-- अपनी सजनी से अगर, पाना चाहो प्यार। जीवनभर करते रहो, सालों की मनुहार।। -- होते हैं ससुराल का, साले ही आधार। समय-समय पर बाँटिए, सालों को उपहार।। -- घर का हो गर चाहते, आप शान्त परिवेश। धन पर करने दीजिए, निज सालों को ऐश।। -- साधारण से हों अगर, जीजा के परिधान। मिलता है ससुराल में, बस उसको अपमान।। -- अगर देखना चाहते, दुनिया में मक्कार। मन में आये उभर कर, सालों का आकार।। -- जीवन अपना ढालिए, सालों के अनुसार। सालों से करना नहीं, नोंक-झोंक-तकरार।। -- सतयुग या कलिकाल हो, कहता जीवन शास्त्र। साले जीजा के लिए, रहे दया के पात्र।। -- रूप सुहाना हो भले, आदत में हैं कंस। बगुलों को तो भूल से, समझ न लेना हंस।। -- खान-पान में चाहिए, रोगी को अनुपान। बिन अनुभव बेकार है, दुनियाभर का ज्ञान।। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024
दोहे "साले हैं उपहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
सोमवार, 14 अक्तूबर 2024
दोहे "साली रस की खान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- सम्बन्धों का है यहाँ, अजब-गजब संसार। घरवाली से भी अधिक, साली से है प्यार।। -- अपनी बहनों से नहीं, भाई करते प्यार। किन्तु सालियों से करें, प्यारभरी मनुहार।। -- जीजा-साली का बहुत, होता नाता खास। जिनके साली हैं नहीं, वो हैं बहुत उदास।। -- साली से अनुराग है, सालों से ससुराल। साली जीजा का रखे, सबसे ज्यादा ख्याल।। -- साली जीजा के लिए, होती है अनुकूल। लगती उसकी गालियाँ, जीजा जी को फूल।। -- साली के बिन तो लगे, सूना सब संसार। सम्बन्धों का सालियाँ, होती हैं आधार।। -- छोटी हो चाहे बड़ी, साली रस की खान। इसीलिए तो सब करें, साली का गुणगान।। -- साली है ऐसा सुमन, जिसमें है मकरन्द। साली की तो गन्ध से, मिल जाता आनन्द।। -- कभी रहे इकरार तो, कभी रहे इनकार। जीजा साली में चले, मधुर-मधुर तकरार।। -- जब करती हैं सालियाँ, खुलकर हँसी मजाक। घरवाली यह देखकर, रह जाती आवाक।। ---- आधी घरवाली नहीं, कहना इसको मित्र। रखना हरदम चाहिए, अपना साफ चरित्र।। |
रविवार, 13 अक्तूबर 2024
दोहे "दशकन्धर था दुष्ट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- लोग समझते हैं यही, दशकन्धर था दुष्ट। लेकिन कलि के काल में, दुष्ट हो रहे पुष्ट।। -- रावण युग में था नहीं, इतना पापाचार। वर्तमान में है नहीं, लोगों में आचार।। -- सत्य आचरण को दिया, लोगों ने अब छोड़। केवल पुतले दहन की, लगी हुई है होड़।। -- पुतले सदियों से सभी, जला रहे हर साल। मन का रावण आज भी, लोग रहे हैं पाल।। -- अच्छाई के सामने, रही बुराई जीत। रीत-रीत ही रह गयी, अब तो केवल रीत।। -- एक दूसरे की यहाँ, कभी न खीँचो टाँग। चीन-पाक से युद्ध हो, यही समय की माँग।। -- महँगाई की राह में, बिछे हुए हैं शूल। भोली जनता के लिए, समय नहीं अनुकूल।। -- बैरी अपना पाक है, लंका अपना मीत। अब तो पाकिस्तान की, मिट्टी करो पलीत।। -- विजयादशमी का तभी, सपना हो साकार। नक्शे पर से जब मिटे, बैरी का आकार।। -- जो समाज को दे दिशा, वो ही है साहित्य। दोहों में मेरे नहीं, होता है लालित्य।। -- |
शनिवार, 12 अक्तूबर 2024
दोहे "विजयादशमी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अच्छाई के सामने, गयी बुराई हार।। -- विजयादशमी विजय का, पावन है त्यौहार। आज झूठ है जीतता, सत्य रहा है हार।। -- रावण के जब बढ़ गये, भू पर अत्याचार। लंका में जाकर उसे, दिया राम ने मार।। -- तब से पुतले दहन का, बढ़ता गया रिवाज। मन का रावण आज तक, जला न सका समाज।। -- आज भोग में लिप्त हैं, योगी और महन्त। भोली जनता को यहाँ, भरमाते हैं सन्त।। -- दावे करते हैं सभी, बदलेंगे तकदीर। अपनी रोटी सेंकते, राजा और वजीर।। -- मनसा-वाचा-कर्मणा, नहीं सत्य भरपूर। आम आदमी मजे से, आज बहुत है दूर।। -- |
शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024
दोहे "नवमी तो श्रीराम की, करती मार्ग प्रशस्त" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- त्यौहारों की शृंखला, लाते हैं नवरात्र।। साफ कीजिए नित्य ही, मन के मैले पात्र।। -- अगर आचरण शुद्ध हो, उज्जवल रहे चरित्र। प्रतिदिन तन के साथ में, मन भी रहे पवित्र।। -- दुर्गा माँ की अष्टमी, देती है सन्देश। जग में पूजा-पाठ का, बन जाये परिवेश।। -- नवमी तो श्रीराम की, करती मार्ग प्रशस्त। बैरी के कर दीजिए, सभी हौसले पस्त।। -- विजयादशमी विजय का, है पावन त्यौहार। उत्सव मानवमात्र के, जीवन का आधार।। -- |
गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024
दोहे "कन्या-पूजन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कन्या
पूजन के लिए, है प्रसाद तैयार। आओ
देवी जीमने, भोज करो स्वीकार।। आई
नवमी-अष्टमी, सजे हुए है थाल। हलवा-पूड़ी
से सजा, माता का पण्डाल।। होता
हो जिस देश में, नारी का सम्मान। दुनियाभर
के लेग सब, उसको देते मान।। होता
है जिस देश में, नारी का अपकर्ष। अबला
नारी का वहाँ, कैसे हो उत्कर्ष।। बेटा-बेटी
के लिए, हों समता के भाव। मिल-जुलकर
मझधार से, पार लगाओ नाव।। प्रतिदिन
माता दिवस है, प्रतिदिन पुत्री पर्व। व्रत-पूजन
के साथ में, करो स्वयं पर गर्व।। |
बुधवार, 9 अक्तूबर 2024
बालकविता "राम नाम है सबसे प्यारा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- जो करता है अच्छे काम। उसका ही होता है नाम।। -- मर्यादा जो सदा निभाता। उसको राम पुकारा जाता। -- राम नाम है सबसे प्यारा। निर्बल का है एक सहारा।। -- सदाचार होता सुखदायक। जिससे राम बने गणनायक।। -- समता का व्यवहार किया। जीवन का आधार दिया।। -- जब आई सम्मुख अच्छाई।। हुई पराजित सकल बुराई।। -- करो न कुंठित प्रतिभाओं को। करो साक्षर ललनाओं को।। -- हो हर बालक राम जब। विश्वगुरू हो देश तब।। -- |
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...