गरमी का मौसम गया, शुरू हुआ चौमास। नभ के निर्मल नीर से, बुझी धरा की प्यास।। सावन आया झूम के, पड़ती सुखद फुहार। तन-मन को शीतल करे, बहती हुई बयार।। बारिश आने से हुआ, हरा-भरा परिवेश। वन की आभा दे रही, हमको ये सन्देश।। गरमी ने अब कर लिया, वर्षा से अनुबन्ध। भीनी-भीनी आ रही, खेतों में से गन्ध।। मक्का फूली खेत में, पके डाल पर आम। जामुन गदराने लगी, डाली पर अभिराम।। धरती पर बिछने लगा, हरा-हरा कालीन। पौधों को जीवन मिला, खुश है जल में मीन।। अपनी धुन में मगन हो, बया बुन रही नीड़। नभ में घन को देख कर, हर्षित काफल-चीड़। बया चहकती नीड़ में, चिड़िया मौज मनाय। पौध धान की शान से, लहर-लहर लहराय।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 5 जुलाई 2022
दोहे "शुरू हुआ चौमास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सोमवार, 4 जुलाई 2022
बालकविता "सबको गर्मी बहुत सताए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शायद वर्षा जल्दी आये! बाजारों में आम आ गये, अमलतास पर फूल छा गये, लेकिन बारिश नजर न आये! -- टर्र-टर्र मेंढक टर्राए! शायद वर्षा जल्दी आये! सूख गये सब ताल-तलैय्या, छोटू कहाँ चलाए नैय्या! सबको गर्मी बहुत सताए! ![]() टर्र-टर्र मेंढक टर्राए! शायद वर्षा जल्दी आये! |
रविवार, 3 जुलाई 2022
ग़ज़ल "चूस मकरन्द भँवरे किनारे हुए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उनके आने से दिलकश नज़ारे हुए मिल गई जब नज़र तो इशारे हुए -- आँखों-आँखों में बातें सभी हो गईं हो गये उनके हम वो हमारे हुए -- रस्मों-दस्तूर की तोड़कर बेड़ियाँ अब तो उन्मुक्त पानी के धारे हुए -- सारी कलियों को खिलना मयस्सर नहीं सूख जातीं कई मन को मारे हुए -- लोग खुदगर्ज़ आये-मिले चल दिये मतलबी यार सारे के सारे हुए -- जो दिलों की हैं धड़कन को पहचानते बेसहारों के वो ही सहारे हुए -- “रूप”-रस का है लोभी जमाना यहाँ चूस मकरन्द भँवरे किनारे हुए -- |
शनिवार, 2 जुलाई 2022
गीत "उलझन-झमेले रहेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जिन्दगी है तो उलझन-झमेले
रहेंगे। वेदनाओं के सँग सुख के मेले
रहेंगे।। -- जिन्दगानी बिना कुछ नही
है धरा, आसमाँ भी नहीं है नहीं है
धरा, जिन्दगी में भरे खेल-खेले
रहेंगे। वेदनाओं के सँग सुख के मेले
रहेंगे।। -- हमको जीवन मिला तो वतन भी
मिला, एक तन भी मिला एक मन भी
मिला, शुद्ध कितने भी हों फिर
भी मैले रहेंगे। वेदनाओं के सँग सुख के मेले
रहेंगे।। -- प्रेम का रोग है,
योग है भोग है, दान है पुण्य है साथ में
लोभ है, स्वार्थ के साथ में आज चेले रहेंगे। वेदनाओं के सँग सुख के मेले
रहेंगे।। -- बस्तियाँ हैं घनी किन्तु
जंगल भी है, प्रीत है मीत है किन्तु
दंगल भी हैं, लोग मधु से भरे पर विषैले
रहेंगे। वेदनाओं के सँग सुख के मेले
रहेंगे।। रूप है रंग है पर अलग ढंग
है, छा रहा है नशा जिन्दगी
दंग है, भीड़ में आदमी तो अकेले
रहेंगे। वेदनाओं के सँग सुख के मेले
रहेंगे।। -- |
शुक्रवार, 1 जुलाई 2022
दोहे "शिन्दे को अब ताज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- वीर शिवा के देश में, लोग हुए नाराज। ढाई साल में शीश से, उतर गया है ताज।। -- राजनीति का हो गया, नाजुक आज मिजाज। महाराष्ट्र सरकार में, शिन्दे को अब ताज।। -- राजनीति की नाव में, नाविक है बदनाम। समय हुआ प्रतिकूल है, करो अभी आराम।। -- समझ न पाया आज तक, क्या होता भूगोल! आपाधापी में दबे, मुद्दे सब अनमोल!! -- चार दिनों की चाँदनी, उसके बाद अँधेर। जल्दी-जल्दी लूट ले, क्यों करता है देर।। -- जो कुछ भी अब घट रहा, वो होगा इतिहास। क्या होगा परिणाम कल, नहीं हमें आभास।। -- राम राज का स्वप्न अब, कैसे हो साकार। नीचे से ऊपर तलक, छाया भ्रष्टाचार।। |
गुरुवार, 30 जून 2022
ग़ज़ल "मुकद्दर आजमाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जिन्हें नाज़ों से पाला था, वही आँखें दिखाते हैं हमारे दिल में घुसकर वो, हमें नश्तर चुभाते हैं जिन्हें अँगुली पकड़ हमने, कभी चलना सिखाया था जरा सा ज्ञान क्या सीखा, हमें पढ़ना सिखाते हैं -- भँवर में थे फँसे जब वो, हमीं ने तो निकाला था मगर अहसान के बदले, वही चूना लगाते हैं -- हुआ अहसास है अब ये, बड़ी है मतलबी दुनिया, गधे को बाप भी अपना, समय पर वो बनाते हैं -- खनक के देख कर जर की, दगा
देना रवायत है चमन में फूल को काँटे,
हमेशा ही सताते हैं -- बगावत करके लोगों ने,
उजाड़ा आशियाँ कैसे छिपे गैरों का पहलू में,
मुकद्दर आजमाते हैं -- नहीं है “रूप” से मतलब, नहीं है रंग की चिन्ता अगर चाँदी के जूते हो, तो सिर पर वो बिठाते हैं -- |
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों स...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...