(चित्र में-) पं0 नारायणदत्त तिवारी, डॉ. के0डी0 पाण्डेय, यशपाल आर्य (पूर्व विधान-सभाध्यक्ष,उत्तराखंड) तथा डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री। आज से ग्यारह वर्ष पुरानी बात है। बरेली जिले का एक पुराना कस्बा बहेड़ी है। जो खटीमा से 70 किमी दूर है।
वहाँ पर फिल्म-जगत के मशहूर एक्टर दिलीप कुमार, पं0 नारायण दत्त तिवारी के साथ आये हुए थे। उन दिनों मैं कांग्रेस पार्टी का एक सक्रिय कार्यकर्ता था। आदरणीय पं0 नारायण दत्त तिवारी जी से हार्दिक लगाव होने के कारण मुझे उनके कार्यक्रम में जाना था।
होटल बेस्ट व्यू , खटीमा के एम0डी0 ठाकुर कमलाकान्त सिंह की मारूति वैन को मैं ही चला रहा था। साथ में थे चेयरमैन डा0के0डी0पाण्डेय, हाजी रौनक हुसैन और ठा0 कमलाकान्त सिंह। हँसी मजाक के साथ हमारा काफिला बहेड़ी की ओर बढ़ रहा था।
सितारगंज कस्बे से 6 कि0मी0 दूर नया-गाँव पडता है। वहाँ रोड के किनारे कुछ ईंटें पड़ी हुई थी। शायद किसी मजार के निर्माण के लिए ही ट्रक वाले उतार देते होंगे। जैसे ही कार यहाँ पँहुची। हमारे साथ बैठे ठाकुर साहब ने कार रुकवा दी और दस रुपये वहाँ रखी गोलक में डाल दिये। उनकी इस हरकत पर मैं हँसने लगा और उनकी खिंचाई करने लगा। मुँह से अन्धविश्वास के कुछ शब्द भी कह दिये।
ठाकुर कमलाकान्त सिंह उम्रदार व्यक्ति थे। उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा-‘‘शास्त्री जी चाहे भले ही आपकी यहाँ श्रद्धा न हो परन्तु मजाक उड़ाना ठीक नही होता है।
’’मैंने कहा- ‘‘ठाकुर साहब! मैं यह सब नही मानता। हाँ एक बात है कि जब मेरी अपनी कार यहाँ खराब होगी। तब मैं भी इनको मानने लगूँगा।’’
बात यहीं खत्म हो गयी।
दो-ढाई महीने बाद, मुझे अपने विद्यालय की जूनियर हाई स्कूल की मान्यता-सम्बन्धी फाइल जमा करने के लिए रुद्रपुर जाना पड़ गया। उस दिन 30 सितम्बर का दिन था। फाइल जमा करने की वह आखिरी तारीख थी।
मैं अपनी एम्बेसेडर कार से जा रहा था कि अच्छी चलती हुई कार ठीक इसी मजार के सामने आकर ठप्प हो गयी। उसका कोई बोल्ट टूट गया था। इसलिए कार का एक पहिया मडगार्ड में टिक गया था। कहने का मतलब यह है कि कार बिल्कुल चलने की स्थिति मे नही थी।
एक तो सितम्बर की गर्मी, ऊपर से कड़ी धूप। मेरी तो हालत खराब हो गयी थी। मन में तुरन्त 2-3 माह पूर्व की घटना याद आ गयी। मुझे बड़ा पश्चाताप हो रहा था कि मैंने उस दिन क्यों इस बाबा अब्दुल हई की निमा्रणाधीन मजार के ऊपर छींटा कसी की।
मैं हार कर वहाँ बनी पुलिया की रेलिंग पर बैठ कर पश्चाताप करने लगा और बाबा से माफी माँगने लगा। उस संमय मैं इतना परेशान था कि एक हजार रुपये भी खर्च करने को तत्पर था। यह सोच ही रहा था कि कोई ट्रक मिल जाये और मेरी कार को या तो खटीमा लाद कर ले जाये या रुद्रपुर ले जाये।
तभी एक 24-पच्चीस साल का मरियल सा एक आँख से काना लड़का मेरी कार के दायें-बायें और उसके नीचे झुक कर देखने लगा।
मैंने उसे बड़ी जोर से डाँटा- तो वह पास आकर बोला- ‘‘बाबू जी! मैं आपकी कार ठीक कर दूँगा।’’ मैंने कहा- ‘‘भाग तो सही, यहाँ से। तूने अपनी सूरत देखी है। तू क्या कार ठीक करेगा? मैं ही तुझे ठीक कर देता हूँ।’’
वह बड़ी विनम्रता से बोला- ‘‘बाबू जी! आप तो बुरा मान गये। आप सच मानें, मैं आपकी कार ठीक कर दूँगा। मैं दिल्ली में एम्बसेडर की गैराज में काम करता हूँ।’’
अब तो मुझे अपने पर बहुत ग्लानि हुई।
मैंने उससे कहा- ‘‘तो ठीक करो।’’
वह गाँव में एक ट्रैक्टर वाले से एक बोल्ट माँग कर लाया। जैक से गाड़ी उठाई और 15 मिनट में ही कार ठीक कर दी। मैंने उसे सौ रुपये ईनाम भी देना चाहा। परन्तु उसने लेने से मना कर दिया।
इसे क्या कहेंगे? चमत्कार, अन्धविश्वास या इत्तफाक।
रुद्रपुर से लौट कर मैंने जब गाँव वालों से इस लड़के के बारे में पूछा तो-‘गाँव वालों ने कहा- ‘‘बाबू जी! इस गाँव में इस तरह का कोई लड़का है ही नही। न ही इस गाँव का कोई लड़का दिल्ली में किसी एम्बेसेडर की गैराज में काम करता है।"
मुझे आज भी हैरानी है कि आखिर वह फरिश्ता कौन था?
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शनिवार, 4 अप्रैल 2009
इत्तफाक या अन्धविश्वास! "आखिर वह फरिश्ता कौन था?" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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upar waala sabko maaf karta hai aur sahaayata karta hai....pata nahi ham ise kya naam de dete hai.....
जवाब देंहटाएंarsh
na ye andhvishwaas hai aur na ittefaq........ye haqeeqat hai.
जवाब देंहटाएंab kahne ki jaroorat hi kahan rahi ki wo farishta kaun tha.
शाश्त्री जी, इस वाकये पर इतना ही कहुंगा कि" मानो तो गंगाजल है ना मानो तो बहता पानी"
जवाब देंहटाएंमर्जी अपनी अपनी.
रामराम.
आस्था ऐसी घटनाओं से ही मजबूत होती जाती है.
जवाब देंहटाएं(ourdharohar.blogspot.com)
इसमें सिर्फ़ आपकी अनुभूति
जवाब देंहटाएंमूल्यवान है....मंतव्य उचित नहीं,
किन्तु आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
होती हैं भाई साहब ऐसी घटनायें जीवन में जिस पर सहज यकीन ही नहीं होता. अच्छा लगा आपका संस्मरण पढ़ना.
जवाब देंहटाएंअक्सर जीवन में इस प्रकार की घटनायें यदा कदा देखने को मिल ही जाती हैं,जिन्हे समझना शायद मानवी बुद्धि के बस की बात नहीं....कुदरत अपने होने का अहसास करा ही देती है..
जवाब देंहटाएंऔर कुछ हो ना हो, एक सीख तो जरूर मिलती है कि किसी के बाहरी रूप-रंग को देख उसके बारे में कोई धारणा नहीं बना लेनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंआपने अपने लेख में सच्चाई लिखी है। बाबा अब्दुल हई की मजार को लोग सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।
DINESH PANDEY