जूट की सूत की चाहे रेशम की हों,
प्यार की डोर हैं हथकड़ी राखियाँ।
कच्चा धागा इन्हें मत समझना कभी,
भावनाओं की हैं ये लड़ी राखियाँ।
माँ की गोदी में पलकर बड़े हो
गये,
एक आँगन में चलकर खड़े हो गये.
धान की पौध सी हैं बहन-बेटियाँ
भेजतीं साल में भाइयों के लिए,
नेह के हैं नगीने जड़ी राखियाँ।।
मायके से भले दूरियाँ हों गयीं,
किन्तु दिल में सभी के लिए प्यार
है,
प्रीत की डोरियों में रचा और
बसा,
भाइयों के लिए स्नेह-उपहार है,
कितने अरमान से भेजती हर बरस,
झिलमिलाती सी छोटी-बड़ी
राखियाँ।।
ढंग चाहे हो कोई, कोई रंग हो
कम न होगा कभी राखियों का चलन,
भाई रक्षा में तत्पर रहेंगे सदा,
धन से होता नहीं प्यार का आकलन,
मायका-सास का घर सलामत रहे,
दो कुलों की सबल हैं कड़ी
राखियाँ।।
|
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मंगलवार, 20 अगस्त 2013
"भावनाओं की हैं ये लड़ी राखियाँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अत्यंत सुंदर एवँ भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंमायका-सास का घर सलामत रहे,
दो कुलों की सबल हैं कड़ी राखियाँ।।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ !
भावनाओ की है ये डोरियाँ...सुन्दर..रक्षाबंधन कॊ शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं !
बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कल बुधवार (21
जवाब देंहटाएं-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 92 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
सादर
सरिता भाटिया
मायके से भले दूरियाँ हों गयीं,
जवाब देंहटाएंकिन्तु दिल में सभी के लिए प्यार है,.....bahut sundar rachna....
अति सुन्दर नयनाभिराम। अलावा इसके इस पुरुषोत्तम संगम युग पर स्वयं परम पिता परमात्मा हमको राखी बांधते हैं पवित्र करमा जीत बनने की कसम रखवा लेते हैं। सुन्दर और सार्थक रचना है भाई भं के इस पावन पर्व पर शाष्त्री जी की।
जवाब देंहटाएंसुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंHappy Rakshabandhan to all of you
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंमाँ की गोदी में पलकर बड़े हो गये,
एक आँगन में चलकर खड़े हो गये.
धान की पौध सी हैं बहन-बेटियाँ
भेजतीं साल में भाइयों के लिए,
नेह के हैं नगीने जड़ी राखियाँ।।
सुंदर रचना , राखी की ढेरो शुभकामनाये
यहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/08/blog-post_6131.html
सुन्दर कविता, रक्षाबन्धन की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएं