प्रेम शब्द में निहित है, दुनियाभर का सार।
ढाई आखर प्यार का, समझो मत व्यापार।१।
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प्यार न बन्धन में बँधे, माने नहीं रिवाज।
प्रीत मुक्त आभास है, चाहत की परवाज।२।
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दिल में सख्त पहाड़ के, पानी का है सोत।
कोने में दिल के कहीं, जलती इसकी जोत।३।
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प्यार छलकता जाम है, खिलता हुआ पलाश।
चाहे जितना भी पियो, बुझती कभी न प्यास।४।
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प्यार नहीं है वासना, ये है पूजा-जाप।
मक्कारों के वास्ते, प्यार एक अभिशाप।५।
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बात-चीत से शीघ्र ही, मन की खाई पाट।
टूटा दिल जुड़ता नहीं, पड़ जाती है गाँठ।६।
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रविवार, 27 अक्टूबर 2013
"दोहे-प्रीत मुक्त आभास" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर दोहे साधुबाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीय-
आप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 28/10/2013 कोकुछ पंखतियों के साथ नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ।
प्यार छलकता जाम है, खिलता हुआ पलाश।
जवाब देंहटाएंचाहे जितना भी पियो, बुझती कभी न प्यास ..
उत्तम, अती उत्तम ... सभी दोहे दिल में उतर जाते हैं ... प्रेम का रस छलका रहे हैं सब ...
प्यार नहीं है वासना, ये है पूजा-जाप।
जवाब देंहटाएंमक्कारों के वास्ते, प्यार एक अभिशाप।
बहुत सुंदर दोहे ,,,
RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : कोई बात कहो तुम
guru ji pranaam
जवाब देंहटाएंbahut sunder prastuti
नमस्कार !
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [28.10.2013]
चर्चामंच 1412 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
सादर
सरिता भाटिया
bahut khoobsoorat
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे !
जवाब देंहटाएंप्यार न बन्धन में बँधे, माने नहीं रिवाज।
जवाब देंहटाएंप्रीत मुक्त आभास है, चाहत की परवाज
बिना प्यार के आदमी रहता है मोहताज़ ,
प्रेम की पाटी जो पढ़े उसके सिर पे ताज।
सुन्दर अर्थ और भाव है शास्त्री दोहावली का।
प्रेम की प्यारी दुनिया।
जवाब देंहटाएंaapke dohe padh ke mujhe kabir das ji ki yaad aatee hai, wo bhee aise hee meethe dohe likha karte thay.
जवाब देंहटाएं