कहीं मन्दिर का है मसला, कहीं
मस्जिद का है जलवा
मज़हब के नाम पर होता, वतन में हर जगह बलवा
सभी अपनी चलाते हैं, सियासत हो गई
शातिर
रियाया के लहू से अब, चमन को
सींचता कलुवा
शज़र जो दे रहा छाया, उसी की काटते शाखा
मिटाता आदमीयत जो, उसी का चाटते
तलुवा
पुरानी सभ्यता पर अब, लगा है रोग शैतानी
हुआ परिधान अब नंगा, बदन को नोचता
ठलुआ
दिया जो “रूप” कुदरत ने, उसी के साथ फितरत की
अमानत में खयानत कर, सितमग़र खा
रहे हलुआ
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बुधवार, 7 अगस्त 2013
"वतन में हर जगह बलवा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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Ek khedjanak prasang, aaj ke yug kaa !
जवाब देंहटाएंगजल के दवारा सटीक अभिव्यक्ति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : तस्वीर नही बदली
सामयिक स्थितियों का सटीक वर्णन
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रभावी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सटीक अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंsab halva hee khaa sakte hain bass
जवाब देंहटाएं!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
latest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
वर्तमान का सटीक चित्रण !!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज सवा दो मास के बाद अपने प्रिय चर्चा मंच पर आ कर कृतार्थ हो सका हूँ |थोड़ी बहुत उंगलियाँ चलने लगी हैं |
जवाब देंहटाएंप्रिय मित्र !आज आप की एक अच्छी सी रचना लम्बी अवधि के बाद पद कर कृतार्थ हुआ हूँ |
सम्प्रदायवाद पर इसी तरह चोट होंती रहे तो कुछ अमन की आशा है |अब जुड़े रहने की आशा है|एक बड़ी भूल होने से बचा लिया है आप ने |