फेसबुक्क पर आ गये, अब तो सारे मित्र।
हिन्दी ब्लॉगिंग की हुई, हालत बहुत विचित्र।।
लगा रहे हैं सब यहाँ, अपने मन के चित्र।
अच्छे-अच्छों का हुआ, दूषित यहाँ चरित्र।।
बेगाने भी कर रहे, अपनेपन से बात।
अपने-अपने ढंग से, मचा रहे उत्पात।।
लेकिन ब्लॉगिंग में नहीं, फेसबुकी आनन्द।
बतियाने के रास्ते, वहाँ सभी हैं बन्द।।
लिखते ही पाओ यहाँ, टिप्पणियाँ तत्काल।
टिप्पणियों को तरसते, ब्लॉग हुए बेहाल।।
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ब्लॉक न होता है कभी, ब्लॉगिंग का संसार।
धैर्य और गम्भीरता, ब्लॉगिंग का आधार।।
ब्लगिंग देता वो मज़ा, जैसा दे सत्संग।
यहाँ डोर मजबूत है, ऊँची उड़े पतंग।।
इन्द्रधनुष से हैं यहाँ, प्यारे-प्यारे रंग।
ब्लॉगिंग में चलते नहीं, नंगे और निहंग।।
लेख और रचनाओं को, गूगल रहा सहेज।
समझदार करते नहीं, ब्ल़गिंग से परहेज।।
भले चलाओ फेसबुक, ओ ब्लॉगिंग के सन्त।
मगर ब्लॉग का क्षेत्र वो, जिसका आदि न अन्त।।
पहले लिक्खो ब्लॉग में, रचनाएँ-आलेख।
ब्लॉगिंग के पश्चात ही, फेसबुक्क को देख।।
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गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013
"दोहे-फेसबुक और ब्लॉगिंग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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bahut khoob par blogging me jo garima hai -vivasniyta hai facebook par nahi .
जवाब देंहटाएंसटीक !
जवाब देंहटाएंब्लागर बड़ा कंजूस होता है
फेसबुकिया देख तो देता है :)
ब्लॉक न होता है कभी,ब्लॉगिंग का संसार।
जवाब देंहटाएंधैर्य और गम्भीरता, ब्लॉगिंग का आधार।।
पहले लिक्खो ब्लॉग में, रचनाएँ-आलेख।
ब्लॉगिंग के पश्चात ही, फेसबुक्क को देख।।
मुझे तो फेस बुक रास ही नही आता ,,,,
RECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
फेसबूक्क दो शब्द है, ब्लागिंग बुद्धि विलास|
जवाब देंहटाएंयह सबके बस की कहाँ, कहाँ मिले अवकाश||
किन्तु पूर्ण सहमति मेरी, तुम हो अग्रज भ्रात|
अतः मानता हूँ सभी, हे मेरे प्रिय तात||
आत्मा को मिलता वहाँ, यहाँ ह्रदय को ठौर|
गंधहीन वह कमल है, यह है मादक बौर||
शहरी भागमभाग यह, वह है ठहरा गाँव|
सुख मिलता है पर मुझे फेसबूक्क की छांव||
रोवे बुक्का फाड़ के, कहीं हंसी बेजोड़ |
हटाएंटांग खिंचाई हो कहीं, बाहें कहीं मरोड़ |
बाहें कहीं मरोड़ , फेस करते हैं सुख दुःख |
जीवन के दो फेस, जानिये ब्लॉगर का रुख |
काटे चुटकी एक, रीति को दूजा ढोवे-
नहीं तवज्जो पाय, किन्तु ये दोनों रोवे ||
वाह्ह्ह्हह्ह्ह बहुत बढ़िया सामयिक दोहे मजा आ गया पढ़ के...घोर समस्या छाई ....बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.. मजा आ गया.. सुंदर और सामयिक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंprathamprayaas.blogspot.in-
पहले लिक्खो ब्लॉग में, रचनाएँ-आलेख।
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग के पश्चात ही, फेसबुक्क को देख।।
क्या सुंदर बात कही है.
सुंदर
जवाब देंहटाएंशानदार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आकलन और अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंइन्द्रधनुष से हैं यहाँ, प्यारे-प्यारे रंग।
ब्लॉगिंग में चलते नहीं, नंगे और निहंग।।
इन्द्रधनुष से हैं यहाँ, प्यारे-प्यारे रंग।
ब्लॉगिंग में चलते नहीं, नंगे और निहंग।।
मुख चिठ्ठा की का कहें मार्फिंग का है जोर ,
चेहरा याँ किसी अउर का ,अनघ अंग कछु और।
बढ़िया काव्यात्मक अध्ययन दोनों का।
दोनों हैं पूरक मगर नहीं परस्पर वैर
चिठ्ठा मुख पर पूछते सब अपनों की खैर।
बढ़िया प्रस्तुति शाष्त्री जी।
नेक ओर सच्ची सलाह के लिए आभार !
जवाब देंहटाएं