प्राथमिकता आपका परिवार , आपकी आजीविका से जुड़े लोग ही हो सकते हैं , होने भी चाहिए | बेशक हम ब्लोगिंग वाले मित्रों को उनकी रचनाओं के माध्यम से बहुत करीब से जान जाते हैं , फिर भी वो हमारे भौतिक जगत के साथी तो नहीं हैं न , इसलिए ये बातें हमें हिला सकें इस सीमा तक नहीं होनी चाहिए | अपनी संवेदनाओं को सकारात्मक दिशा दीजिये , हौसला बढ़ाने वाली टिप्पणियों पर गौर फरमायें , जब थोड़ी तेज हवा चले तो दिए को सब्र का प्याला पी कर दम लगाना पड़ता है |
जवाब देंहटाएंमैं पूरी तरह से नहीं जानती कि आपने किन वजहों से ये पोस्ट लिखी......फिर भी इतना कहूँगी कि दूसरे की वजहों को भी जान सकने की दृष्टि हम जरुर रखें ....किसी भी तरह से किसी के मन को चोट न पहुंचायें |
माफ़ कीजियेगा , ज्यादा कह दिया है , जानती हूँ आप माफ़ भी करेंगे और अपने मन को शान्त भी रखेंगे |
waah waah shastri ji
जवाब देंहटाएंaapne to ek dangal bana hi diya.
vaise aapka prayas sarahniya hai.
aapne ladne walon ke liye ek akhada bana diya.
vaise hum sab yahan apne dilon ki baat kahne aate hain isse jyada ki ummeed nhi karte.bas itna hi duniya se chahte hain ki jiyo aur jeene do.
aapko kuch bura lage to jaroor kahiye usse parhej nahi hain bus itni gujarish hai ki jisse kisi bhi blogger ko problem ho to uske blog par hi jakar uske baare mein kahe na ki kisi ko sarvjanik roop se badnaam kare.isse aapsi katuta nhi badhegi aur ek swasth tarike se vicharon ka aadan pradan ho sakega .
vaise bhi kiske pass itna time hai ki apne ghar pariwar ko chodkar in baton par dhyan de..........ye to ek madhyam hai khud ko abhivyakt karne ka.ise sirf abhivyakti ka madhyam hi rahne diya jaaye.
shastri ji
aapka prayas bahut achcha hai aur sabke liye ek sabak bhi hai.sabko sikhna chahiye.
ये क्या दंगल वंगल खिला रहे हो? आप दोनो तीनों बुजुर्ग लोग हैं आपस की भिडंत को सार्वजनिक काहे कर रहे हैं? तरीके से रहिये. यहां सब शरीफ़ लोग हैं.
जवाब देंहटाएंmubaarak ho.
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंअब इतनी अच्छी-अच्छी बातें क्या ऐश्वर्या जी के मुँह से निकल रही हैं?
जब अपने ब्लॉग पर सार्वजनिक रूप से - "निर्णय करें ................क्या मुझे लिखना छोड़ देना चाहिए?" - यह पोस्ट प्रकाशित की थी, तब यह समझ कहाँ रखी थी?
यह सब तिल का ताड़ बनाने से पहले सोचा जाता, तो कितना अच्छा होता! क्यों इतना समय बरबाद होता?
क्रमश: ... ... .
अति सुन्दर रचना,
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