कल तक हनुमान कहाता था, संकट-मोचन कहलाता था, अब रावण मुझे बनाया है, तो युद्ध करो! मैं भी देखता हूँ, बिना हनुमान के, श्री राम की जय कौन बोलेगा? विदेशों में आतंकियों से समझौता करने कौन जायेगा? |
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अब तो राम
जवाब देंहटाएंअपनी जय
बोल लेंगे
खुद ही।
खोलेंगे अपना ब्लॉग
बनेंगे फोलोअर खूब सारे
जय बोलेंगे
या पहन कर नकाब
ले आयेंगे जनाब
जय बोलेंगे जो जनाब।
मयंक जी माफी चहुंगा लेकिन समझ नही पाया, आप कहना क्या चाहते है।
जवाब देंहटाएंमिथिलेश जी ,
जवाब देंहटाएंडॉक्टर साब जसवंत सिंह जी के बारे में कहे रहे है !
वैसे मानेगे न क्या खूब कहे रहे है !
लगे रहिये ,लगे रहिये !
हमको भी साथ लिए रहिये , लिए रहिये !
बिल्कुल ठीक संदेश देती है कविता
जवाब देंहटाएं---
मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
ये तो जसवंत सिंह जी की कहानी लगती है...पर है सुंदर क्षणिका
जवाब देंहटाएंमयंकजी,
जवाब देंहटाएंआपका कहना है तो ठीक ही होगा,
लेकिन मेरी समझ में ये क्षणिका न हो कर
कविता ही है
और कविता अच्छी है..............बधाई !
अलबेला जी , आप को हिन्दी में टिप्पणी देते देख ख़ुशी हुयी | बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंअब तो रावण होना ही सम्मान की बात हो गई है.
जवाब देंहटाएंसही कटाक्ष.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुंदर कविता! मुझे तो कविता का नाम "क्षणिका" बेहद पसंद आया!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर क्षणिका बधाई और अब तो आपकी रचनायें भाभी जी के स्वर मे सुनेंगे तो और भी बडिया लगेगा आभार्
जवाब देंहटाएंbilkul sahi likha hai ........lajawaab.......yahan matlab ke liye hanuman banaye jate hain aur matlab ke liye hi ravan.........insaan kisi ravan se kam hai kya.
जवाब देंहटाएंbilkul sahi likha hai ........lajawaab.......yahan matlab ke liye hanuman banaye jate hain aur matlab ke liye hi ravan.........insaan kisi ravan se kam hai kya.
जवाब देंहटाएंअब रावण की उपाधि मिलते देर ही कितनी लगती है...राजनैतिक गलियारे मे तो एक कदम विपरीत पडा नहीं कि बस....सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंसटीक!!
जवाब देंहटाएंjay ho bahut sahi kaha hai apne badhai!!
जवाब देंहटाएं्रचना ही वो है जिसे पढ कर पाठक को सोचना पडे बहुत खूब कहीं पे निगहें कहीं पे निशाना साधा है बधाई
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