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शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012
"दरख़्त का पीला पत्ता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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प्राणवायु देता रहा, दिया सदैव सुकून |
जवाब देंहटाएंसूखे पीला पात अब, जय जय *अफलातून |
*प्रसिद्ध दार्शनिक
हरा पत्ता जीवनदायिनी है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना .......
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,
जवाब देंहटाएंजो नहीं डरा ...जीवन उसी का है
जवाब देंहटाएंसूख भी जाये तो देने की क्षमता बनी रहती है
वाह ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
सादर
अनु
गहरे भाव दर्शाती रचना .....
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ!
दरख्त का पीला पत्ता पुन :अपनी खाद बन जाता है .कार्बन साइकिल में समाहित हो जाता है .खुद अपना भोजन बनातें हैं वृक्ष .देते ही हैं ता -उम्र लेते कुछ नहीं ,हरे रहें या पीले .शास्त्री जी संबोधन में जैसे -भाइयो !
जवाब देंहटाएंऔर बहनो! में अनुनासिक का प्रयोग नहीं किया जाता है .वैसे ही आओ बच्चो !होना चाहिए -गीत बच्चों की रेलगाड़ी में .आभार .हमारे मित्र डॉ .वागेश मेहता भाषा के आचार्य है सारा काम भाषा पर है डी .लिट,उनसे
अकसर चर्चा होती रहती है ब्लॉग जगत में पसरे वर्तनी युद्ध के बाबत .हम उन्हीं के तोते हैं .हर पल सीखने की ललक है जानकारी बांटने के निमित्त ही होती है .पुनश्च :आभार .आपका पात्र हमेशा भरा रहता है फिर
भी आप लेने में भी संकोच नहीं करते यही आपका बड़प्पन और पल्लवन है .इसीलिए आपसे विमर्श चलता रहता है अप्रत्यक्ष .
पीला पात बहुत बढ़िया रचना है .
बहुत सुंदर रचना | बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंआभार |
मैं दरख़्त का पीला पत्ता,
जवाब देंहटाएंमद्धम सुर में गाता हूँ।
वाह बहुत ती सुंदर पंक्तियां हैं
ती=ही
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराअम.
एक और सुन्दर रचना के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत नाजुक भावपूर्ण कविता |
जवाब देंहटाएंआशा
पीला पत्ता फिर से हरा भले न हो सके लेकिन धरा पर गिर कर माटी को नव उर्जा प्रदान कर अपने अस्तित्व को सार्थक कर जाता है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंवाह .......सुन्दर....!!!!!
जवाब देंहटाएंदुःखी तो हो सकते हैं, पर निराश नहीं हो सकते...
जवाब देंहटाएंवो सुबह कभी तो आयेगी... :)
kya baat hai!
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