मैदानों में कुहरा
छाया।
सितम बहुत सरदी ने
ढाया।।
सूरज को बादल ने
घेरा,
शीतलता ने डाला
डेरा,
ठिठुर रही है सबकी
काया।
सितम बहुत सरदी ने
ढाया।।
कलियों पर मौसम के
पहरे,
बहुत निराश हो रहे
भँवरे,
गुंजन उनको रास न
आया।
सितम बहुत सरदी ने
ढाया।।
सरसों के सब बिरुए
रोते,
गेहूँ अपना धीरज खोते
है,
हरियाली का हुआ
सफाया।
सितम बहुत सरदी ने
ढाया।।
बया नीड़ से झाँक
रही है,
इधर-उधर को ताँक
रही है,
शीतलता ने हाड़
कँपाया।
सितम बहुत सरदी ने
ढाया।।
बूढ़े-बच्चे काँप
रहे हैं,
सभी आग को ताप रहे
हैं,
हिम पर्वशिखरों पर छाया।
सितम बहुत सरदी ने
ढाया।।
|
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गुरुवार, 9 जनवरी 2014
"सितम बहुत सरदी ने ढाया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत बढ़िया-
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी-
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (10.01.2014) को " चली लांघने सप्त सिन्धु मैं (चर्चा -1488)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,नव वर्ष की मंगलकामनाएँ,धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया-
जवाब देंहटाएंसर्दी को बहुत सुंदर चित्रमयी कविता से अंकित किया है आपने, अतिसुंदर...साधुवाद;-))
जवाब देंहटाएंसादर,
सारिका मुकेश
सर्दी का बहुत अच्छा और लयात्मक चित्रण !!!
जवाब देंहटाएंअति सुँदर !!!
- बाँकवि
बहुत सुन्दर चित्र और रचना |
जवाब देंहटाएंसितम बहुत सरदी ने ढाया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंकल 11/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बया नीड़ से झाँक रही है,
जवाब देंहटाएंइधर-उधर को ताँक रही है,
शीतलता ने हाड़ कँपाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
सर्दी का बहुत सुन्दर चित्रण
जवाब देंहटाएं