आज अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास।
जिसमें पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास।।
दुनिया में दम तोड़ता, मानवता का वेद।
बेटा-बेटी में बहुत, जननी करती भेद।।
पुरुषप्रधान समाज में, नारी का अपकर्ष।
अबला नारी का भला, कैसे हो उत्कर्ष।।
बेटा-बेटी के लिए, हों समता के भाव।
मिल-जुलकर मझधार से, पार लगाओ नाव।।
एक पर्व ऐसा रचो, जो हो पुत्री पर्व।
व्रत-पूजन के साथ में, करो स्वयं पर गर्व।।
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शनिवार, 26 अक्टूबर 2013
"दोहे-अहोईअष्टमी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सूंदर रचना !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
अति उत्तम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक दोहे.....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (27-10-2013) के चर्चामंच - 1411 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक सन्देश !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
आज अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास।
जवाब देंहटाएंजिसमें पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास।।
नव रात्र (नौ दुर्गों )के पर्व पर होता कन्या पूजन
पैदा होती जब कन्या होता है खूब रूदन।
बहुत खूब गुरु जी सही कहा आपने और वीरेंद्र जी ने भी बजा फ़रमाया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : कोई बात कहो तुम
सुन्दर रचना, त्योहार की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएं