रचना बाँच सुवासित मन हो! पागलपन में भोलापन हो! ऐसा पागलपन अच्छा है!! घर जैसा ही बना भवन हो! महका-चहका हुआ वतन हो! ऐसा अपनापन अच्छा है!! प्यारा सा अपना आँगन हो! निर्भय खेल रहा बचपन हो! ऐसा बालकपन अच्छा है!! निर्मल सारा नील-गगन हो! खुशियाँ बरसाता सा घन हो! ऐसा ही सावन अच्छा है!! खिला हुआ अपना उपवन हो! प्यार बाँटता हुआ सुमन हो! ऐसा ही तो मन अच्छा है!! मस्ती में लहराता वन हो! हरा-भरा सुन्दर कानन हो! ऐसा ही कानन अच्छा है!! ऐसे बगिया-बाग-चमन हों! जिसमें आम-नीम-जामुन हों! ऐसा ही उपवन अच्छा है!! छाया चारों ओर अमन हो! शब्दों से सज्जित आनन हो! ऐसा जन-गण-मन अच्छा है!! ऐसा पागलपन अच्छा है!! |
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मंगलवार, 21 सितंबर 2010
"ऐसा पागलपन अच्छा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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घर जैसा ही बना भवन हो!
जवाब देंहटाएंमहका-चहका हुआ वतन हो!
ऐसा अपनापन अच्छा है!!
बहुत सुन्दर और सठिक पंक्तियाँ! इस शानदार और लाजवाब रचना के लिए बधाई!
बेहद खूबसूरत...
जवाब देंहटाएंछाया चारों ओर अमन हो!
जवाब देंहटाएंशब्दों से सज्जित आनन हो!
ऐसा जन-गण-मन अच्छा है!!
ऐसा पागलपन अच्छा है!!
बहुत सुन्दर। बधाई।
वाह. बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ...वाकई ऐसा पागलपन अच्छा है ..पर काश हो तो ..
जवाब देंहटाएंवाह वाह ……………एक बहुत ही सुन्दर रचना………॥बधाई।
जवाब देंहटाएंशानदार और लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंsir..aap to jhatpat karigiri dikha dete hai :)
जवाब देंहटाएंप्यारा सा अपना आँगन हो!
जवाब देंहटाएंनिर्भय खेल रहा बचपन हो!
ऐसा बालकपन अच्छा है ...
बहुत ही सारगर्भीत रचना है .... बहुत कमाल का लिखते हैं आप शास्त्री जी ....
आपकी कविता आये,
जवाब देंहटाएंपढ़ना अच्छा लगता है।
पागलपन अच्छा है ..
जवाब देंहटाएंअत्यंत सटीक रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह. बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंघर जैसा ही बना भवन हो!
महका-चहका हुआ वतन हो!
ऐसा अपनापन अच्छा है!!
लाजवाब रचना
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर
सुन्दर
_________सुन्दरतम काव्य
धन्यवाद शास्त्री जी !
बहुत ही कमाल का पागलपन है ये तो शास्त्री जी कोमल निर्मल रचना ...आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ....आभार
जवाब देंहटाएंइस रचना का वाचन भी अच्छा है ।
जवाब देंहटाएंआमीन... बहुत सुन्दर मनोभाव..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंसमझदारों को देखकर लगता है ...
जवाब देंहटाएंपागलपन ही अच्छा है ...!
पागलपन में भोलापन हो!
ऐसा पागलपन अच्छा है!!
प्यारा सा अपना आँगन हो!
जवाब देंहटाएंनिर्भय खेल रहा बचपन हो!
ऐसा बालकपन अच्छा है!!
...बड़ी प्यारी लगी ये पंक्तियाँ..सशक्त रचना के लिए बधाई.
Very nice
जवाब देंहटाएंsundar abhivyakti!
जवाब देंहटाएंHappy Anant Chaturdashi
GANESH ki jyoti se noor miltahai
sbke dilon ko surur milta hai,
jobhi jaata hai GANESHA ke dwaar,
kuch na kuch zarror milta hai
“JAI SHREE GANESHA”
खिला हुआ अपना उपवन हो!
जवाब देंहटाएंप्यार बाँटता हुआ सुमन हो!
ऐसा ही तो मन अच्छा है!!
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बहुत बढ़िया गीत की सबसे बढ़िया पंक्तियाँ!