योगिराज का
सारे जग में, इतना मत अपमान करो।
कृष्णचन्द्र को
रासरचैया, कहकर मत बदनाम करो।।
कर्म
प्रधान बताया जिसने, गीता का शुभज्ञान दिया,
भाई-बहन के पावन
सम्बन्धों का जिसने मान किया,
मानवता के उस पालक का, जी भरकर गुणगान करो।
जिसने जीवनभर दुष्टों का, इस धरती पर हनन किया,
कर्तव्यों का बोध करा कर, मन में चिन्तन-मनन दिया,
मात-पिता, आचार्य-बुजुर्गों का, जीवन भर मान करो।
प्रहरी बनकर मातृभूमि की, रक्षा में सब सजग रहें,
अन्यायी-अत्याचारी की, बर्बरता को नहीं सहें,
जीव-आत्मा अजर-अमर है, मन में इतना ध्यान करो।
जिसने गौओं की सेवा कर, गोपालक पद पाया है,
शाकाहारी बनने का, गुरुमन्त्र हमें बतलाया है,
माखन-दुग्ध-दही को खाकर, तन-मन को बलवान करो।
योगिराज का सारे जग में इतना मत अपमान करो।
कृष्णचन्द्र को रासरचैया कहकर मत बदनाम करो।।
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मंगलवार, 27 अगस्त 2013
"रासरचैया कहकर मत बदनाम करो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सबको गीताज्ञान दिया है,
जवाब देंहटाएंजन जन को अभिमान दिया है
सुंदर सार्थक रचना के लिए गुरु जी बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कल बुधवार (28-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 99 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
सादर
सरिता भाटिया
sahi sawal uthaya.aabhaar
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्तम संदेश छपा है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संदेश..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना..:-)
जवाब देंहटाएंवाकई ...आज के साधू तो बस तौबा हैं ...बदनामी भी ऐसी कि उफ़
जवाब देंहटाएंसुन्दर संदेश
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संदेश.
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
_/\_
जयश्री कृष्ण !
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाइयां और शुभकामनाएं !
✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿✿
एकदम वाजिब प्रश्न रखा है शास्त्री जी ने कि क्यों योगीराज श्रीकृष्ण को रास रचइया कह कर बदनाम किया जाता है। उत्तर आसान है क्योंकि आशाराम,ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय,डिवाईंन लाईट मिशन सरीखे संगठन विदेशियों से उत्प्रेरित होकर भारतीय सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करने हेतु कृत्रिम और काल्पनिक कथ्यों का सहारा लेकर यहाँ के पूर्वज महापुरुषों का चरित्र हनन करते हैं एवं जनता इन ढोंगियों/पोंगापंथियों को पूजती है।
जवाब देंहटाएंउनक अपमान कौन कर सकता है ..??
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंगीत , छंद , काव्य विधा वगैरह तो अपनी जगह उसके तो आप गुणी ही हैं , उठाया गया विषय बहुत ही महत्वपूर्ण एवं सार्थक है , जिस योगी राज ने सम्पूर्ण वेदांत के दर्शन को मानवता के हित के लिए रखा दिया उसे माखन चोर, रास रचैया के रूप में जानते है , १२ वर्ष की उम्र में कृष्ण ने वृन्दवान छोड़ दिया और फिर कभी वापस नहीं गए, उसी १२ वर्ष की उम्र के पहले, जब आज कंप्यूटर एवं टेलीविजन युग के बच्चे भी बच्चे ही रहते हैं उनके बारे में क्या क्या कहानिया गढ़ दी गयी . दर असल हमारा धर्म बीच के काल में मूर्खों , जाहिलों , अनपढों का धर्म रह गया . जिन्हें दर्शन , योग , धर्म , विद्या , वेदांत से कोई खास मतलब नहीं रह गया , उनके लिए किस्से कहानिया ही धर्म बन गए .
जवाब देंहटाएंBahut sunder rachna.
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