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मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012
"खुली आँखों का सपना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बढ़िया संस्मरण |
जवाब देंहटाएंहमें भी आशीर्वाद मिलें |
शुभकामनायें गुरु जी ||
बहुत बढ़िया संस्मरण ....आभार शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा ये संस्मरण.
जवाब देंहटाएंसुंदर संस्मरण | आभार |
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट बुधवार (24-10-2012) को चर्चा मंच पर । जरुर पधारें ।
सूचनार्थ ।
badhiya sansmaran
जवाब देंहटाएंयादों का खूबसूरत साहित्यिक कारवां
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएं---
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बहुत ही प्रेरक संस्मरण, नवल धवल सा ।
जवाब देंहटाएंखुशनसीबों के ही साकार होतें हैं दिवास्वप्न .
जवाब देंहटाएं‘‘अमल-धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है।’’ को सुनाया। उस दिन के बाद तिवारी जी इतने शर्मिन्दा हुए कि बाबा को मिलने के लिए ही नही आये।
यह था मेरी खुली आँखों का सपना!
....शेष कभी फिर!
प्रेरक संस्मरण...
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की शुभकामनाएँ!!
पढ़कर यह प्रेरक प्रसंग, मन में उपजा भाव
जवाब देंहटाएंगुरु बिन ज्ञान सुलभ नही, इत उत जित तित धाव
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं
सहित ...............
बहुत बढ़िया संस्मरण कल काम में व्यस्तता के कारण नहीं पढ़ पाई थी ,आप भाग्यशाली हैं जो इतने बड़े बड़े साहित्यकारों का सानिध्य प्राप्त हुआ बहुत अच्छा लगा चित्र देखकर भी और पढ़कर भी
जवाब देंहटाएंसंस्मरण...की खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपके माध्यम से हम भी बाबा से मिल लिये... :)
जवाब देंहटाएं