हार भी है यहीं, जीत भी है यहीं, जिसको चाहो उसी का मजा लीजिए। शत्रु भी हैं यहीं, मीत भी है यही, जिसको चाहो गले से लगा लीजिए।। दिल में बहने लगें भाव जब आपके, गीत और छन्द को तब सजा लीजिए। जिसको चाहो गले से लगा लीजिए।। दोस्ती में बहुत बन्दिशें है भरी, दुश्मनी एक पल में बजा लीजिए। जिसको चाहो गले से लगा लीजिए।। नेक कामों का फल देर से आयेगा, देखना है मजा तो दगा कीजिए। जिसको चाहो गले से लगा लीजिए।। |
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रविवार, 2 अगस्त 2009
‘‘जिसको चाहो गले से लगा लीजिए‘‘ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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umdaa rachnaa
जवाब देंहटाएंaanand dene waali rachnaa
uttam bhaav se bharee racnaa
_______is rachnaa ka abhinandan !
सर, एक बार अपनी ध्वनि में सुनाइये तो और अच्छा लगेगा.
जवाब देंहटाएंवाह..वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत गजब का लिखा है मान्यवर!
बधाई हो।
बेहतरीन शायरी।
जवाब देंहटाएंमुबारकवाद।
बहुत खूब....
जवाब देंहटाएंजहाँ न पहुँचे रवि,
वहाँ पहुँचे कवि।
मयंक जी!
जवाब देंहटाएंइस सुन्दर गजल के लिए बधाई।
Bahut Umda.
जवाब देंहटाएंBadhayee>
सुन्दर गजल .बधाई...
जवाब देंहटाएंbahut hi sangeetmay geet likha hai............waah waah!
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अत्यन्त सुंदर रचना! बहुत अच्छा लगा!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा है !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आभार्
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