मखमली ख्वाब आँखों में पलता रहा।
मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा।।
अश्क मोती बने मुस्कुराने लगे,
सारे सोये सुमन खिलखिलाने लगे,
सुख सँवरता रहा, दर्द जलता रहा।
मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा।।
तुम जो ओझल हुए अटपटा सा लगा,
जब दिखाई दिये चटपटा सा लगा,
ताप बढ़ता रहा, तन सुलगता रहा।
मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा।।
उर के मन्दिर में ही प्रीत पलती सदा,
शैल-शिखरों से गंगा निकलती सदा,
स्वप्न मेरा हकीकत में ढलता रहा।
मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा।।
आज फिर से सितारों भरा है गगन,
कितना निखरा हुआ, चन्द्रमा का बदन,
चाँदनी का हमें. “रूप” छलता रहा।
मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा।।
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बुधवार, 31 अक्टूबर 2012
"रूप छलता रहा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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roop to hamesha chhalne ke liye hee bana hai guru jee!
जवाब देंहटाएंसुबह सवेरे ओस भी, बनती गंगा धार ।
जवाब देंहटाएंबहा रहे गुरुवर यहाँ, पावन छंद बयार ।
पावन छंद बयार, बड़ी आकर्षक दीखे ।
नव-कवि कुल आ जाव , यहाँ कविताई सीखे ।
छले नहीं यह रूप, धूप चहुँ ओर बिखेरे ।
रविकर गुरुकुल जाय, आज तो सुबह सवेरे ।।
बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ... मन मृदुल मोम सा पिघलता रहा ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति ,,,लाजबाब ,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST LINK...: खता,,,
वाह वाह वाह वाह बहुत सुन्दर रचना दिल को छू गयी।
जवाब देंहटाएंउर के मन्दिर में ही प्रीत पलती सदा,
जवाब देंहटाएंशैल-खिखरों से गंगा निकलती सदा,
स्वप्न मेरा हकीकत में ढलता रहा।
मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा ... आपकी लेखनी एक पुरस्कार है
चाँदनी का हमें. “रूप” छलता रहा।
जवाब देंहटाएंइसी छलने से ही दुनिया चल रही है
चाँदनी का हमें. “रूप” छलता रहा...अद्भुत शब्द संयोजन...
जवाब देंहटाएंहृदय धड़कन, काश चेहरे से टपकती।
जवाब देंहटाएंअश्क मोती बने मुस्कुराने लगे,
जवाब देंहटाएंसारे सोये सुमन खिलखिलाने लगे,
सुख सँवरता रहा, दर्द जलता रहा।
मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा।।
बहुत ही बढिया ... आपकी लेखनी को नमन
तुम जो ओझल हुए अटपटा सा लगा,
जवाब देंहटाएंजब दिखाई दिये चटपटा सा लगा,
बहुत ही उम्दा..सच्ची में ... बहुत अच्छी लगी.
आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।
अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।
धन्यवाद !!
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html
बहुत ही सुन्दर ,खुबसूरत गजल..
जवाब देंहटाएंमनभावन...
:-)