अगवाड़ा भी मस्त है, पिछवाड़ा भी मस्त।
अपने नेता ने किये, कीर्तिमान सब ध्वस्त।१।
--
जोड़-तोड़ के अंक से, चलती है सरकार।
मक्कारी-निर्लज्जता, नेता का श्रृंगार।२।
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तन-मन में तो काम है, जिह्वा पर हरिनाम।
नैतिकता का शब्द तो, हुआ आज गुमनाम ।३।
--
सपनों की सुन्दर फसल, अरमानों का बीज।
कल्पनाओं पर हो रही, मन में कितनी खीझ।४।
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किसका तगड़ा कमल है, किसका तगड़ा हाथ।
अपने ढंग से ठेलते, अपनी-अपनी बात।५।
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अपनी रोटी सेंकते, राजनीति के रंक।
कैसे निर्मल नीर को, दे पायेगी पंक।६।
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कहता जाओ हाट को, छोड़ो सारे काज।
अब कुछ सस्ती हो गयी, लेकर आओ प्याज।७।
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मत पाने के वास्ते, होने लगे जुगाड़।
बहलाने फिर आ गये, मुद्दों की ले आड़।८।
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तन तो बूढ़ा हो गया, मन है अभी जवान।
सत्तर के ही बाद में, मिलता उच्च मचान।९।
--
क्षीण हुआ पौरुष मगर, वाणी हुई बलिष्ठ।
सीधी-सच्ची बात को, समझा नहीं वरिष्ठ।१०।
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खा-पी करके हो गया, ये तगड़ा
मुस्तण्ड।
अब जन-गण को चाहिए, देना
इसको दण्ड।११। |
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बुधवार, 30 अक्तूबर 2013
"दोहे-नेता का श्रृंगार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सशक्त शब्दों में सत्य बताती पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.हकीकत बयां करती रचना.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-31/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -37 पर.
जवाब देंहटाएंआप भी पधारें, सादर ....
फगवाड़ा भी मस्त है, छिंदवाड़ा भी मस्त |
जवाब देंहटाएंकहीं अकाली लड़ रहे, कहीं कमल अभ्यस्त |
कहीं कमल अभ्यस्त, कहीं हो रहे धमाके |
देते गलत बयान, दुलारे अपनी माँ के |
जाती नीति बिलाय, धर्म हो जाता अगवा |
रही दुष्टता जीत, खेलती घर घर फगवा ||
सटीक दोहे
जवाब देंहटाएंसशक्त सटीक दोहे ,,,,
जवाब देंहटाएंपहचान हमारे देश की, जंह चले प्रजा का तंत्र। आखिरि दोहे में छिपा, मजबूती का मंत्र॥ ……सटीक दोहे ………
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंमत पाने के वास्ते, होने लगे जुगाड़।
जवाब देंहटाएंबहलाने फिर आ गये, मुद्दों की ले आड़।८।
--मुद्दों की ले आड़ राग सेकुलर समझाते ,
पाने वोट आपकी हर तिकड़म अपनाते।
शानदार दोहावली सेकुलर भेड़ों की खाल खींचती हुई।
बहुत ही सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.