गदराई पेड़ों की
डाली
हमें सुहाती हैं
कानन में।।
हम पंछी हैं
रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं
वन-उपवन में।।
पवन बसन्ती जब पर्वत से,
चलकर मैदानों तक
आती।
सुरभित फूलों की
सुगन्ध तब,
मन में नव उल्लास
जगाती।
अपनी खग भाषा में
तब हम,
गीत सुनाते हैं
मधुबन में।
हम पंछी हैं
रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं
वन-उपवन में।।
इन्द्र धनुष जब नभ
में उगता,
प्यारा बहुत नजारा
होता।
धरा-धाम के
पाप-ताप को,
घन जब पावन जल से
धोता।
जल की बून्दें
बहुत सुहाती,
पड़ती हैं जब
घर-आँगन में।
हम पंछी हैं
रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं
वन-उपवन में।।
उदय-अस्त की बेला
में हम,
देते हैं सन्देश
अनोखा।
गान उसी का करते
हम.
जो रखता है
लेखा-जोखा।
चलता जिसकी कृपादृष्टि से,
समयचक्र सबके जीवन
में।
हम पंछी हैं
रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं
वन-उपवन में।।
सुख से रहना अगर चाहते,
सच से कभी न आँखें
मींचो।
जीवन की सुन्दर
बगिया को,
नियमित होकर
प्रतिदिन सींचो।
नित्य नियम से रोज
सवेरे,
सूरज उगता नील गगन
में।
हम पंछी हैं
रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं
वन-उपवन में।।
|
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मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013
"हम पंछी हैं रंग-बिरंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह , हम पंक्षी हैं रंग-बिरंगे... बहुत सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता सुंदर पंछियों के साथ !
जवाब देंहटाएंप्रणाम गुरुदेव
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कल बुधवार (09-10-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 141 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
एक नजर मेरे अंगना में ...
''गुज़ारिश''
सादर
सरिता भाटिया
प्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST : अपनी राम कहानी में.
सुंदर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना |
विशुद्ध साहित्यिक और लाजवाब लेखन |
अदभुत |
बहुत सुन्दर बाल गीत ..
जवाब देंहटाएंगुनगुनाहट लिए छंद बढ अप्रतिम रचना। सुन्दर मनभावन।
जवाब देंहटाएंइन्द्र धनुष जब नभ में उगता,
प्यारा बहुत नजारा होता।
धरा-धाम के पाप-ताप को,
घन जब पावन जल से धोता।
जल की बून्दें बहुत सुहाती,
पड़ती हैं जब घर-आँगन में।
हम पंछी हैं रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं वन-उपवन में।।
गुनगुनाहट लिए छंद बद्ध अप्रतिम रचना। सुन्दर मनभावन,जैसे सावन।
जवाब देंहटाएंबड़ी प्यारी व रंगबिरंगी कविता..
जवाब देंहटाएं