बच्चों को लगते जो प्यारे। वो कहलाते हैं गुब्बारे।। गलियों, बाजारों, ठेलों में। गुब्बारे बिकते मेलों में।। काले, लाल, बैंगनी, पीले। कुछ हैं हरे, बसन्ती, नीले।। पापा थैली भर कर लाते। जन्म-दिवस पर इन्हें सजाते।। गलियों, बाजारों, ठेलों में। गुब्बारे बिकते मेलों में।। फूँक मार कर इन्हें फुलाओ। हाथों में ले इन्हें झुलाओ।। सजे हुए हैं कुछ दुकान में। कुछ उड़ते हैं आसमान में।। मोहक छवि लगती है प्यारी। गुब्बारों की महिमा न्यारी।। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
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शनिवार, 22 अगस्त 2009
‘‘गुब्बारे’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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मोहक छवि लगती है प्यारी।
जवाब देंहटाएंगुब्बारों की महिमा न्यारी।।
बहुत
सुन्दर रचना डाक्टर साब . आभार
गुब्बारो को देख जैसे बचपन आ गयी।
जवाब देंहटाएंबच्चो के लिये सबसे प्रिय गुब्बारे ही होते है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जी ललचा गया बचपन मे लौट जाने को
आज तो बिल्कुल रंगबिरंगी पोस्ट है जो बचपन को याद करा रही है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअपने ढाई साल के बेटे को जब आपकी पोस्ट में छपे गुब्बारों कि फोटो दिखाई तो साहब मचल गए कि "अभी दो" नतीजा यह कि आज मेरे कमरे में लगभग १०-१२ गैस के गुब्बारे छत से चिपके हुए है और नीचे पलंग पर एक प्यारी सी मुस्कान लिए मेरा बेटा सो रहा है |
जवाब देंहटाएंउसकी इस मुस्कान के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद |
बहुत लाजवाब रचना है
जवाब देंहटाएं---
आनंद बक्षी
वाह ! आपकी इस रचना से मुझे बचपन में पढ़ी कविता ..'लाया हूँ जी मैं गुब्बारे...' याद आ गई...सुंदर मजा आ गया
जवाब देंहटाएंश्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंsundar rachna aur chitra sanyojan bahut hi khoobsoorat.
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है ये कविता मैने पहले भी पढी है मगर आज एक नयी सज धज के साथ है बधाइ बहुत सुन्दर है आभार्
जवाब देंहटाएंअरे नही कपिला जी!
जवाब देंहटाएंये तो कल ही लिखी है।
आपको मुगालता हो रहा है।
bachchon ka man bahlati hui rachna bahut pyari lagi badhai!!
जवाब देंहटाएंbhaia jee pranam apki rachana men gubbare dekh kar bitia pallavi ne kaha jo gubbare nahin phule unhe bhi fulavo.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और प्यारी रचना है! मुझे बेहद पसंद आया! मैं तो अपने बचपन के दिनों में चली गई जब मेले में पापा गुब्बारे खरीदकर देते थे या कभी बाज़ार में गई तो वहां गुब्बारेवाले को देखकर ज़िद करती थी गुब्बारे चाहिए ! अभी भी ऐसा लगता है कि जन्मदिन में गुब्बारे से पुरा घर सजाया जाए ! बहुत ख़ूबसूरत तस्वीरों के साथ आपने रचना को एक नया रूप दिया है और पहले के रचनाओं से एकदम अलग है!
जवाब देंहटाएंकैसे कैसे ये गुब्बारे ,
जवाब देंहटाएंसब लगते है न्यारे वारे .