श्री घासीराम आर्य मेरे पूज्य पिता जी!
यह घटना सन् 1979 की है। उस समय मेरा निवास जिला-नैनीताल की नेपाल सीमा पर स्थित बनबसा कस्बे में था।
पिता जी और माता जी उन दिनों नजीबाबाद में रहते थे। लेकिन मुझसे मिलने के लिए बनबसा आये हुए थे। पिता जी की आयु उस समय 55-60 के बीच की रही होगी। शाम को वो अक्सर बाहर चारपाई बिछा कर बैठे रहते थे। उस दिन भी वो बाहर ही चारपाई पर बैठे थे। तभी एक व्यक्ति मुझसे मिलने के लिए आया। वो जैसे ही मेरे पास आया, पिता जी एक दम तपाक से उठे और उसका हाथ इतना कस कर पकड़ा कि उसके हाथ से चाकू छूट कर नीचे गिर पड़ा। तब मुझे पता लगा कि यह व्यक्ति तो मुझे चाकू मारने के लिए आया था। पिता जी ने अब उस गुण्डे को अपनी गिरफ्त में ले लिया था और वो उनसे छूटने के लिए फड़फड़ा रहा था परन्तु पकड़ ऐसी थी कि ढीली होने का नाम ही नही ले रही थी। अब तो यह नजारा देखने के लिए भीड़ जमा हो गई थी। इस गुण्डे टाइप आदमी की भीड़ ने भी अच्छी-खासी पिटाई लगा दी थी। छूटने का कोई चारा न देख इसने यह स्वीकार कर ही लिया कि डाक्टर साहब के पड़ोसी ने मुझे चाकू मारने के लिए 1000रुपये तय किये थे और इस काम के लिए 100 रुपये पेशगी भी दिये थे। आज वह गुण्डा और मेरा उस समय का सुपारी देने वाला पड़ोसी इस दुनिया में नही है। परन्तु मेरे पिता जी सन् 2014 तक भी 90 वर्ष की आयु में बिल्कुल स्वस्थ थे। लेकिन वृद्धावस्था के कारण अशक्त हो गये थे। जीवन के अन्तिम क्षणों तक पिता जी मेरे साथ ही रहे। मैं और मेरा परिवार उनकी पूरी निष्ठा से सेवा में संलग्न रहे। आज मुझे समझ में आता है कि पिता होते हुए पुत्र पर कोई आँच नही आ सकती है। -- मेरे पिता जी का देहान्त 91 वर्ष की आयु में सन् 2014 में खटीमा में हुआ। उस समय मैंने कुछ दोहे रचे थे- -- पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार। बिना आपके है नहीं, जीवन का आधार।। -- बचपन मेरा खो गया, हुआ वृद्ध मैं आज। सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज।। -- जब तक मेरे शीश पर, रहा आपका हाथ। लेकिन अब आशीष का, छूट गया है साथ।। -- तारतम्य टूटा हुआ, उलझ गये हैं तार। कौन मुझे अब करेगा, पिता सरीखा प्यार।। -- माँ ममता का रूप है, पिता सबल आधार। मात-पिता सन्तान को, करते प्यार अपार।। -- सूना सब संसार है, सूना घर का द्वार। बिना पिता जी आपके, फीके सब त्यौहार।। -- तात मुझे बल दीजिए, उठा सकूँ मैं भार। एक-नेक बनकर रहे, मेरा ये परिवार।। -- मन्दिर, मसजिद-चर्च की, हमें नहीं दरकार। पितृ-दिवस पर पिता को, नमन हजारों बार।। -- पिता विधातारूप है, घर का पालनहार। जीवनरूपी नाव को, तात लगाता पार।। -- माली बनकर सींचता, जो घर का उद्यान। रखता है सन्तान का, पिता हमेशा ध्यान।। -- पिता बिना लगता हमें, सूना पूरा गाँव। पिता सदा परिवार को, देता शीतल छाँव। -- जिसकी उपमा का नहीं, जग में है उपमान। देवतुल्य उस तात का, करना मत अपमान।। -- |