राज़
समझ नहीं आया है।
काले
अंग्रेजों ने अपनी,
माँ
का दूध लजाया है।।
अपने
घर में अन्न बहुत है,
फिर
क्यों हाथ पसार रहे?
अपनी
सोनचिड़य्या के,
क्यों
सारे वस्त्र उतार रहे?
मनमोहक
संगीत छोड़कर,
राग
विदेशी गाया है।
काले
अंग्रेजों ने अपनी,
माँ
का दूध लजाया है।।
कितनी
सदियों तक हमने थे,
दंश
गुलामी का झेले?
फिर स्वतन्त्रता
को पाने को,
कितने
पापड़ थे बेले?
बलिदानों
से हमने अपनी,
आजादी
को पाया है।
काले
अंग्रेजों ने अपनी,
माँ
का दूध लजाया है।।
हंस और
बगुलों की,
आपस
में कैसी नातेदारी!
कल
ये मानसरोवर पर,
कर
देंगे निज दावेदारी।
उस
थाली में छेद करो मत,
जिसमें
तुमने खाया है।।
काले
अंग्रेजों ने अपनी,
माँ
का दूध लजाया है।।
मुद्दत
से केशरक्यारी की,
विकट
समस्या लटकी है।
पाक-चीन
के कब्ज़े में,
अपनी
धरती क्यों अटकी है?
याद
करो भारत का किसने,
बँटवारा
करवाया है!
काले
अंग्रेजों ने अपनी,
माँ
का दूध लजाया है।।
|
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बुधवार, 10 अक्टूबर 2012
"राज़ समझ नहीं आया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपने ऊपर जो चित्र लगाए है उसमे एक और जोड़ना चाहूँगा - इटली के कब्जे में बाकी भारत देश ! बढ़िया रचना शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंराज समझने के लिये राजनीति समझनी होगी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति ... आभार इस उत्कृष्ट रचना के लिए
जवाब देंहटाएंकाले अंग्रेजों ने अपनी,
जवाब देंहटाएंमाँ का दूध लजाया है।।
वाह शास्त्री जी क्या खूब नाम दिया है आपने " काले अंग्रेजो………सच कहाँ कम हैं उनसे । वैसे ही तो कर्म हैं बस रंग से ही फ़र्क है
सच कहा आपने..
जवाब देंहटाएंइसे तो अपने यहां होना ही चाहिए।
देखिए कब अपना मानचित्र बदलता है।
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिव्यक्ति ...बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंकितनी सदियों तक हमने थे,
दंश गुलामी का झेले?......दंश गुलामी के थे झेले।।।
फिर स्वतन्त्रता को पाने को,....(स्वतंत्रता फिर से पाने को ....
कितने पापड़ थे बेले?
बलिदानों से हमने अपनी,
आजादी को पाया है।
काले अंग्रेजों ने अपनी,
माँ का दूध लजाया है।।
तंज लिए प्रासंगिक रचना
काले अंग्रेजों ने मा का दूध लजाया है |बहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंहम रहे ना रहे पर कुछ ऐसा कर जायेंगे,
लोग भूलना भी चाहे,तो भी भुला ना पाएंगे !
आने वाली पीढ़ियाँ पूछेंगी अवश्य..
जवाब देंहटाएंसब पकी पकाई खा रहे हैं .... सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंइस दौर की तल्ख़ हकीकत से रू-ब-रू कराती. बहुत ही प्रेरणादायक कविता. आभार.
जवाब देंहटाएंएक ही विकल्प दिख रहा है.....
जवाब देंहटाएंकरो या मरो
बहुत दूरदर्शिता कि बात कही है कविता के माध्यम से यह हमारे देश की सुरक्षा और गौरव की बात है सचमुच चिंतनीय है इस सार्थक गीत के लिए हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंsahi baat
जवाब देंहटाएंसही मुद्दे पर बहुत ही सार्थक रचना |
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट:-
ओ कलम !!
हाय हाय ये काले अंग्रेज.
जवाब देंहटाएंधिक्कार है,धिक्कार है.
आपकी प्रस्तुति आँखें खोलनेवाली है.
आभार,शास्त्री जी.