मक्कारों ने अपने गुलशन को वीरान बना डाला।
पहना दो अब गद्दारों को चप्पल-जूतों की माला।।
जागा सबका मन,
और
माटी का जागा है कण-कण,
जागी कलियाँ और चमन का जागा है हर एक सुमन,
आस्तीन में पलने नही देंगे, कोई विषधर काला।
पहना दो अब गद्दारों को चप्पल-जूतों की माला।।
धन-बल से इन्सानों के, ईमान नही बिक पायेंगे,
असली के आगे,
नकली
भगवान नही टिक पायेंगे,
देश-भक्त इन शैतानों को याद दिला देंगे खाला।
पहना दो अब गद्दारों को चप्पल-जूतों की माला।।
जमा विदेशों में सारा, अब काला-धन लाना होगा,
जन-गण-मन में,
स्वाभिमान
का अलख जगाना होगा,
उग्रवादियों की गरदन में, डालो फाँसी की माला।
पहना दो अब गद्दारों को चप्पल-जूतों की माला।।
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सोमवार, 1 अक्टूबर 2012
"पहना दो गद्दारों को जूतों की माला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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इस आक्रोश को भी नमन ||
जवाब देंहटाएंआभार गुरूजी ||
बेहतरीन सृजन ...बहुत -२ बधाईयाँ जी ...l
जवाब देंहटाएंमन के भाव सवेग बहना चाहते हैं।
जवाब देंहटाएंदिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है...पर घंटी बांधेगा कौन...
जवाब देंहटाएंउग्रवादियों की गरदन में, डालो फाँसी की माला।
जवाब देंहटाएंपहना दो अब गद्दारों को चप्पल-जूतों की माला।।
बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,
RECECNT POST: हम देख न सके,,,
Nice post.
जवाब देंहटाएंSee
http://mushayera.blogspot.in/2012/10/anjum-rahbermp4.html
"आस्तीन में पलने नही देंगे, कोई विषधर काला"
जवाब देंहटाएंजय हिंद
सहमत, बात तो फिर ऐसे ही होनी चाहिए
जवाब देंहटाएंजब भी समय मिले, मेरे नए ब्लाग पर जरूर आएं..
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/09/blog-post.html?spref=fb
वाह: बहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंशास्त्री सर ,
जवाब देंहटाएंकाश आपका ये रचना, ये सपना सच हो जाए... तो इस देश में खुशहाली की हरियाली छा जाए...
~सादर !