चंचल मन होता मतवाला। बचपन होता बहुत निराला।। |
दीवारों पर चित्र बनाते, देख तितलियाँ रंग-बिरंगी। बैंगन-आम और लौकी की, चित्रकला करते बेढंगी। पापा-मम्मी खुश हो जाते, जब करता था पन्ना काला। बचपन होता बहुत निराला।। जी भरकर तब खेल खेलते, कभी-कभी गुस्सा दिखलाते। लेकिन गाँठ न मन में रखते, फिर संगी-साथी बन जाते। बस्ता-तख्ती लेकर जातीं, संग में मेरे मुन्नी-माला। बचपन होता बहुत निराला।। बगिया में चुपके से जाते, कच्चे आम तोड़कर लाते। फिर चटकारे लेकर खाते, पापाजी तब डाँट पिलाते, जब घर में आ जाता, मेरे पीछे-पीछे अमियोंवाला। |