बढ़ती तानाशाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
गद्दारी के मानदण्ड सब,
मक्कारों ने तोड़ दिये।
भोली-भाली जनता के,
सख़्ती से कान मरोड़ दिये।
गन्ध दासता की आती है,
सरकारी मनचाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
भामाशाह वतन में कितने,
नेक-नीति व्यापारी हैं।
बुला रहे फिर क्यों विदेश से,
ऐसी क्या लाचारी है?
डर लगता है फिरंगियों की,
बढ़ती आवाजाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
मौन हुए सब देख रहे हैं,
चढ़ते हुए समन्दर को।
कौन कलन्दर नचा रहा है,
अंगुलियों पर बन्दर को।
किसने भरी तिजोरी अपनी,
भ्रष्टाचरण उगाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
ऊधमसिंह-आज़ाद, भगतसिंह,
फिर से रण में उतरेंगे।
जन-जन के बाँकुरे सिपाही,
दुष्टों के पर कतरेंगे।
वही बचायेंगे भारत को,
उमड़ी हुई तबाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012
"लिखो रक्त की स्याही से..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
सुन्दर चित्रांकन,बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !
BAHUT SUNDAR KAVITA
जवाब देंहटाएंजोश भर देने वाली उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंआज का ज़माना इन्ही शब्दों को लिखने की प्रेरणा देता है ..
जवाब देंहटाएंसशक्त ..
बहुत ही ओजपूर्ण और प्रेरक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसमय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईएगा,शास्त्री जी.
बहुत बढ़िया...जानदार प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंये सबसे सुन्दर..
मौन हुए सब देख रहे हैं,
चढ़ते हुए समन्दर को।
कौन कलन्दर नचा रहा है,
अंगुलियों पर बन्दर को।
किसने भरी तिजोरी अपनी,
भ्रष्टाचरण उगाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।...
वाह..
सादर
अनु
सही वक़्त है,इसी तरह के 'क्रान्ति-पन्थ'दिकालाने का !
जवाब देंहटाएंनहीं वक़्त है,फिसलन वाले,मन्त्र वर्थ सिखलाने का ||
सच है,अगर लेखनी होगी,'सच की स्याही'में डूबी-
तब आएगा,समय बाग़ में महके फूल खिलाने का ||
वाह! बहुत सार्थक अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंक्यों लगाया है उम्मीदे मुसाफिर उनसे
जवाब देंहटाएंजो खुद नाउम्मीदगी का दामन थाम बैठे है
निकला है उन्हें तु जगाने
जो सोने का बहाना कर लेटे है
अत्यन्त प्रभावी कविता..
जवाब देंहटाएंआज ऐसे हुंकारी की जरूरत है, वर्ना आने वाले समय में हम और बदतर स्थिति में होंगे हमें सही व्यक्ति को चुनना होगा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति प्रेरक रचना,,,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST: माँ,,,
अच्छा चित्रण किया है अभी की परिस्थितियों का | ओजपूर्ण और प्रभावी रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंइस ओज पूर्ण गीत में खुला आवाहन है भारत की जनता का जागो ,गद्दार देश बेच रहें हैं .
जवाब देंहटाएंएक शैर इस गीत और गीतकार के नाम -
तेरी सौदागरी ने देश का भूगोल तक बेचा ,
खुदा के वास्ते बसकर ,बचा इतिहास रहने दे .
बधाई शास्त्री जी इस जोश बढाने वाले गीत के लिए .
SORT
जवाब देंहटाएंVirendra Sharma
बृहस्पतिवार, 11 अक्तूबर 2012
"लिखो रक्त की स्याही से..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
त्रस्त हुआ है लोकतन्त्र अब.
बढ़ती तानाशाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
गद्दारी के मानदण्ड सब,
मक्कारों ने तोड़ किये।
भोली-भाली जनता के,
सख़्ती से कान मरोड़ दिये।
गन्ध दासता की आती है,
सरकारी मनचाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
भामाशाह वतन में कितने,
नेक-नीति व्यापारी हैं।
बुला रहे फिर क्यों विदेश से,
ऐसी क्या लाचारी है?
डर लगता है फिरंगियों की,
बढ़ती आवाजाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
मौन हुए सब देख रहे हैं,
चढ़ते हुए समन्दर को।
कौन कलन्दर नचा रहा है,
अंगुलियों पर बन्दर को।
किसने भरी तिजोरी अपनी,
भ्रष्टाचरण उगाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
ऊधमसिंह-आज़ाद, भगतसिंह,
फिर से रण में उतरेंगे।
जन-जन के बाँकुरे सिपाही,
दुष्टों के पर कतरेंगे।
वही बचायेंगे भारत को,
उमड़ी हुई तबाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
इस ओज पूर्ण गीत में खुला आवाहन है भारत की जनता का जागो ,गद्दार देश बेच रहें हैं .
एक शैर इस गीत और गीतकार के नाम -
तेरी सौदागरी ने देश का भूगोल तक बेचा ,
खुदा के वास्ते बसकर ,बचा इतिहास रहने दे .
बधाई शास्त्री जी इस जोश बढाने वाले गीत के लिए .
veerubhai1947.blogspot.com
बहुत ही ओजपूर्ण गीत....
जवाब देंहटाएंबहुत जबरदस्त!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
गद्दारी के मानदण्ड सब,
जवाब देंहटाएंमक्कारों ने तोड़ किये।
भोली-भाली जनता के,
सख़्ती से कान मरोड़ दिये।
गन्ध दासता की आती है,
सरकारी मनचाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
एक हुंकार भरती ओजपूर्ण रचना मन को भा गयीं
देश के वर्तमान परिदृश्य को बदल् देने का अहवाह्न करती जोशीली कविता -बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं