दोहे "गंगास्नान मेला"


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दोहे "गंगास्नान मेला"


!! शुभ-दीपावली !! -- रोशनी का पर्व है, दीपक जलायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- बातियाँ नन्हें दियों की कह रहीं, इसलिए हम वेदना को सह रहीं, तम मिटाकर, हम उजाले को दिखायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- डूबते को एक तृण का है सहारा, जीवनों को अन्न के कण ने उबारा, धरा में धन-धान्य को जम कर उगायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- जेब में ज़र है नही तो क्या दिवाली, मालखाना माल बिन होता है खाली, किस तरह दावा उदर की वो बुझायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- आज सब मिल-बाँटकर खाना मिठाई, दीप घर-घर में जलाना आज भाई, रोज सब घर रोशनी में झिलमिलायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- |
![]() ![]() ![]() ![]() | ![]() आलोकित हो वतन हमारा। हो सारे जग में उजियारा।। कंचन जैसा तन चमका हो, उल्लासों से मन दमका हो, खुशियों से महके चौबारा। हो सारे जग में उजियारा।। आओ अल्पना आज सजाएँ, माता से धन का वर पाएँ, आओ दूर करें अँधियारा। हो सारे जग में उजियारा।। घर-घर बँधी हुई हो गैया, तब आयेगी सोन चिरैया, सुख का सरसेगा फव्वारा। होगा तब जग में उजियारा।। आलोकित हो वतन हमारा। हो सारे जग में उजियारा।। ♥♥♥ पर्वों की शृंखला में आप सभी को धनतेरस, नर्क चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भइयादूज की हार्दिक शुभकामनाएँ! ♥ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”♥ |
देती नरकचतुर्दशी, सबको यह सन्देश। साफ-सफाई को करो, सुधरेगा परिवेश।। -- दीपक यम के नाम का, जला दीजिए आज। पूरी दुनिया से अलग, हो अपने अंदाज।। -- जन्मे थे धनवन्तरी, करने को कल्याण। रहें निरोगी सब मनुज, जब तक तन में प्राण।। -- भेषज लाये धरा से, खोज-खोज भगवान। धन्वन्तरि संसार को, देते जीवनदान।। -- रोग किसी के भी नहीं, आये कभी समीप। सबके जीवन में जलें, हँसी-खुशी के दीप।। -- त्यौहारों की शृंखला, पावन है संयोग। इसीलिए दीपावली, मना रहे सब लोग।। -- कुटिया-महलों में जलें, जगमग-जगमग दीप। सरिताओं के रेत में, मोती उगले सीप।। |
-- कुलदीपक के है लिए, पर्व अहोई खास। होती है सन्तान पर, माताओं को आस।1। -- माताएँ इस दिवस पर, करती हैं अरदास। उनके सुत का हो नहीं, मुखड़ा कभी उदास।2। -- सन्तानों के लिए है, यह अद्भुत त्यौहार। बेटा-बेटी में करो, समता का ब्यौहार।3। -- शिशुओं की किलकारियाँ, गूँजें सबके द्वार। मिलता बड़े नसीब से, मात-पिता का प्यार।4। -- घर के बड़े-बुजुर्ग है, जीवन में अनमोल। मात-पिता के प्यार को, दौलत से मत तोल।5। -- चाहे कोई वार हो, कोई हो तारीख। संस्कार देते हमें, कदम-कदम पर सीख।6। -- जीवन में उल्लास को, भर देते हैं पर्व। त्यौहारों की रीत पर, हमको होता गर्व।7। -- माता जी सिखला रही, बहुओं को सब ढंग। होते हर त्यौहार के, अपने-अपने रंग।8। -- |
धन के बल पर जुट रहा, भारी
आज हुजूम। कृषक-दिवस के नाम पर,
आडम्बर की धूम।। माटी में करता कृषक, खुद
को मटिया-मेट। फिर भी भरता जा रहा, वो
दुनिया का पेट।। दीन-हीन क्यों हो गया, धरती
का भगवान। देख कृषक की दुर्दशा, भारत
माँ हैरान।। चाहे भारत में रही, कोई
भी सरकार। नहीं किसानों को दिया,
जीवन का आधार।। झूठे भाषण सब करें, झूठी
करते प्रीत। है पोषण के नाम पर, शोषण
की सब रीत।। जागो श्रमिक-किसान अब, धरती
करे पुकार। दूर सियासत से करो, झूठे
नम्बरदार।। कहते भारत देश से, खेत
और खलिहान। शासक बनना चाहिए, धरती
का भगवान।। |
कर रही हूँ प्रभू से यही प्रार्थना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। -- चन्द्रमा की कला की तरह तुम बढ़ो, उन्नति की सदा सीढ़ियाँ तुम चढ़ो, आपकी सहचरी की यही कामना। -- ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। आभा-शोभा तुम्हारी दमकती रहे, मेरे माथे पे बिन्दिया चमकती रहे, मुझपे रखना पिया प्यार की भावना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। -- तीर्थ और व्रत सभी हैं तुम्हारे लिए, चाँद-करवा का पूजन तुम्हारे लिए, मेरे प्रियतम तुम्ही मेरी आराधना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। -- |