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सोमवार, 31 अगस्त 2009

‘‘खारों को हमने मान लिया सिर्फ फूल है’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


हमने बनाए जिन्दगी में कुछ उसूल हैं।
गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।।

हमने तो पड़ोसी को अभय-दान दिया है,
दुश्मन को दोस्त जैसा सदा मान दिया है,
बस हमसे बार-बार हुई ये ही भूल है।
गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।।

साबुन से धोया हमने गधों को हजार बार,
लेकिन कभी न आया उनमें गाय सा निखार,
क्यों पथ में बार-बार बिछाते वो शूल हैं।
गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।।

हम जोर-जुल्म के कभी आगे न झुकेंगे,
जल-जलों तूफान से डर कर न रुकेंगे,
खारों को हमने मान लिया सिर्फ फूल है।
गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।।

शनिवार, 29 अगस्त 2009

’’अगर हो सके तो इशारे समझना’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


इशारों-इशारों में हम कह रहे हैं,
अगर हो सके तो इशारे समझना।


मेरे भाव अल्फाज बन बह रहे हैं,
नजाकत समझना नजारे समझना।
अगर हो सके तो इशारे समझना।।


शजर काट नंगा बदन कर रहे हैं,
मझधार को मत किनारे समझना।
अगर हो सके तो इशारे समझना।।


समाया दिमागों में दूषित प्रदूषण,
दरिया को गन्दे ही धारे समझना।
अगर हो सके तो इशारे समझना।।


कहर बो रहे हैं, जहर खा रहे हैं,
बशर सारे किस्मत के मारे समझना
अगर हो सके तो इशारे समझना।।


जो तूती की आवाज को मन्द कर दें,
उन्हें ढोल-ताशे , नगारे समझना
अगर हो सके तो इशारे समझना।।


जिसे पाक माना था नापाक निकला,
ये माथे का काजल हमारे समझना।
अगर हो सके तो इशारे समझना।।

’’बुज-दिली के मत निशान दो’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


जिन्दा हो गर, तो जिन्दादिली का प्रमाण दो।
मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।।

स्वाधीनता का पाठ पढ़ाया है राम ने,
क्यों गिड़िगिड़ा रहे हो शत्रुओं के सामने,
अपमान करने वालों को हरगिज न मान दो।
मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।।

तन्द्रा में क्यों पड़े हो, हिन्द के निवासियों,
सहने का वक्त अब नही, भारत के वासियों,
सौदागरों की बात पर बिल्कुल न ध्यान दो।
मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।।

कश्मीर का भू-भाग दुश्मनों से छीन लो,
कैलाश-मानसर को भी अपने अधीन लो,
चीन-पाक को नही रज-कण का दान दो।
मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।।

शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

‘‘आज जरूरत है प्रताप जैसे तेवर अपनाने की’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)




माँ मुझको ताकत देना, कुछ अभिनव छन्द बनाने की।
आज जरूरत है जन-जन के सोये सुमन जगाने की।।

आँखे करके बन्द चमन के माली अलसाये हैं,
नौनिहाल पादप जीवन बगिया में मुरझाये हैं,
आज जरूरत है धरती में, शौर्य बीज उपजाने की।
आज जरूरत है जन-जन के सोये सुमन जगाने की।।

मँहगाई की चक्की में, निर्धन जन पिसते जाते हैं,
ढोंगी सन्त-महन्त मजे से, चन्दन घिसते जाते हैं,
आज जरूरत रावण से, सीता की लाज बचाने की।
आज जरूरत है जन-जन के सोये सुमन जगाने की।।

राम-कृष्ण की मर्यादा का ध्यान हमें धरना है,
दानव और दुर्दान्त-द्रोहियों का मर्दन करना है,
आज जरूरत है प्रताप जैसे तेवर अपनाने की।
आज जरूरत है जन-जन के सोये सुमन जगाने की।।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

गुरुवार, 27 अगस्त 2009

‘‘उल्लू और गधा’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


उल्लू
तो
था ही उल्लू



और



गधा,
कल तक था
भार से लदा,

लेकिन
अब दोनों की,
किस्मत निखर गई है
सारे उल्लुओं
और
गधों की
जिन्दगी सँवर गई है
जंगल-राज में,
अब इनकी ही तो सरकार है!
संसद में
उल्लुओं
और
गधो की ही तो भरमार है!!
(चित्र गूगल सर्ज से साभार)

बुधवार, 26 अगस्त 2009

‘‘हम तो नेता हैं फकत जूतें ही खाना जानते हैं’’ (डा0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)



काम कुछ करते नही बातें बनाना जानते हैं।

हम तो नेता हैं फकत जूतें ही खाना जानते हैं।।


मुफ्त का खाया है अब तक और खायेंगे सदा,

जोंक हैं हम तो बदन का खून पीना जानते हैं।

हम तो नेता हैं फकत जूतें ही खाना जानते हैं।।


राम से रहमान को हमने लड़ाया है सदा,

हम मजहब की आड़ में रोटी पकाना जानते हैं।

हम तो नेता हैं फकत जूतें ही खाना जानते हैं।।


गाय की औकात क्या? हम दुह रहे हैं सांड भी,

रोजियाँ ताबूत में से हम कमाना जानते हैं।

हम तो नेता हैं फकत जूतें ही खाना जानते हैं।।


दाँत खाने के अलग हैं और दिखाने के अलग,

थूक आँखों में लगा आँसू बहाना जानते हैं।

हम तो नेता हैं फकत जूतें ही खाना जानते हैं।।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

‘‘जलवे ही जलवे मेरे देश में हैं’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)



ठलवे ही ठलवे मेरे देश में हैं।
जलवे ही जलवे मेरे देश में हैं।।

भवन खोखला कर दिया है वतन का,
अमन-चैन छीना है अपने चमन का,
बलवे ही बलवे मेरे देश में हैं।
जलवे ही जलवे मेरे देश में हैं।।

नेताओं ने चाट ली सब मलाई,
बुराई के डर से छिपी है भलाई,
हलवे ही हलवे मेरे देश में हैं।
जलवे ही जलवे मेरे देश में हैं।।

चारों तरफ है अहिंसा का शोषण,
घर-घर में पैदा हुए हैं विभीषण,

मलवे ही मलवे मेरे देश में हैं।
जलवे ही जलवे मेरे देश में हैं।।

सोमवार, 24 अगस्त 2009

‘‘मन में फिर आनन्द समाया’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


तुम आये तो जीवन आया,
मन में फिर आनन्द समाया।

गीत रचाया हमने पूरा,
लेकिन लगता हमें अधूरा,
तुम आये तो सावन आया,
शब्दों में फिर बन्द समाया।
मन में फिर आनन्द समाया।।

केशर-क्यारी महक रही थी,
श्वाँस हमारी बहक रही थी,
आकर तुमने गले लगाया,
सुन्दर सुर में छन्द सुनाया,
मन में फिर आनन्द समाया।

रविवार, 23 अगस्त 2009

‘‘बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


वक्त सही हो तो सारा, संसार सुहाना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।।

यदि अपने घर व्यंजन हैं, तो बाहर घी की थाली है,
भिक्षा भी मिलनी मुश्किल, यदि अपनी झोली खाली है,
गूढ़ वचन भी निर्धन का, जग को बचकाना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।।

फूटी किस्मत हो तो, गम की भीड़ नजर आती है,
कालीनों को बोरों की, कब पीड़ नजर आती है,
कलियों को खिलते फूलों का रूप पुराना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।।

धूप-छाँव जैसा, अच्छा और बुरा हाल आता है,
बारह मास गुजर जाने पर, नया साल आता है,
खुशियाँ पा जाने पर ही अच्छा मुस्काना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।।

शनिवार, 22 अगस्त 2009

‘‘गुब्बारे’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")



बच्चों को लगते जो प्यारे।

वो कहलाते हैं गुब्बारे।।

गलियों, बाजारों, ठेलों में।

गुब्बारे बिकते मेलों में।।



काले, लाल, बैंगनी, पीले।

कुछ हैं हरे, बसन्ती, नीले।।


पापा थैली भर कर लाते।

जन्म-दिवस पर इन्हें सजाते।।



गलियों, बाजारों, ठेलों में।

गुब्बारे बिकते मेलों में।।


फूँक मार कर इन्हें फुलाओ।

हाथों में ले इन्हें झुलाओ।।


सजे हुए हैं कुछ दुकान में।

कुछ उड़ते हैं आसमान में।।


मोहक छवि लगती है प्यारी।

गुब्बारों की महिमा न्यारी।।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

‘क्षणिका’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


कल तक
हनुमान कहाता था,
संकट-मोचन
कहलाता था,
अब रावण मुझे बनाया है,
तो युद्ध करो!
मैं भी देखता हूँ,
बिना हनुमान के,
श्री राम की
जय कौन बोलेगा?
विदेशों में
आतंकियों से
समझौता करने
कौन जायेगा?

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

‘‘काँटों को फूल मान, चमन में सजा लिया’’ (डॉ रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)





जीने का ढंग हमने, ज़माने में पा लिया।

सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।।


दुनिया में जुल्म-जोर के, देखें हैं रास्ते,

सदियाँ लगेंगी उनको, भुलाने के वास्ते,

जख्मों में हमने दर्द का, मरहम लगा लिया।

सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।।


हमने तो दुश्मनों की, हमेशा बड़ाई की,

पर दोस्तों ने बे-वजह, हमसे लड़ाई की,

हमने वफा निभाई, उन्होंने दगा किया।

सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।।


आया गमों का दौर तो, दिल तंग हो गये,

मित्रों में मित्रता के भाव, भंग हो गये,

काँटों को फूल मान, चमन में सजा लिया।

सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

बुधवार, 19 अगस्त 2009

‘‘पड़ोसी से पड़ोसी का, हमें रिश्ता निभाना है’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


जमाना है तो हम-तुम हैं, जमाना तो जमाना है।
यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।।

कहीं रातें उजाली हैं, दिवस में भी अन्धेरा है,
खुले जब आँख तो समझो, तभी आया सवेरा है,
परिन्दे को बहुत प्यारा, उसी का आशियाना है।
यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।।

अगर है प्यार दोजख़ में, तो जन्नत की जरूरत क्या?
बिना माँगे मिले जब सब, तो मन्नत की जरूरत क्या?
मुहब्बत की नई राहों को, दुनिया को दिखाना है।
यही पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।।

जो अपने दिल की यादों को बगीचों में सजाते हैं,
नियम से पेड़-पौधों को जो उपवन में उगाते है,
खुशी से हर कली को फूल बनकर मुस्कराना है।
यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।।

कुटिलता की कहानी को हमें कहना नही आता,
हमें अन्याय-अत्याचार को सहना नही आता,
यही सन्देश दुनिया भर को गा करके सुनाना है।
यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।।

जिन्हें अपना फटा दामन कभी सीना नही आया,
सलीके से सुखी होकर जिन्हें जीना नही आया,
उन्हें सदभावना का मन्त्र हमको ही सिखाना है।
यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।।

जिन्हें बढ़ने की आदत है, उन्हे रुकना नही आता,
जिन्हें लड़ने की आदत है, उन्हें झुकना नही आता,
पड़ोसी से पड़ोसी का, हमें रिश्ता निभाना है।
यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।।

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

‘‘घर में पानी, बाहर पानी’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

खटीमा में बाढ़ के ताज़ा हालात के लिए लिंक
http://uchcharandangal.blogspot.com/2009/08/blog-post_18.html

http://uchcharandangal.blogspot.com/2009/08/blog-post_17.html


जब सूखे थे खेत-बाग-वन,
तब रूठी थी बरखा-रानी।
अब बरसी तो इतनी बरसी,
घर में पानी, बाहर पानी।।

बारिश से सबके मन ऊबे,
धानों के बिरुए सब डूबे,
अब तो थम जाओ महारानी।
घर में पानी, बाहर पानी।।

दूकानों के द्वार बन्द हैं,
शिक्षा के आगार बन्द है,
राहें लगती हैं अनजानी।
घर में पानी, बाहर पानी।।

गैस बिना चूल्हा है सूना,
दूध बिना रोता है मुन्ना,
भूखी हैं दादी और नानी।
घर में पानी, बाहर पानी।।

बाढ़ हो गयी है दुखदायी,
नगर-गाँव में मची तबाही,
वर्षा क्या तुमने है ठानी।
घर में पानी, बाहर पानी।।


सोमवार, 17 अगस्त 2009

‘‘बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

जिन्दगी चल रही चिमनियों की तरह।

बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।


लाडलों के लिए पूरे घर-बार हैं,

लाडली के लिए संकुचित द्वार हैं,

भाग्य इनको मिला कंघियों की तरह।

बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।


रंक माता पिता की हैं मुश्किल बढ़ी,

ताड़ सी पुत्रियों की हैं चिन्ता बड़ी,

भूख वर की बढ़ी भेड़ियों की तरह।

बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।


शादियों में बहुत माँग जर की बढ़ी,

नोट की गड्डियों पर नजर हैं गड़ी,

रोग है बढ़ रहा कोढ़ियों की तरह।

बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।


ये ही पीड़ा हृदय में रहेगी सदा,

लेखनी दर्द इनका लिखेगी सदा,

इनकी ससुराल है बेड़ियों की तरह।

बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।

‘‘इस कदर बढ़ गई, व्यक्ति की व्यस्तता’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


आज का है पता और न कल का पता।
पाप और पुण्य के भी न फल का पता।।

हमने दुर्गम डगर पर बढ़ाये कदम,
हँसते-हँसते मिले, हर मुसीबत से हम,
हमको इन्सानियत के न छल का पता।
पाप और पुण्य के भी न फल का पता।।

हमने तूफान में रख दिया है दिया,
आँसुओं को सुधा सा समझकर पिया,
भव के सागर के कोई न तल का पता।
पाप और पुण्य के भी न फल का पता।।

हम तो जिससे मिले, खोलकर दिल मिले,
किन्तु वो जब मिले, फासलों से मिले,
इस कदर बढ़ गई, व्यक्ति की व्यस्तता।
पाप और पुण्य के भी न फल का पता।।

शनिवार, 15 अगस्त 2009

‘‘मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरे प्यारे वतन, जग से न्यारे वतन।

मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।

अपने पावों को रुकने न दूँगा कहीं,
मैं तिरंगे को झुकने न दूँगा कहीं,
तुझपे कुर्बान कर दूँगा मैं जानो तन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।

जन्म पाया यहाँ, अन्न खाया यहाँ,
सुर सजाया यहाँ, गीत गाया यहाँ,
नेक-नीयत से जल से किया आचमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।

तेरी गोदी में पल कर बड़ा मैं हुआ,

तेरी माटी में चल कर खड़ा मैं हुआ,

मैं तो इक फूल हूँ तू है मेरा चमन।

मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।


स्वप्न स्वाधीनता का सजाये हुए,
लाखों बलिदान माता के जाये हुए,
कोटि-कोटि हैं उनको हमारे नमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।


जश्ने आजादी आती रहे हर बरस,
कौम खुशियाँ मनाती रहे हर बरस,
देश-दुनिया में हो बस अमन ही अमन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

गुरुवार, 13 अगस्त 2009

‘‘दुनिया में दहशत फैलाना, फितरत है शैतानों की’’(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


गल्ती करना और पछताना, आदत है इन्सानों की।
गल्ती पर गल्ती करना ही, आदत है हैवानों की।।

दर्द पराया अपने दिल में, जिस मानव ने पाला है,
उसके जीने का तो बिल्कुल ही अन्दाज निराला है,
शम्मा पर जल कर मर जाना, चाहत है परवानों की।
गल्ती पर गल्ती करना ही, आदत है हैवानों की।।

मित्र-पड़ोसी के अन्तर में, जब तक पलती दूरी हैं,
तब तक होगी मैत्री भावना की कल्पना अधूरी हैं,
बेदिल वालों की दुनिया में, दुर्गत है अरमानों की।
गल्ती पर गल्ती करना ही, आदत है हैवानों की।।

खाया नमक देश का लेकिन नमक हलाली भूल गया,
अन्धा होकर दहशतगर्दों के हाथों में झूल गया,
दुनिया में दहशत फैलाना, फितरत है शैतानों की।
गल्ती पर गल्ती करना ही, आदत है हैवानों की।।

बुधवार, 12 अगस्त 2009

‘‘तो मिलने श्याम आयेंगे’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


स्वयं मिट जायेगी दूरी, अगर है कामना सच्ची।
मिलेगी प्यार की नेमत, अगर है भावना अच्छी।।

जलेंगे दीप खुशियों के, अगर हो स्नेह की बाती।
बनेंगे गैर भी अपने, अगर हो नेह की पाती।।

इरादे नेक होंगे तो, समन्दर थाह दे देंगे।
अगर मजबूत जज्बा है, सिकन्दर राह दे देंगे।।

अगर तुलसी सी भक्ति है, तो मिलने राम आयेंगे।
जो है मीरा सी आसक्ति, तो मिलने श्याम आयेंगे।।

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

‘‘वो तो बेदिल रहे, हम तो बा-दिल हुए’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


जीते जी मेरे घर वो ना दाखिल हुए।

मेरी मय्यत में ही वो तो शामिल हुए।।


बाट तकते रहे, ख्वाब बुनते रहे,

उनकी राहों से काँटे ही चुनते रहे,

जान बिस्मिल हुई, फूल कातिल हुए।

मेरी मय्यत में ही वो तो शामिल हुए।।


हम इधर से गये, वो उधर हो गये,

जिनके कारण जगे, वो मगर सो गये,

हमने उनको पुकारा, वो गाफिल हुए।

मेरी मय्यत में ही वो तो शामिल हुए।।


दिल धड़कता रहा, साँस चलती रही,

मन फड़कता रहा, आस पलती रही,

हम तो अव्वल रहे वो ही बातिल हुए।

मेरी मय्यत में ही वो तो शामिल हुए।।


अन्त में मिलने आये वो बा-कायदा,

अब तो आने से कोई नही फायदा,

वो तो बेदिल रहे, हम तो बा-दिल हुए।

मेरी मय्यत में ही वो तो शामिल हुए।।

सोमवार, 10 अगस्त 2009

‘‘बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में।
मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।

नीचे से लेकर ऊपर तक, भ्रष्ट-आवरण चढ़ा हुआ,
झूठे, बे-ईमानों से है, सत्य-आचरण डरा हुआ,
दाल और चीनी भरे पड़े हैं, तहखानों आगारों में।
मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।

नेताओं की चीनी मिल हैं, नेता ही व्यापारी हैं,
खेतीहर-मजदूरों का, लुटना उनकी लाचारी हैं,
डाकू, चोर, लुटेरे बैठे, संसद और सरकारों में।
मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।

आजादी पूँजीपतियों को, आजादी सामन्तवाद को,
आजादी ऊँची-खटियों को, आजादी आतंकवाद को,
निर्धन नारों में बिकता है, गली और बाजारों में।
मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

‘‘मैंने मदद को पुकारा नही’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरे आँगन में उतरे सितारे बहुत,

किन्तु मैंने मदद को पुकारा नही।


तक रहे थे मुझे हसरतों से बहुत,

मैंने हाँ भी न की और नकारा नही।


मेरी खुद्दारियाँ आड़े आतीं रहीं,

मैंने माँगा किसी से सहारा नही।


बस इसी बात का ही तो अफसोस है,

जो हमारा था वो भी हमारा नही।


अपने गम आँसुओं में बहाते रहे,

हमने तन और मन को सँवारा नही।


बन्दगी में कहा मैंने कुछ भी नही,

इसलिए उसने सोचा विचारा नही।


बन गई टिप्पणी में गज़ल ये सजल,

बून्द छोटी सी है जल की धारा नही।

रविवार, 9 अगस्त 2009

राजकिशोर राज की कलम से-प्रस्तुति डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"


अच्छा नहीं होता।

शराफ़त का सियासत में, ’दखल’ अच्छा नहीं होता।
कि गंगा में खिले जैसे, ’कमल’ अच्छा नहीं होता।
नकल से पास होते हैं, अधिकतर आज के बच्चे,
कोई मेहनत करे फिर हो, ’सफल’ अच्छा नहीं होता।
लफंगा जब सड़क पर, छेड़ता हो एक अबला को,
पलट लो उस जगह कोई, ’सबल’ अच्छा नहीं होता।
पुलिस पीटे शरीफों को, ये कसरत रोज की उनकी,
पुलिस का यूँ बनाना क्या, ’मसल’ अच्छा नहीं होता।
जो मांगे घूस में बाबू, तो उसका हाफ झट देदो,
कहो उससे कि हक ये है, ’डबल’ अच्छा नहीं होता।
बिना शादी कोई जोड़ा, मिले कॉन्ट्रैक्ट पर रहता,
गलत क्या क्युँ करे शादी, ’अमल’ अच्छा नहीं होता।
मियाँ-बीबी जो पकड़े पार्क में, अदना पुलिस वाला,
सही है पार्क में मैरिड, ’कपल’ अच्छा नहीं होता।
गरीबों को बनाया रोज, शोषण के लिए रब ने,
कि शोषण पर करे कोई, ’टसल’ अच्छा नहीं होता।
पोएट्री हो चुकी बेतुक, कहो तुम ’राज’ बेतुक ही,
लगाना तुक मिलाने में, ’अकल’ अच्छा नहीं होता।

शनिवार, 8 अगस्त 2009

‘‘हूर कब लंगूर को पहचानती है’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

हूर कब लंगूर को पहचानती है।
चश्म केवल नूर को ही जानती है।।

गीत और मल्हार के स्वर गौण हैं,
गजल और कव्वालियाँ भी मौन हैं,
नयी पीढ़ी पॉप को ही मानती है।
चश्म केवल नूर को ही जानती है।।

ढंग जीने का हुआ बिल्कुल निराला,
दोस्त देता जहर का पल-पल निवाला,
वैर शाखाएँ शजर से ठानती है।
चश्म केवल नूर को ही जानती है।।

कल्पनाओं को नही आकार मिलता,
ढूँढने से भी नही बेगार मिलता,
खाक दर-दर की जवानी छानती है।
चश्म केवल नूर को ही जानती है।।

शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

कदर सूअर की.......(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

(सूअर का चित्र गूगल से साभार, बाकी ताऊ के ब्लॉग से साभार उड़ाए हैं)



बशर कब हश्र को पहचानता है।
कदर सूअर की सूअर जानता है।।

स्वाइन फ्लू आ रहा है....



‘‘मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


आज फिर टिपियाने में गीत बन गया।


मखमली ख्वाब आखों में चलता रहा।

मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा।।


अश्क मोती से बन मुस्कुराने लगे,

मन में सोये सुमन खिलखिलाने लगे,

सुख सँवरता रहा, दर्द जलता रहा।

मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा।।


तुम जो ओझल हुए अटपटा सा लगा,

जब दिखाई दिये चटपटा सा लगा,

ताप बढ़ता रहा, तन सुलगता रहा।

मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा।।


उर के मन्दिर में ही प्रीत पलती सदा,

शैल-खिखरों से गंगा निकलती सदा,

स्वप्न मेरा हकीकत में ढलता रहा।

मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा।।

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

’’सूअर कौन?’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)



मैं
गलियों
सड़कों
और
नालियों को
साफ करता हूँ,
गन्दगी को
चट कर जाता हूँ,
और
सूअर कहलाता हूँ,
परन्तु
आप तो
मुझको ही
चट कर जाते हो,
जी हाँ!
मैं सूअर हूँ,
और
आप..................?

बुधवार, 5 अगस्त 2009

"ताऊ बहुत महान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')




इस असार संसार में, ब्लाग बड़ी है चीज।

ताऊ बहुत महान है, बाकी सब नाचीज।।


एक समीरानन्द हैं, दूजे अनूप आनन्द।
कथा श्रवण हैं कर रहे, ताऊ घोंघानन्द।।

चौथे की गलती नही, ब्लाग-जगत में दाल।
क्योंकि लोग निकालते, यहाँ बाल की खाल।।

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

‘‘हाइकू’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)



जापानी छन्द ‘‘हाइकू’’ में बने तीन चित्र


भार से कैसा लदा है?
लेकिन चलता जा रहा है,
आदमी क्या गधा है?


-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-


लैला तो एक है,
पागल हुए घूम रहे,
मजनूँ अनेक हैं,


-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-


एक ही अनार है,
खाने को हो रहे उतावले,
सैकड़ों बीमार हैं,
-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-



सोमवार, 3 अगस्त 2009

‘‘खाज में कोढ़ के दाखले मत करो’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


दूरिया कम करो फासले मत करो।
खाज में कोढ़ के दाखले मत करो।।

दौलतें बढ़ गईं दिल हुए तंग है,
कालिमा चढ़ गई, नूर बे-रंग है,
आग के ढेर पर घोंसले मत धरो।
खाज में कोढ़ के दाखले मत करो।।

मन में बैठे कुटिल पाप को कम करो,
बनके बादल सघन ताप को कम करो,
फूट और लूट के हौंसले मत करो।
खाज में कोढ़ के दाखले मत करो।।

वो ही दैरो-हरम में समाया हुआ,
नूर दुनिया में उसका ही छाया हुआ,
दीन-ईमान के चोंचले मत करो।
खाज में कोढ़ के दाखले मत करो।।

भाई-चारा निभाना सदा प्यार से,
रोग हरना सदा श्रेष्ठ उपचार से,
मखमली ख्वाब हैं खोखले मत करो।
खाज में कोढ़ के दाखले मत करो।।

‘‘देवदत्त प्रसून की कलम से’’ प्रस्तुति-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’



छल की गागर छलकी रे।



छल की गागर छलकी रे।
हवा चली जहरीली,
हलकी-हलकी रे।।

कपट हाथ से विनाश ढपली,
बजा रही है तृणा पगली,
मिटा ‘आज’ को चिन्ता करती,
देखो कितनी ‘कलकी’ रे।
छल की गागर छलकी रे।।

अरे ततैया सुन्दर लगती,
नस में डसे तो आग सुलगती,
धोखा नजर न खाये देखो,
खबर रखो पल-पल की रे।
छल की गागर छलकी रे।।

उर के सारे भाव खोल कर,
मन के मोती सब टटोल कर,
भेद खोलतीं चुपके-चुपके,
नैन से बून्दें ढलकीं रे।
छल की गागर छलकी रे।।

‘रात’ रोशनी निगल चुकी है,
लिए कालिमा निकल चुकी है,
इन जलते-बुझते तारों की,
चमक दिखाती झलकी रे।
छल की गागर छलकी रे।।


रविवार, 2 अगस्त 2009

‘‘जिसको चाहो गले से लगा लीजिए‘‘ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)



हार भी है यहीं, जीत भी है यहीं,
जिसको चाहो उसी का मजा लीजिए।

शत्रु भी हैं यहीं, मीत भी है यही,
जिसको चाहो गले से लगा लीजिए।।

दिल में बहने लगें भाव जब आपके,
गीत और छन्द को तब सजा लीजिए।
जिसको चाहो गले से लगा लीजिए।।

दोस्ती में बहुत बन्दिशें है भरी,
दुश्मनी एक पल में बजा लीजिए।
जिसको चाहो गले से लगा लीजिए।।

नेक कामों का फल देर से आयेगा,
देखना है मजा तो दगा कीजिए।
जिसको चाहो गले से लगा लीजिए।।

शनिवार, 1 अगस्त 2009

‘‘जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)



जो हैं कोमल-सरल उनको मेरा नमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।


पेड़ अभिमान में थे अकड़ कर खड़े,
एक झोंके में वो धम्म से गिर पड़े,
लोच वालो का होता नही है दमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

सख्त चट्टान पल में दरकने लगी,
जल की धारा के संग में लुढ़कने लगी,
छोड़ देना पड़ा कंकड़ों को वतन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।


घास कोमल है लहरा रही शान से,
सबको देती सलामी बड़े मान से,
आँधी तूफान में भी सलामत है तन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

‘‘राज किशोर सक्सेना ‘राज’ की कलम सेः प्रस्तुति-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’




तुम गद्य क्षेत्र के महारथी,
शब्दों के कुशल चितेरे थे।
हर मनोभावों के शब्द-चित्र,
गढ़-गढ़ कर तीव्र उकेरे थे।

जो लिखा वही इतिहास बना,
जो कहा वही प्रतिमान हुआ।
हर शब्द कलम से जो निकला,
नव-सूरज सा गतिमान हुआ।

जो कथा कही वह अमर हुई,
एक मापदण्ड का रूप बनी।
हर उपन्यास जनप्रिय बना,
गाथा जन का प्रतिरूप बनी।

जो लिखा गजब का लेखन था,
हर पात्र बोलता लगता था।
वह रोता था, सब रोते थे,
सब हँसते थे जब हँसता था।

है अतुल तुम्हारा योगदान,
भाषा का रूप सँवारा है।
हे गद्य विधा के प्रेमचन्द्र!
तुमको शत् नमन हमारा है।।

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प्यार अनुबन्धों की मत बात करो अनुभावों की छिपी धरोहर अनुभावों की धरोहर अनुवाद अनुवादक : डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” अनोखा संस्मरण (परलोक) अनोखी गन्ध अन्त किया अत्याचारी का अन्तरजाल अन्तरजाल हुआ है तन अन्तरराष्ट्रीय नारि-दिवस पर दो व्यंग्य रचनाएँ अन्तरराष्ट्रीय मित्रता-दिवस अन्तर्जाल अन्तर्राष्टीय मूर्ख दिवस अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन की चित्रावली अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस अन्तस आशाएँ मुस्काती हैं अन्तस् मैले हैं अन्धविश्वास या इत्तफाक अन्धा कानून अन्न उगाओ अन्नकूट अन्नकूट (गोवर्धनपूजा) अन्नकूट त्यौहार अन्नकूट पूजा अन्नकूट पूजा करो अन्नकूट/गोवर्धन पूजा अन्ना अन्ना हजारे अन्ना-रामदेव अन्र्तरजाल अपना गणतन्त्र अपना चौकीदार अपना दामन सिलना होगा अपना देश महान अपना धर्म निभाओगे कब अपना नीड़ बनाया है अपना नैनीताल अपना बना गया कोई अपना भगवा रंग अपना भारत देश अपना भारत देश महान अपना शीश नवाता हूँ अपना हिन्दुस्तान अपना है गणतंत्र महान अपनायेंगे योग अपनावतन अपनी आजादी अपनी बेरी गदरायी है अपनी भाषा मौन अपनी भाषा हिन्दी अपनी माटी गीत सुनाती अपनी मुरलिया बना तो अपनी मेहनत से मुकद्दर को बनाना चाहिए अपनी रक्षा का बहन अपनी वाणी मधुर बनाओ अपनी हिन्दी अपनीआजादी अपनीबात अपने छोटे से जीवन में अपने ज़माने याद आते हैं अपने पैर पसार चुका है अपने भारत को करता हूँ शत्-शत् नमन अपने मन को बहलाते हैं अपने वीर जवान अपने शब्दों में धार भरो अपने सढ़सठ साल अपने स्वर में गाते हैं अपने हिन्दुस्तान की अपराधी-कुख्यात बन गया अफजलगुरू अब आ जाओ कृष्ण-कन्हैया अब आँगन में वृक्ष अब इस ओमीक्रोन से अब कागा की काँव में अब कैसे सुधरें हाल सुनो अब गर्मी पर चढ़ी जवानी अब जगत के बन्धनों से मुक्त होना चाहता हूँ अब जम्मू-कश्मीर की ध्वस्त करो सरकार अब जलधार कहाँ से लाऊँ अब जला लो मशालें अब जूते के सामने अब झूठे सम्मान अब तक का लोखा जोखा अब तो करो प्रहार अब तो जम करके बरसो अब तो दुआ-सलाम अब तो युद्ध जरूरी है अब न कुठाराघात करो अब नीड़ बनाना है अब पढ़ना मजबूरी है अब पैंतालिस वर्ष अब बसन्त आने वाला है अब बसन्त आयेगा अब भी वीर सुभाष के अब मिट गया वजूद अब मेरी तबियत ठीक है अब मेरे सिर पर नहीं अब हिन्दी की धूम अबकी बार दिवाली में अभिनय करते लोग अमन अमन का सन्देश अमन चाँदपुरी अमन हो गया गोल अमर बारती अमर भारती अमर भारती जिन्दाबाद अमर रहे साहित्य अमर रहेगा जगत में अमर वीरंगना लक्ष्मीबाई की 159वीं पुण्यतिथि अमर वीरंगना लक्ष्मीबाई के 185वें जन्मदिवस पर अमर वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई अमर वीरांगना लक्ष्मीबाई और श्रीमती इन्दिरा गांधी का जन्मदिवस अमरउजाला अमरभारती अमरभारती पहेली 100 के परिणाम अमरूद अमरूद गदराने लगे अमल-धवल होता नहीं अमलतास अमलतास का रूप अमलतास का हो गया अमलतास के गजरे अमलतास के झूमर अमलतास के पीले गजरे अमलतास के पीले झूमर अमलतास के पीले झूमर बहुत लुभाते हैं अमलतास के फूल अमलतास खिलता-मुस्काता अमलतास तुम धन्य अमलतास राहत पहुँचाता अमिया अमृता पांडे अम्बेदकर जी का जन्मदिन अयोध्या पर फैसला अरमानों की डोली अर्चना चावजी अर्चना चावजी और रचनाबजाज अर्चना-रचना अर्चाना चावजी अर्द्धकुम्भ की धूम अलग सा लिखो अब गजल-गीत में अलग-अलग हैं राग अलबेला खत्री जी को श्रद्धाजलि अलाव अशोक कुमार मिश्र असली 'रूप' दिखाता दर्पण असार-संसार अस्तित्व अस्मत बचाना चाहिए अहंकार की हार अहसास अहोई अष्टमी अहोईअष्टमी आ गई गुलशन में फिर बहार आ गया नव वर्ष फिर से आ गया बसन्त. बसन्तपंचमी आ गयी दीपावली आ गये नेता नंगे आ 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कबीर आये हैं शैतान आयेगा इस बार भी नया-नवेला साल आरती आरती उतार लो आरती उतार लो आ गया बसन्त है आराधना आर्य समाज: बाबा नागार्जुन की दृष्टि में आलिंगन उपहार आलिंगन-दिवस (HUG_DAY) आलिंगन/चुम्बन दिवस आलिंगनदिवस आलू आलूबुखारा आलेख आलोकित परिवेश आल्हा आवश्यक सामान आवश्यक सूचना आवागमन आशा आशा का चमत्कार आशा का दीप जलाया क्यों आशा के दीप जलाओ तो आशा पर उपकार टिका है आशा शैली आशा है आशाएँ मुस्काती हैं आशाएँ विश्वास जगाती आशाओं पर प्यार टिका है आशियाना चाहिए आशीष का आशीष तुम्हें मैं देता आशु-कविता आसमान आसमान का छोर आसमान की झोली से... आसमान के दीप आसमान में आसमान में कुहरा छाया आसमान में छाये बादल आसमान में बादल छाया आस्था-विश्वास आह्वान इंसान बदलते देखे हैं इंसानियत का रूप इंसानी पौध उगाओ इंसानी भगवानों में इक मौन-निमन्त्रण तो दे दो इक शामियाना चाहिए इक्कीस दोहे इतनी मत मनमानी कर इतने न तुम ऐंठा करो इदारे बदल गये इनकी किस्मत कौन सँवारे इन्तज़ार इन्दिरा गांधी इन्दिरा! भूलेंगे कैसे तेरो नाम इन्द्र बहादुर सेन इन्द्रधनुष का चौमासे में “रूप” हमें दिखलाते हैं इन्द्रधनुष का रूप हमें दिखलाते हैं इन्द्रधनुष के रंग निराले इन्द्रधनुष भी मन को नहीं सुहाए रे इन्सानी भगवानों में इबादत इमदाद आयेगी इलज़ाम के पत्थर इल्म रहता पायदानों में इशारे समझना इस जीवन की शाम ढली इस धरा को रौशनी से जगमगायें इस नये साल में ईद ईद और तीज आ गई है हरियाली ईद का चाँद आया है ईद तीज आ गई है हरियाली ईद मनाई जाती है ईद मुबारक़ ईद-दिवाली में ईद-दिवाली-होली मिलकर ईमान बदलते देखे हैं ईवीएम में बन्द ईश्वर के आधीन उगता दिल में प्यार उगता है आदित्य उगने लगे बबूल उग्रवाद-आतंक का उच्चारण की सबसे लोकप्रिय प्रविष्टि उच्चारण खामोश उजड़ गया है तम का डेरा उजड़ गया है नीड़ उजड़ा हुआ है आदमी उज्जवल-धवल मयंक उड़ जायें जाने कब तोते उड़ता गर्द-गुबार उड़ता बग़ैर पंख के नादान आज तो उड़ती हुई पतंग उड़तीं हुई पतंग उड़नखटोला द्वार टिका है उड़नखटोला-यान उड़ान उड़ान में प्रकाशित उतना पानी दीजिए जितनी जग को प्यास उतना ही साहस पाया है उत्कर्षों के उच्च शिखर पर चढ़ते जाओ उत्तर अब माकूल उत्तराखण्ड उत्तराखण्ड का पर्व हरेला उत्तराखण्ड का स्थापना दिवस उत्तराखण्ड का स्थापना दिवस और संक्षिप्त इतिहास उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर उत्तराखण्ड के कर्मठ मुख्यमन्त्री उत्तराखण्ड के पर्व हरेला पर विशेष उत्तराखण्ड राज्य स्थापनादिवस उत्तराखण्ड राज्य का स्थापना दिवस उत्तरायणी उत्तरायणी पर्व उत्तरायणी-मकर संक्रान्ति उत्तरायणी-लोहड़ी उत्सव ललित-ललाम उत्सव हैं उल्लास जगाते उद्धव की सरकार उद्धव गुट की हार उन्मीलन पत्रिका में मेरा एक गीत उन्हें हम प्यार करते हैं उपन्यास सम्राट को उपमा में उपमान उपवन के फूल उपवन मुस्कायेगा उपवन में अब रंग उपवन में गुंजार उपवन में हरियाली छाई उपवन” का विमोचन उपसर्ग और प्रत्यय उपहार उपहार में मिले मामा-मामी उपासना में वासना उफन रहे हैं ताल उमड़-घुमड़ कर आये बादल उमड़-घुमड़ कर बादल छाये उमड़ा झूठा प्यार उमड़ी पर्वत से जल धारा उम्मीद मत करना उम्र छियासठ साल हो गयी उलझ गया है ताना-बाना उलझ गये हैं तार उलझ रहे हैं तार उलझन-झमेले रहेंगे उलझा है ताना-बाना उलझे हुए सवाल उलझे हुए सवालों में उलूक का भूत उल्फत के ठिकाने खो गये हैं उल्लास का उत्तरायणी पर्व उल्लू और गदहे उल्लू का आतंक उल्लू की परवाज उल्लू की है जात उल्लू जी का भूत उल्लू बन जाना नहीं उसका होता राम सा उसूल नापता रहा उसूल बाँटता रहा ऋतुएँ तो हैं आनी जानी ऋतुराज ऋतुराज प्रेम के अंकुर को उपजाता ऋषियों की सन्तान ऋषियों की हम सन्ताने हैं ए.पी.जे.अब्दुल कलाम को श्रद्धाञ्जलि एक अशआर एक कविता और एक संस्मरण एक गीत एक गीत-एक कविता एक दिन तो मचल जायेंगे एक दोहा एक ग़ज़ल. झाड़ू की तगड़ी मार एक दोहा और गीत एक नज़्म एक निवेदन एक पाँच दो का टका एक पुराना गीत एक बालकविता एक मरता है एक मुक्तक एक मुक्तक पाँच दोहे एक मुक्तक-एक कुण्डलिया एक रचना एक रहो और नेक रहो एक समय का कीजिए दिन में अब उपवास एक समान विधान से एक हजार एक-विचार एककविता एकगीत एकगीत एकता की धुन बजायें एकल कवितापाठ एकाकीपन एतबार अपने पे कम हैं एतिहासिक विवरण एप्रिलफूल एमिली डिकिंसन एमीलोवेल एला और लवंग एला व्हीलर विलकॉक्स एसी-कूलर फेल ऐ दुलारे वतन ऐतिहासिकआलेख ऐसा करो उपाय ऐसा फूल गुलाब ऐसा हमें विधान चाहिए ऐसे घर-आँगन देखे हैं ऐसे पुत्र भगवान किसी को न दें ऐसे होगा देश महान ओ जालिम-गुस्ताख ओ बन्दर मामा ओ मेरे मनमीत ओटन लगे कपास ओम् जय शिक्षा दाता ओले ओलों की बरसात ओसामा और अब कितना चलूँगा...? और न अब हिमपात करो कंकड़ और कबाड़ कंकड़ देते कष्ट कंकरीट का जाल कंकरीट की ठाँव में कंकरीटों ने मिटा डाला चमन कंचन का गलियारा है कंचन सा रूप कंजूस मधुमक्खी कंस आज घनश्याम हो गये ककड़ी ककड़ी खाने को करता मन ककड़ी बिकतीं फड़-ठेलों पर ककड़ी मौसम का फल अनुपम ककड़ी लम्बी हरी मुलायम ककड़ी-खीरा ककड़ी-खीरा खरबूजा है कच्चे घर अच्छे रहते हैं कच्चेघर-खपरैल कट्टरपन्थी जिन्न कठमुल्लाओं की कटी कठिन झेलना शीत कठिन बुढ़ापा बीमारी है कठिन बुढ़ापा होता है कठिन हो गया आज गुज़ारा कड़ाके की सरदी में ठिठुरा बदन है कड़ी धूप को सहते हैं कड़ुए दोहे कथा कथानक क़दम क़दम पर घास कदम बड़ायेंगे कदम मिला कर चल रहा जीवनसाथी साथ कदम-कदम पर घास कनकइया की डोर तुम्हारे हाथो में कनिष्ठ पुत्र विनीत का जन्मदिन कनेर मुस्काया है कपड़े का पंडाल कब चमकेंगें नभ में तारे कब तक तुम सन्ताप भरोगे? कब तक मौन रहोगे कब दिवस सुहाने आयेंगे कब बरसेंगे बादल काले कबूतर का घोंसला कब्जा है "रूप" लुटेरों का कभी आकाश में बादल घने हैं कभी उम्मीद मत करना कभी कुहरा कभी न उल्लू तुम कहलाना कभी न करना भंग कभी न करना माफ कभी न टूटे मित्रता कभी नहीं रुकेगी यह परम्परा कभी भी लाचार हमको मत समझना कभी सूरज कमल कमल के बिन सरोवर पर कमल पसरे है कमल पसरे हैं कमा रहे हैं माल कम्प्यूटर कम्प्यूटर और इंटरनेट कम्प्यूटर और इण्टरनेट कम्प्यूटर और जालजगत कम्प्यूटर बन गई जिन्दगी कम्बल-लोई और कोट से कर दिया क्या आपने कर दो काम तमाम कर दो दूर गुरूर कर लेना कुछ गौर कर लो सच्चा प्यार करके विष का पान करगिल विजय दिवस करता हूँ मैं ध्यान करते दिल पर वार करते श्रम की बात करना ऐसा प्यार करना पूरी मात करना भूल सुधार करना मत कुहराम करना मत दुष्कर्म करना मत हठयोग करना राह तलाश करना सब मतदान करनी-भरनी. काठी का दर्द करने को कल्याण करने बवाल निकले करने मलाल निकले करलो अच्छे काम करवा पूजन की कथा करवाचौछ करवाचौथ करवाचौथ पर करवाचौथ विशेष करें सितम्बर मास में करो आज शृंगार करो तनिक अभ्यास करो पाक को ढेर करो भोज स्वीकार करो मदद हे नाथ करो मेल की बात करो रक्त का दान करो शहादत याद करो सतत् अभ्यास करो साक्षर देश कर्तव्य और अधिकार कर्ता-धर्ता ईश्वर है कर्म हुए बाधित्य कर्मनाशा कर्मों का ताबीज कल की बातें छोड़ो कल हो जाता आज पुराना कल-कल कल-कल शब्द निनाद कलम मचल जाया करती है क़लम मचल जाया करती है कल़मकार लिए बैठा हूँ कलयुग तुम्हें पुकारता कलयुग में इंसान कलेण्डर ही तो बदला कल्पनाएँ निर्मूल हो गईं कल्पित कविराज कवर्ग कवायद कौन करता है कवि कवि और कविता कवि लिखने से डरता हूँ कविगोष्ठी कविता कविता का आकार कविता का आथार कविता का आधार कविता का संयोग कविता को अब तुम्हीं बाँधना कविता क्या है? कविताओँ का मर्म कविता् कवित्त कविधर्म कवियों के लिए कुछ जानकारियाँ कव्वाली कष्ट उठाना पड़ता है कसाब कसाब को फाँसी कह राम और रहीम कहते लोग रसाल कहनेभर को रह गया अपना देश महान कहलाना प्रणवीर कहा कीजिए कहाँ खो गई मीठी-मीठी इन्सानों की बोली कहाँ गयी केशर क्यारी? कहाँ जायें बताओ पाप धोने के लिए कहाँ रहा जनतन्त्र कहाँ है आचरण कहानी कहीं आकाश में बादल घने हैं कहीं है हरा कहें मुबारक ईद कहें सुखी परिवार कहो मुबारक ईद काँटे और गुलाब काँटे और सुमन काँटे बुहार लेना काँटों की पहरेदारी काँटों ने उलझाया मुझको काँधे पर हल धरे किसान काँप रही है थर-थर काया काँव-काँव कौआ चिल्लाया। काँव-काँवकर चिल्लाया है कौआ काँवड़ का व्यतिरेक काक-चेष्टा को अपनाओ कागज की नाव काग़ज़ की नाव कागज की है नाव काठ की हाँडी चढ़ेगी कब तलक काठी का दर्द काने करते राज काम अपना तमाम करते हैं काम कलम का बोलता काम न करना बन्द काम-आराम कामी आते पास कामी और कुसन्त कामुक परिवेश कामुकता का दौर कायदे से जरा चलना सीखो कायदे से धूप अब खिलने लगी है। कार यात्रा कार हमारी हमको भाती कारवाँ कारा उम्र तमाम कारा में सच्चाई बन्द है कार्टूननिस्ट-मयंक खटीमा कार्तिक पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा-गंगा स्नान काल की रफ्तार को छलता रहा हूँ काला अक्षर भैंस बराबर कालातीत बसन्त काले अक्षर काले बादल काव्य (छन्दों) को जानिए काव्य का मर्म काव्यानुवाद काव्यानुवाद-पिता की आकांक्षाएँ.. काश्..कोई मसीहा आये कितना आज सुकून कितनी अच्छी लगती हैं कितनी मैली हो गयी गंगा जी की धार कितनी सुन्दर मेरी काया कितने बदल गये हैं बन्दे कितने सपने देखे मन में किन्तु शेष आस हैं किया बहुत उपकार किये श्राद्ध निष्पन्न किसको गीत सुनाती हो? किसको लुभायेंगे अब किसलय कहलाते हैं किसान किसान-जवान किसे अच्छी नहीं लगती किसे सुनायें गीत किस्मत में लिक्खे सितम हैं कीटनिकम्मे कीर्तिमान सब ध्वस्त कुंठित हुआ समाज कुगीत कुछ अभिनव उपहार कुछ उड़ी हुई पोस्ट कुछ उद्गार कुछ और ही है पेट में कुछ काँटे-कुछ फूल कुछ क्षणिकाएँ कुछ चित्र ‘‘हाइकू’’ में कुछ तो करो यकीन कुछ तो बात जरूरी होगी कुछ दोहे कुछ भी नहीं असली है कुछ भी नहीं सफेद कुछ मजदूरी होगी कुछ शब्दचित्र कुटिल न चलना चाल कुटिल नहीं होते कभी कुटिल-काँटे लड़ाई ठानते हैं कुटिलकाँटे कुटी बनायी नीम पर कुण्ठा कुण्ठा भरे विचार कुण्ठाओं ने डाला डेरा कुण्डलिया कुण्डलियाँ कुण्डलियाँ-चीयर्स बालाएँ कुदरत का उपहार अधूरा होता है कुदरत का कानून कुदरत का हर काज सुहाना लगता है कुदरत की करतूत कुदरत की खिलवाड़ कुदरत के क्या कहने हैं कुदरत ने फल उपजाये हैं कुदरत ने सिंगार सजाया कुदरत से खिलवाड़ कुन्दन जैसा रूप कुन्दन सा है रूप कुमाऊं के ब्लॉग कुमुद कुमुद का फोटोे फीचर कुम्भ कुम्भ की महिमा अपरम्पार कुर्ता होली खेलता कुर्बानी कुहका कुहरा कुहरा करता है मनमानी कुहरा चारों ओर कुहरा छँटने ही वाला है कुहरा छाया है कुहरा पसरा आज चमन में कुहरा पसरा है आँगन में कुहरे का है क्लेश कुहरे की फुहार कुहरे की मार कुहरे की सौगात कुहासे का आवरण कुहासे की चादर कु्ण्डलिया कूटनीति की बात कूड़ा-कचरा कूर्मा़ञ्चली कविता कूलर कूलर गर्मी हर लेता है कृपा करो अब मात कृषक कृषक-मजदूर मुस्काए कृष्ण सँवारो काज कृष्ण-कन्हैया के माखन नवनीत बदल जाते हैं कृष्णचन्द्र अधिराज कृष्णचन्द्र गोपाल के बिना केवल कुनबावाद केवल दुर्नीति चलती है केवल यहाँ धनार्थ केवल यादें बची केवल हिन्दू वर्ष क्यों केशव भार्गव "निर्दोष" की 8वीं पुण्यतिथि केशव भार्गव "निर्दोष" की 8वीं पुण्यतिथि के अवसर पर केसर के फूल केसरिया का रंग कैद कैमरे में करो कैसी है ये आवाजाही कैसे अपना भजन करूँ मैं कैसे आज बचाऊँ कैसे आये स्वप्न सलोना? कैसे उजियार करेगा कैसे उतरें पार? कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं कैसे उलझन को सुलझाऊँ कैसे गुमसुम हो जाऊँ मैं कैसे जान बचाऊँ मैं कैसे देश-समाज का होगा बेड़ा पार कैसे नवअंकुर उपजाऊँ? कैसे नियमित यजन करूँ मैं कैसे नूतन सृजन करूँ मैं कैसे नूतन सृजन करूँ मैं? कैसे पायें पार कैसे पौध उगाऊँ मैं कैसे प्यार करेगा? कैसे फूल खिलें उपवन में कैसे बचे यहाँ गौरय्या कैसे मन को सुमन करूँ मैं कैसे मन को सुमन करूँ मैं? कैसे मिलें रसाल कैसे मुलाकात होती कैसे लू से बदन बचाएँ? कैसे शब्द बचेंगे अपने कैसे सरल स्वभाव करूँ कैसे साथ चलोगे मेरे? कैसे सेवा-भाव भरूँ कैसे होंगे पार कैसै आये बहार भला कॉफी कॉफी की चुस्की कॉफी की चुस्की ले लेना कॉफी की तासीर निराली कोई बात बने कोई भूला हुए मंजर कोई वाद-विवाद कोई वादा-क़रार मत करना कोई साथ न दे पाता है कोई सोपान नहीं कोटि-कोटि वन्दन तुम्हें कोमल बदन छिपाया है कोयल आयी मेरे घर में कोयल आयी है घर में कोयल का सुर कोयल गाये गान कोयल चहकी कोयल रोती है कानन में कोयलिया खामोश हो गई कोरोना कोरोना का दैत्य कोरोना की बाढ़ कोरोना की मार कोरोना के रोग से कोरोना के साथ कोरोना को हराना है कोरोना वायरस कोरोना से डर रहा सारा ही संसार कोरोना से सारे हारे कोशिश कौआ कौआ होता अच्छा मेहतर कौड़ी में नीलाम मुहब्बत कौन सुखी परिवार कौन सुने फरियाद कौन सुनेगा सरगम के सुर क्या है प्यार क्या है प्यार-रॉबर्ट लुई स्टीवेंसन क्या हो गया है क्या होता है प्यार क्यों देश ऐसा क्यों राम और रहमान मरा? क्यों होता है हुस्न छली क्यों? क्रिकेट विश्वकप झलकियाँ क्रिसमस का त्यौहार क्रिसमस का शुभकामनाएँ क्रिसमस की बधाई क्रिसमस-डे क्रिस्टिना रोसेट्टी की कविता क्रोध क्षणभंगुर हैं प्राण क्षणिका क्षणिका को भी जानिए क्षणिका क्या होती है? क्षणिकाएँ खंजर उठा लिया खटमल-मच्छर का भेद खटीमा खटीमा (उत्तराखण्ड) का पावर हाउस बह गया खटीमा का परिचय खटीमा में आयोजितपुस्तक विमोचन के कार्यक्रम की रपट खटीमा में आलइण्डिया मुशायरा एवं कविसम्मेलन सम्पन्न खट्टे-मीठे और रसीले खतरे में आज सारे तटबन्ध हो गये हैं खतरे में तटबन्ध हो गये हैं खद्योत खद्योतों का निर्वाचन खबर छपी अखबारों मे ख़बरों की भरमार खर-पतवार उगी उपवन में खरगोश खरपतवार अनन्त खरबूजा खरबूजा-तरबूज खरबूजे खरबूजे का मौसम आया ख़ाक सड़कों की अभी तो छान लो खाता-बही है खादी खादी का परिधान खादी-खाकी खादी-खाकी की केंचुलियाँ खान-पान में शुद्धता खान-पान में शुद्धता सिखलाते नवरात्र खान-पान-परिधान विदेशी फिर भी हिन्दी वाले हैं खानदानों में खाने में सबको मिले रोटी-चावल-दाल ख़ार आखिर ख़ार है खार पर निखार है ख़ार से दामन बचाना चाहिए खारा पानी खारा-खारा पानी खारिज तीन तलाक खाली पन्नों को भरता हूँ खाली हुआ खजाना खास आज भी खास खास को होने लगी चिन्ता खास हो रहे मस्त खिचड़ी का आहार खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन खिल उठे फिर से बगीचे में सुमन खिल जायेंगे नव सुमन खिल रहे फूल अब विषैले हैं खिलता फागुन आया खिलता सुमन गुलाब खिलता हुआ बसन्त खिलती बगिया है प्रतिपल खिलते प्रसून काव्य संग्रह खिलते हुए कमल पसरे हैं खिलने लगते फूल खिलने लगा सूखा चमन खिला कमल का फूल खिला कमल है आज खिली रूप की धूप खिली रूप की धूप-दोहा संग्रह खिली सुहानी धूप खिली हुई है डाली-डाली खिले कमल का फूल खिसक रहा आधार खीरा खीरा- खरबूजे खीरे को भी करना याद खुद को आभासी दुनिया में झोका खुद को करो पवित्र ख़ुदगर्ज़ी का हुआ ज़माना खुदा की मेहरबानी है खुद्दारों की खुद्दारी खुमानी खुलकर खिला पलाश खुलकर हँसा मयंक खुली आँखों का सपना खुली ढोल की पोल खुली बहस- खुलूस से खुश हो करके लोहड़ी खुश हो रहा बसन्त खुश हो रहे किसान खुशियों का परिवेश खुशियों की डोरी से नभ में अपनी पतंग उड़ाओ खुशियों से महके चौबारा खूब थिरकती है रंगोली खूबसूरत लग रहे नन्हें दिये खेत खेत उगलते गन्ध खेत घटते जा रहे हैं खेती का कानून खेतीहर-मजदूर खेतों ने परिधान बसन्ती पहना है खेतों में झुकी हैं डालियाँ खेतों में शहतूत लगाओ खेतों में सोना बिखरा है खेल-खिलौने याद बहुत आते खेलते होली मोहनलाल खेलो रंग खो गई इन्सानियत खो गया कहाँ संगीत-गीत खो चुके सब कुछ खोज रहे हम सुख को धन में खोज रहे हैं शीतल छाया खोल दो मन की खिड़की खोलो तो मुख का वातायन ख़्वाब का ये रूप भी नायाब है ख़्वाब में वो सदा याद आते रहे गंगा गंगा का अस्तित्व बचाओ गंगा जी की धार गंगा पुरखों की है थाती गंगा बचाओ गंगा बहुत मनोहर है गंगा मइया गंगा में स्नान करो गंगा स्नान गंगास्नान गंगास्नान मेला गंजे गगन में छा गये बादल गगन में मेघ हैं छाये गजल गज़ल ग़जल ग़ज़ल ग़जल "शरीफों के घरानों की" ग़ज़ल "ख़ानदानों ने दाँव खेलें हैं" ग़ज़ल "उल्लओं की पंचायतें लगीं थी" ग़ज़ल "बातें ही बातें" ग़ज़ल की परिभाषा ग़ज़ल के उद्गगार ग़ज़ल में फिर से रवानी आ गयी है ग़जल या गीत ग़ज़ल संग्रह ग़ज़ल हो गयी क्या गजल हो गयी पास ग़ज़ल-गुरूसहाय भटनागर बदनाम ग़ज़ल? ग़ज़ल. ईमान आज तो ग़ज़ल. खून पीना जानते हैं ग़ज़ल. जीवन में खुशियाँ लाते हैं ग़ज़ल. दो जून की रोटी ग़ज़ल. पत्थरों को गीत गाना आ गया है ग़ज़ल. पाषाणों को गढ़ने में ग़ज़ल. यूँ अपनी इबादत का दिखावा न कीजिए ग़ज़लग़ो ग़ज़ल लिखने के ग़ज़लगो स्वयम् को बताने लगे ग़ज़लनुमा कुछ अशआर गज़लिका ग़ज़लिया-ए-रूप से एक नज़्म ग़ज़लियात-ए-रूप ग़ज़लियात-ए-रूप से एक ग़ज़ल ग़ज़लियात-ए-रूप से मेरी एक ग़ज़ल ग़ज़लियात-ए-रूप” की भूमिका गठबन्धन की नाव गढ़ता रोज कुम्हार गणतंत्र महान गणतन्त्र गणतन्त्र दिवस गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ गणतन्त्र दिवस पर राग यही दुहराया है गणतन्त्र पर्व पर गणतन्त्र महान गणतन्त्रदिवस गणनायक भगवान गणनायक भगवान की महिमा गणेश चतुर्थी गणेश चतुर्थी पर विशेष गणेश वन्दना गणेशवन्दना गणेशोत्सव पर विशेष गणों का छन्दों में प्रयोग गणों की जानकारी गत गति-यति का क्या काम गदहे गद्दार गद्दारी-मक्कारी गद्दारों को जूता गद्य-गीत गद्य-पद्य गद्यगीत गधा हो गया है बे-चारा गधे इस देश के गधे को बाप भी अपना समय पर वो बताते हैं। गधे बन गये अरबी घोड़े गधे हो गये आज गन्दे हैं हम लोग गमों के बोझ का साया बहुत घनेरा है गया अँधेरा-हुआ सवेरा गया दिवाकर हार गया पुरातन भूल गयी चाँदनी रात गयी बुराई हार? गयी मनुजता हार गये आचरण भूल गरम-गरम ही चाय गरमी का अब मौसम आया गरमी में घनश्याम गरमी में जीना हुआ मुहाल गरमी में ठण्डक पहुँचाता मौसम नैनीताल का गरमी में तरबूज सुहाना गरिमा जीवन सार गरिमा दीपक पन्त गर्दन पर हथियार गर्मी गर्मी आई खाओ बेल गर्मी के फल गर्मी को अब दूर भगाओ गर्मी को कर देती फेल गर्मी में खीरा वरदान गर्मी में स्वेदकण गर्मी से तन-मन अकुलाता गली-गली में बिकते बेर गले न मिलना ईद गले पड़े हैं लोग गा रही दीपावली गाँधी का निर्वाण गांधी जी कहते हे राम! गाँधी जी का चित्र गांधी जी का जन्म दिवस गाँधी जी का देश गांधी हम शरमिन्दा हैं गांधीजयन्ती गाँव याद बहुत आते हैं गाँवों का निश्छल जीवन गाओ फिर से नया तराना गाता है ऋतुराज तराने गाना तो मजबूरी है गान्धी-लालबहुदुर जयन्ती गाय गाय-भैंस को पालना गायब अब हल-बैल गिजाई गिनते नहीं हो खामियाँ अपने कसूर पे गिरवीं बुद्धि-विवेक गिरवीं रखा जमाल गिरी जनक पर गाज गिलहरी गिलहरी दाना-दुनका खाती हो गीत गीत "गाओ फिर से नया तराना" गीत और प्रीत का राग है ज़िन्द़गी गीत का व्याकरण गीत की परिभाषा के साथ मेरा एक गीत गीत को भी जानिए गीत गाना जानता है गीत गाने का ज़माना आ गया है गीत ढोंग-आडम्बर गीत न जबरन गाऊँगा गीत बन जाऊँगा गीत मेरा गीत सुनाती माटी गीत सुनाती माटी अपने गीत सुर में गुनगुनाओ तो सही गीत-ग़ज़लों का तराना गीत-छन्द लिखने का फैशन हुआ पुराना गीत? गीत. नाविक फँसा समन्दर में गीत. पुनः हरा नही हो सकता गीत. मतवाला गिरगिट रूप बदलता जाता है गीत. मेरे तीन पुराने गीत गीत. वीरों के बलिदान से गीतकार नीरज तुम्हें गीतिक गीतिका गीतिका छन्द गीतिका. आजादी की वर्षगाँठ गीदड़ और विडाल गीला हुआ रुमाल गीूत गुझिया-बरफी गुटबन्दी के मन्त्र गुनगुनाओ तो सही गुब्बारे गुम हो गया उजाला क्यों गुरु नानक का जन्मदिन गुरु नानक जयन्ती गुरु पारस पाषाण है गुरु पूर्णिमा गुरु वन्दना गुरुओं का ज्ञान गुरुओं का दिन गुरुओं का सोपान गुरुकुल में हम साथ पढ़े गुरुदेव का वन्दन गुरुवर का सम्मान गुरू ज्योति का पुंज गुरू पूर्णिमा गुरू पूर्णिमा-गंगा स्नान गुरू वन्दना गुरू सहाय भटनागर गुरू सहाय भटनागर नहीं रहे गुरू-शिष्य गुरूकुल गुरूदक्षिणा गुरूदेव का ध्यान गुरूद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब गुरूनानक का दरबार गुरूपूर्णिमा गुरूवन्दना गुरूसहाय भटनागर बदनाम गुरूसहाय भटनागार गुर्गे देते बाँग गुलमोहर गुलमोहर का रूप गुलमोहर का रूप सबको भा रहा गुलमोहर खिलने लगा गुलमोहर लुभाता है गुलशन का खिलता गलियारा गुलशन बदल रहा है गुलाब दिवस गुलामी बेहतर थी गुलाल-अबीर गूँगी गुड़िया आज गूँगे और बहरे हैं गूँज रहा उद्घोष गूँज रहे सन्देश गूगल-फेसबुक गेहूँ गेहूँ करते नृत्य गैस सिलेण्डर गैस सिलेण्डर है वरदान गोबर की ही खाद गोबर लिपे हुए घर-आँगन नहीं रहे गोमुख से सागर तक जाती गोरा-चिट्टा कितना अच्छा गोरी का शृंगार गोल-गोल है दुनिया सारी गोवर्धन गोवर्धन पूजा गोवर्धन पूजा करो गोवर्धनपूजा और भइयादूज की शुभकामना गोवर्धनपूजा और भइयादूज की शुभकामनाएँ गोविन्दसिंह कुंजवाल गौमाता भूखी मरे गौमाता से प्रीत गौरय्या गौरय्या का गाँव गौरय्या का नीड़ चील-कौओं ने हथियाया है गौरय्या के गाँव में गौरव और गुमान की गौरव का आभास गौरी और गणेश गौरैया का गाँव में गौरैया का गाँव में पड़ने लगा अकाल गौरैया ने घर बनाया ग्यारह दोहे ग्राम्यजीवन ग्रीष्म ग्वाले हैं भयभीत घट गया इक साल मेरी उम्र का घटते जंगल-खेत घटते वन-बढ़ता प्रदूषण घनाक्षरी घनाक्षरी गीत घर की रौनक घर बनाना चाहिए घर भर का अभिमान बेटियाँ घर में कभी न लायें हम घर में पढ़ो नमाज घर में पानी घर में बहुत अभाव घर सब बनाना जानते हैं घातक मलय समीर घास घिर-घिर बादल आये घिर-घिर बादल आये रे घुटता गला सुवास का घूम रहा है चक्र घोंसला हुआ सुनसान आज तो घोटालों पर घोटाले घोड़ों से भी कीमती घोर संक्रमित काल में मुँह पर ढको नकाब चंचल “रूप” सँवारा चंचल अठसई (दोहा संग्रह) चंचल चितवन नैन चंचल सुमन चकरपुर चक्र है आवागमन का चक्र है आवागमन का। चढ़ा केजरी रंग चढ़ा हुआ बुखार है चतुर्दशी का पर्व चदरिया अब तो पुरानी हो गयी चना-परमल चन्दा कितना चमक रहा है चन्दा देता है विश्राम चन्दा मामा-सबका मामा चन्दा से मुझको मोह नहीं चन्दा-सूरज चन्द्र मिशन चन्द्रमा सा रूप मेरा चमकती न बिजली न बरसात होती चमकेगा फिर से गगन-भाल चमचों की महिमा चमत्कार चमन का सिंगार करना चाहिए चमन की तलाश में चमन हुआ गुलजार चम्पावत जिले की सुरम्य वादियाँ चम्पू काव्य चरित्र चरित्र पर बाइस दोहे चरैवेति का मन्त्र चरैवेति की सीख चरैवेति-मेरा एक गीत चलके आती नही चलता खूब प्रपञ्च चलता जाता चक्र निरन्तर चलते बने फकीर चलना कछुआ चाल चलना कभी न वक्र चलना सीधी चाल। चलने से कम दूरी होगी चला दिया है तीर चला है दौर ये कैसा चली झूठ की नाव चली बजट की नाव चले आये भँवरे चले थामने लहरों को चलो दीपक जलाएँ हम चलो भीगें फुहारों में चलो होली खेलेंगे चवन्नी चहक रहा मधुमास चहक रहे घर द्वार चहक रहे हैं उपवन में चहक रहे हैं रंग चहक रहे हैं वन-उपवन में चहकता-महकता चमन चहका है मधुमास चहके गंगा-घाट चहके चारों धाम चहके प्यारी सोन चिरैया चाँद बने बैठे चेले हैं चाँद-तारों की बात करते हैं चाँद-सूरज चाँदनी का हमें “रूप” छलता रहा चाँदनी रात चाँदनी रात बहुत दूर गई चाँदी की संगत चाचा नेहरू को शत्-शत् नमन चाचा नेहरू तुम्हें नमन चाटुकार सरदार हो गये चापलूस बैंगन चाय चाय हमारे मन को भाई चार कुण्डलियाँ चार चरण-दो पंक्तियाँ चार दोहे चार फुटकर छन्द चारों ओर बसन्त हुआ चारों ओर भरा है पानी चालबाजी चाहत कभी न पूरी होगी चिंकू तो है शाकाहारी चिंकू ने आनन्द मनाया चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे चिट्ठी-पत्री का युग बीता चिड़िया चिड़ियारानी चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज चित्रकारिता दिवस चित्रग़ज़ल चित्रपट चित्रावली चित्रोक्ति चिन्तन चिन्तन-मन्थन चिमटा आज हमीद चिल्लाया है कौआ चीत्कार पसरा है सुर में चीनी लड़ियाँ-झालर अपने चुगलखोर चुनना नहीं आता चुनाव चुनाव लड़ना बस की बात नहीं चुनावी कानून में बदलाव की जरूरत चुम्बन का व्यापार चुम्बन दिवस चुम्बन दिवस की शुभकामनाएँ चुम्बन-दिवस (KISS-DAY) चुम्बनदिवस चुरा रहे जो भाव चूनरी तो तार-तार हो गई चूस मकरन्द भँवरे किनारे हुए चूहों की सरकार में बिल्ले चौकीदार चेतावनी चेहरा चमक उठा चेहरे हुए झुर्रियों वाले चेहल्लुम का जुलूस चैतन्य की हिन्दी की टेक्सटबुक (अंकुर हिन्दी पाठमाला) चॉकलेट देकर नहीं चॉकलेट देकर नहीं उगता दिल में प्यार चॉकलेट से मत करो चॉकलेट-डे चोदहदोहे चोर पुराण चोरपुराण चोरों के नहीं महल बनेंगे चोरों से कैसे करें अपना यहाँ बचाव चोरों से भरपूर है आभासी संसार चौकस चौकीदार चौदह जनवरी-चौदह दोहे चौदह दिन के ही लिए हिन्दी से है प्यार चौदह दोहे चौदह फरवरी चौदह मार्च-मेरी पौत्री का जन्मदिन चौदह सितम्बर को समर्पित चौदह दोहे चौदह सितम्बर-चौदह दोहे चौपाई चौपाई के बारे में भी जानिए चौपाई लिखना सीखिए चौपाई लिखिए चौबीस दोहे चौमासा बारिश से होता चौमासे का मौसम आया चौमासे का रूप चौमासे ने अलख जगाई छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन छंदहीनता छटा अनोखी अपने नैनीताल की छठ का है त्यौहार छठ पूजा छठ माँ का उद्घोष छठ माँ का त्यौहार छठ माँ हरो विकार छठ-माँ का त्यौहार छठपूजा छठपूजा त्यौहार छन्द और मुक्तक छन्द क्या होता है? छन्द हो गये क्ल्ष्टि छन्दशास्त्र छन्दों का विज्ञान छन्दों के विषय में जानकारी छब्बीस जनवरी खुशियाँ लेकर आता है छल-छल करती गंगा छल-छल करती धारा छल-फरेब के गीत छल-बल की पतवार छाई हुई उमंग छाई है बसन्त की लाली छाता छाते छाप रहे अखबार छाया का उपहार छाया चारों ओर उजाला छाया देने वाले छाते छाया बहुत अन्धेरा है छाया भारी शोक छाया है उल्लास छाये हुए हैं ख़यालात में छिन जाते हैं ताज छीनी है हिन्दी की बिन्दी छुक-छुक करती आती रेल छुट्टी दे दो अब श्रीमान छुहारे-किशमिश छूट गया है साथ छोटी पुत्रवधु का जन्मदिवस छोटी-छोटी बात पर छोटे पुत्र विनीत का छोटे पुत्र विनीत का जन्मदिन छोटे पुत्र विनीत का जन्मदिवस छोटों को सम्बल दिया लिया बड़ों से ज्ञान छोड़ विदेशी ढंग छोड़ा पूजा-जाप छोड़ा मधुर तराना जंग ज़िन्दगी की जारी है जंगल का कानून जंगल की चूनर धानी है जंगल के शृंगाल सुनो जंगलों के जानवर जंगी यान रफेल जकड़ा हुआ है आदमी जग उसको पहचान न पाता जग का आचार्य बनाना है जग के झंझावातों में जग के नियम-विधान जग को लुभा गये हैं जग में अन्तरजाल जग में ऊँचा नाम जग में केवल योग जग में माँ का नाम जग में सबसे न्यारा मामा जग है एक मुसाफिरखाना जगत है जीवन-मरण का जगदम्बा माँ आपकी जगमग सजी दिवाली जगह-जगह मतदान जड़े न बदलें पेड़ जन-गण का विश्वास जन-गण का सन्देश जन-गण रहे पछाड़ जन-जागरण जन-जीवन बेहाल जन-मानस बदहाल जन.2017 में मेरा गीत जनता का जनतन्त्र जनता का तन्त्र कहाँ है जनता का धीरज डोल रहा जनता जपती मन्त्र जनता है कंगाल जनमानस के अन्तस में आशाएँ मुस्काती हैं जनमानस लाचार जनवरी-2017 जनसेवक खाते हैं काजू जनसेवक लाचार जनहित के कानून को जन्म दिन जन्म दिन मेरी श्रीमती जन्म दिवस जन्मदिन जन्मदिन की दे रहे हैं सब बधायी जन्मदिन पर रूप मुझको भा गया है जन्मदिन फिर आज आया जन्मदिन योगिराज श्रीकृष्णचन्द्र महाराज जन्मदिन है आज मेरा जन्मदिन-मा. पुष्कर सिंह धामी जन्मदिन. मेरे ज्येष्ठ पुत्र का जन्मदिन जन्मदिवस जन्मदिवस की बेला पर जन्मदिवस चाचा नेहरू का जन्मदिवस चाचा नेहरू का भूल न जाना जन्मदिवस पर विशेष जन्मदिवस विशेष जन्मदिवस विशेष) जन्मदिवस है आज जन्मभूमि में राम जन्माष्टमी जन्मे थे धनवन्तरी जब खारे आँसू आते हैं जब पहुँचे मझधार में टूट गयी पतवार जब मन में हो चाह जब-जब मक्कारी फलती है जमा न ज्यादा दाम करें जमाना बहुत बदल गया जय बोलो नन्दलाल की जय माता की कहने वालो जय विजय जय विजय 2019 में मेरी बालकविता जय विजय अगस्त-2019 जय विजय के फरवरी जय विजय जुलाई-2018 जय विजय जून जय विजय पत्रिका में मेरा गीत जय विजय पत्रिका में मेरी बालकविता जय विजय मई जय विजय मासिक पत्रिका के नवम्बर-2016 अंक में मेरी ग़ज़ल जय विजय में मेरी बाल कविता जय विजय-अप्रैलः2020 जय विजय-नवम्बर जय शिक्षा दाता जय श्री गणेश जय सिंह आशावत जय हिन्दी-जय नागरी जय हो देव महेश जय हो देव सुरेश जय-जय गणपतिदेव जय-जय जगन्नाथ भगवान जय-जय जय वरदानी माता जय-जय-जय गणपति महाराजा जय-जवान और जय-किसान जय-विजय जय-विजय अगस्त जय-विजय पत्रिका जय-विजय पत्रिका में मेरा गीत जय-विजय पत्रिका अक्टूबर-2016 में मेरी ग़ज़ल प्रकाशित जयविजय जयविजय नवम्बर 2018 जयविजय मई-15 जयविजय में मेरी ग़ज़ल जयविजय-जून जरी-सूत या जूट के धागे हैं अनमोल जरूरी है जल का स्रोत अपार कहाँ है जल जीवन की आस जल दिवस जल बिना बदरंग कितने जल बिना बेरंग कितने जल रहा च़िराग है जलद जल धाम ले आये जलधारा जलमग्न खटीमा जहरीला पेड़:A Poison Tree जहरीली बह रही गन्ध है जाँच-परख कर मीत जागरण जागा दयानन्द का ज्ञान जागेगा इंसान जाति-धर्म के मन्त्र जातिवाद में बँट गये जादू-टोने जान बिस्मिल हुई जानिए मेरे खटीमा को भी जाने की तैयारी जाने वाला साल जाम जाम ढलने लगे ज़ारत जालजगत जालजगत की शाला है जालिम जमाने में ज़ालिमों से पुकार मत करना जिजीविषा जितना चाहूँ भूलना उतनी आती याद जितने ज्यादा आघात मिले जिनके पास जमीर ज़िन्दगी ज़िन्दग़ी अब नरक बन गयी है ज़िन्दगी इक खूबसूरत ख़्वाब है जिन्दगी का सफर निराला है ज़िन्दग़ी का सहारा ज़िन्दग़ी की सलीबों पे चढ़ता रहा ज़िन्दग़ी के तीन मुक्तक ज़िन्दग़ी के लिए जिन्दगी जिन्दगी पे भारी है ज़िन्दग़ी भर उन्हें आज़माते रहे जिन्दगी भर सलामत रहो साजना ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना ज़िन्दग़ी में न ज़लज़ले होते जिन्दगी में प्यार-Life in a Love ज़िन्दग़ी सस्ती हुई जिन्दगी है बस अधूरी ज़िन्दग़ी जिन्दा उसूल हैं ज़िन्दादिली जिन्दादिली का प्रमाण दो जियो ज़िन्दगी को जिसमें पुत्रों के लिए होते हैं उपवास जी उठेगी जिन्दगी जी रहा अब भी हमारे गाँव में जीत का आचरण जीत रही है मौत जीते-जी की माया जीना पड़ेगा कोरोना के साथ जीना-मरना सदा से जीने का अंदाज जीने का अन्दाज़ जीने का अन्दाज़ निराला जीने का आधार हो गया जीने का ढंग जीव सभी अल्पज्ञ जीवन जीवन आशातीत हो गया जीवन आसान बना देना जीवन का गीत जीवन का चक्र जीवन का चल रहा सफर है जीवन का ताना-बाना जीवन का भावार्थ जीवन का विज्ञान जीवन का संकट गहराया जीवन का है मर्म जीवन किताबी हो गया जीवन की अब शाम हो गई जीवन की आपाधापी जीवन की आपाधापी में जीवन की ये नाव जीवन की राह जीवन की है भोर तुम्हारे हाथों में जीवन के आधार जीवन के संग्राम में जीवन के हैं खेल जीवन के हैं ढंग निराले जीवन के हैं मर्म जीवन को हँसी-खेल समझना न परिन्दों जीवन जटिल जलेबी जैसा जीवन जीना है दूभर जीवन तो बहुत जरा सा है जीवन दर्शन समझाया जीवन देती धूप जीवन पतँग समान जीवन बगिया चहके-महके जीवन में अभिसार जीवन में सन्तुष्ट जीवन में है मित्रता जीवन ललित-ललाम जीवन श्रम के लिए बना है जीवन है बदहाल जीवन है बेहाल जीवनचक्र जीवनयात्रा जीवित देवी-देवता दुनिया में माँ-बाप जीवित रहती घास जीवित हुआ पराग जीवित हुआ बसन्त जीूवनचक्र जुलाईः18 जुल्म के आगे न झुकेंगे जुल्म झोंपड़ी पर ढाया जूझ रहा है देश जूती-टोपी बनी सहेली जूतों की बौछार जून-2109 जेठ लग रहा है चौमासा जैविकपिता जैसे खर-पतवार जो नंगापन ढके बदन का हमको वो परिधान चाहिए जोकर जोकर खूब हँसाये जोकर-बौने ज्ञान का तुम ही भण्डार हो ज्ञान का प्रसाद लो ज्ञान की अमावस ज्ञान न कोई दान ज्ञान हुआ विकलांग ज्ञानी भी मूरख बनें ज्यादा दाद मिला करती है ज्यादा दोहाखोर ज्यादातर तो कट गयी ज्येष्ठ पुत्र का जन्मदिन ज्येष्ठ पुत्र नितिन का जन्मदिन ज्येष्ठ पूर्णिमा झंझावात बहुत गहरे हैं झंझावातों में झटका और हलाल झण्डे रहे सँभाल झनकइया मेला गंगास्नान झनकइया-खटीमा झरता हुआ प्रपात झरने करते शोर झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई की 160वीं पुण्यतिथि पर विशेष झाँसी की रानी झाड़ुएँ सवाँर लो झालर-बन्दनवार झुक गयी है कमर झुकेगी कमर धीरे-धीरे झूठ की तकरीर बच गयी झूठ जायेगा हार झूमर से लहराते हैं झूमर से सोने के गहने झूल रही हैं ममता-माया झूला झूले कैसे पड़ें बाग में? झेल रहा है देश झेलना जरूरी है झोंके मस्त बयार के टाबर टोली टिप्पणियाँ टिप्पणी और पसन्द टिप्पणी पोस्ट टुकड़ा-एमी लोवेल टूटा कुनबेवाद से टूटी-फूटी रोमन-हिन्दी टैडी का उपहार टॉम-फिरंगी टॉम-फिरंगी प्यारे-प्यारे टोपी टोपी हिन्दुस्तान की टोपी है बलिदान की ठलवे-जलवे ठहर गया जन-जीवन ठिठुर रहा है गात ठिठुर रही है सबकी काया ठिठुरा बदन है ठिठुरा सकल समाज ठेंगा न सूरज को दिखाना चाहिए ठेले पर बिकते हैं बेर ठोकरें खाकर सँभलना सीखिए डमरू का अब नाद सुनाओ डमरू का तुम नाद सुनाओ डरता हूँ डरा और धमका रहा कोतवाल को चोर डरा रहा देश को है करोना डूबे गोताखोर डॉ. गंगाधर राय डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय 'नन्द' डॉ. राजविन्दर कौर डॉ. सारिका मुकेश डॉ. सुभाष वर्मा डॉ. हरि 'फैजाबादी' डॉ.धर्मवीर डॉ.राष्ट्रबन्धु डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ डॉक्टर गोपेश मोहन जैसवाल डोल रहा ईमान डोलियाँ सजने लगीं ढंग निराला होली के त्यौहार का ढंग निराले होते जग में मिले जुले परिवार के ढंग हमारे बदल गये ढकी ढोल की पोल ढल गयी है उमर ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए ढाईआखर ढुल-मुल नहीं उसूल ढोंग और षड़यन्त्र ढोंग-आडम्बर ढोंगी और कुसन्त ढोंगी साधू ढोलकी का सुर नगाड़ा हो गया तंज करने से बिगड़ती बात हैं तजना नहीं उमंग तजो पश्चिमी रीत तन्त्र अब खटक रहा है तन्त्र ये खटक रहा है तपते रेगिस्तानों में तब मैने माँ तुम्हें पुकारा तब-तब मैं पागल होता हूँ तबाही के कुछ ताजा चित्र तमन्नाओं की लहरे हैं तम्बाकू दो त्याग तम्बाकू को त्याग दो तम्बाकू दो छोड़ तम्बाकू निषेध दिवस तम्बाकू निषेध दिवस पर सन्देश तरबूज तरस रहा माँ-बाप की तवर्ग ताकत देती धूप ताजमहल का सच ताजमहल की हकीकत ताना-बाना ताल-लय उदास हैं तालाबों की पंक तिगड़ी की खिचड़ी तिज़ारत तिज़ारत में सियासत है तिजारत ही तिजारत है तितली तितली आई! तितली आई!! तितली करती नृत्य तितली है फूलों से मिलती तिनका-तिनका दोहा संग्रह तिनके चुन-चुन लाती हैं तिरंगा बना देंगे हम चाँद-तारा तिलक दूज का कर रहीं तीज आ गई है हरियाली तीजो का आया त्यौहार चलो झूला झूलेंगे तीजो का त्यौहार तीन अध्याय तीन तलाक तीन दिनों से भार बारिश तीन पत्थरों का चूल्हा तीन मिसरी शायरी (तिरोहे) तीन मुक्तक तीन साल का लेखा जोखा तीन-लाइना तीस सितम्बर तुकबन्दी तुकबन्दी को ही अपनाओ तुकबन्दी मादक-उन्मादी तुकबन्दी से खिलता उपवन तुकबन्दी से होता वन्दन तुम पंखुरिया फैलाओ तो तुम साथ क्या निभाओगे? तुम हो दुर्गा रूप तुमने सबका काज सँवारा तुमसे ही मेरा घर-घर है तुमसे ही है दुनियादारी तुम्हारे चरण-रज का कण चाहता हूँ तुम्हारे हाथों में तुम्ही मेरी आराधना तुम्हीं ज्ञान का पुंज तुम्हीं साधना-तुम ही साधन तुलसी का पौधा गुणकारी तुलसी का बिरुआ गुणकारी तुलसीदास तुहिन-हिम नभ से अचानक धरा पर झड़ने लगा तू माँ का वरदान ना पाये तू से आप और सर तूफानों से लड़ते जाओ तूफानों से लड़ने में तेइस दोहे तेजपाल का तेज तेरह दोहे तेरह सितम्बर तेल कान में डाला क्यों? तेल-लकड़ी तेवर नहीं अब वो रहे तो कोई बात बने तोंद झूठ की बढ़ी हुई है तोता तोल-तोलकर बोल त्योहारों की रीत त्यौहार त्यौहार तीज का त्यौहारों की गठरी त्यौहारों की शृंखला त्यौहारों पर किसी का खाली रहे न हाथ थक जायेगी नयी रीत फिर थम जाये घुसपैंठ थमे हुए जल में सदा बन जाते शैवाल थर-थर काँपे देह थाली के बैंगन थीम चुराई मेरी थोड़ी है अवशेष थोड़े दिन का प्यार थोड़े दोहाकार है दंगों का है जोर दबा सुरीला कोकिल का सुर दबी हुई कस्तूरी होगी दम घुटता है आज चमन में दम घुटता है आज वतन में दमक उठा है रूप भी’ दया करो हे दुर्गा माता दयानन्द पाण्डेय दरक रहे हैं शैल दरबान बदलते देखे हैं दरवाजे की दस्तक दर्द का मरहम दर्द का मरहम लगा लिया दर्द का सिलसिला दिया तुमने दर्द की छाँव में मुस्कराते रहे दर्द दिल में जगा दिया उसने दर्पण असली 'रूप' दिखाता दर्पण काला-काला क्यों दर्पण में तसबीर दलबदलू दशहरा दशहरा पर दस दोहे दशहरा-दस दोहे" दस दोहे दहे दहेज दाँव-फन्दे आ गये दाढ़ी में है चोर दादी अम्मा दादी जी! प्रसाद दे दो ना दाम नहीं है पास दामिनी काण्ड की बरसी दामिनी को भावभीनी श्रद्धांजलि दामोदर नरेन्द्र भाई मोदी दाल-भात अच्छे लगें दिखने लगा उजाड़ दिखायी तो नहीं जाती दिखावा हटाओ दिन आ गये हैं प्यार के दिन में छाया अँधियारा दिन में सितारों को बुलाते हो दिन है कितना खास दिन है देवोत्थान का व्रत-पूजन का खास दिन हैं अब नजदीक दिनकर है भयभीत दिनांक 27-04-2016 दिया तिरंगा गाड़ दिल दिल की आग दिल की बात दिल की बेकरारी दिल की लगी क्या चीज़ है दिल के करीब और दिल से दूर दिल को बेईमान न कर दिल तो है मतवाला गिरगिट दिल में इक दीप जलाकर देखो दिल-ए-ज़ज़्बात दिलों में उल्फतें कम हैं दिल्लगी समझते हैं दिल्ली दिवस आज का खास दिवस बढ़े हैं शीत घटा है दिवस बहुत है खास दिवस सुहाने आयेंगे दिवाली दिवाली को मनाएँ हम दिवाली मेला दिवाली मेला-नानकमत्ता साहिब दिव्य स्वरूप विराट दिशाहीन को दिशा दिखाते दिसम्बर दीन-ईमान के चोंचले मत करो दीन-ईमान पल-पल फिसलने लगे दीप अब कैसे जलेगा...? दीप खुशियों के जलाओ दीप खुशियों के जलें दीप जगमगाइए दीप जलते रहे दीप बनकर जल रहा हूँ दीप मन्दिर में जलाओ दीपक जलाएँ बार-बार दीपक-बाती दीपशिखा सी शान्त दीपावली दीपावली की शुभकामनाएँ दीपावली के दोहे दीपावली. अँधियारा हरते जाएँगे दीपों की दीपावली दीमक ने पाँव जमाया है दीमकों से चमन को कैसे बचायें?