जब आता है दुःख तभी, लोचन तन-मन धोता है। आँसू का अस्तित्व, नहीं सागर से कम होता है।। हार नही मानी जिसने, बहती नदियों-नहरों से, जल को लिया समेट स्वयं, गिरती-उठती लहरों से, रत्न वही पाता है जो, मंथक सक्षम होता है। आँसू का अस्तित्व, नहीं सागर से कम होता है।। जो फूलों के संग काँटों को, सहन किये जाता है, जो अमृत के साथ गरल का, घूँट पिये जाता है, शीत, ग्रीष्म और वर्षा में, वो नहीं असम होता है। आँसू का अस्तित्व, नहीं सागर से कम होता है। |
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रविवार, 20 अक्टूबर 2013
“आँसू का अस्तित्व सागर से कम नहीं” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंprathamprayaas.blogspot.in-
latest post - inspirational thoughts on god-
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंसुन्दर एहसासात की पोस्ट सशक्त सन्देश देती हुई जीवन के संघर्षों के प्रति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएं---क्या बात है ..उत्तम ...
जवाब देंहटाएंअश्रु उनके हों या अपने अश्रु होते हैं |
कष्ट में अश्रु आनंद में प्रेमाश्रु होते हैं|
दोनों खारे..
जवाब देंहटाएं