-- अपने छोटे से जीवन में कितने सपने देखे मन में -- इठलाना-बलखाना सीखा हँसना और हँसाना सीखा सखियों के संग झूला-झूला मैंने इस प्यारे मधुबन में कितने सपने देखे मन में -- भाँति-भाँति के सुमन खिले थे आपस में सब हिले-मिले थे प्यार-दुलार दिया था सबने बचपन बीता इस गुलशन में कितने सपने देखे मन में -- एक समय ऐसा भी आया जब मेरा यौवन गदराया विदा किया बाबुल ने मुझको भेज दिया अनजाने वन में कितने सपने देखे मन में -- मिला मुझे अब नया बसेरा नयी शाम थी नया सवेरा सारे नये-नये अनुभव थे अनजाने से इस आँगन में कितने सपने देखे मन में -- कुछ दिन बाद चमन फिर महका बिटिया आयी, जीवन चहका चहका लेकिन करनी पड़ी विदाई भेज दिया नूतन उपवन में कितने सपने देखे मन में -- नारी की तो कथा यही है आदि काल से प्रथा रही है पली कहीं तो, फली कहीं है दुनिया के उन्मुक्त गगन में कितने सपने देखे मन में -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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शनिवार, 31 अक्तूबर 2020
गीत "नारी की तो कथा यही है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020
दोहे "शरद पूर्णिमा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शरद पूर्णिमा पर हँसा, खुलकर आज मयंक। |
गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020
दोहे "मत कर देना भूल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
कवियों की रचनाओं में,
होते भाव प्रधान। |
बुधवार, 28 अक्तूबर 2020
दोहा "ग्वाले हैं भयभीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
नौका में छल-छद्म की, मतलब के सब मीत। |
मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020
गीत "आओ दूर करें अँधियारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
आलोकित हो चमन हमारा। हो सारे जग में उजियारा।। -- दुर्गुण मन से दूर भगाओ, राम सरीखे सब बन जाओ, निर्मल हो गंगा की धारा। हो सारे जग में उजियारा।। -- विजय पर्व हो या दीवाली, रहे न कोई मुट्ठी खाली, स्वच्छ रहे आँगन-गलियारा। हो सारे जग में उजियारा।। -- कंचन जैसा तन चमका हो, उल्लासों से मन दमका हो, खुशियों से महके चौबारा। हो सारे जग में उजियारा।। -- सभी अल्पना आज सजाएँ, माता से धन का वर पाएँ, आओ दूर करें अँधियारा। हो सारे जग में उजियारा।। -- घर-घर बँधी हुई हो गैया, चहके प्यारी सोन चिरैया, सुख का सरसेगा फव्वारा। हो सारे जग में उजियारा।। -- |
सोमवार, 26 अक्तूबर 2020
ग़ज़ल "कठिन बुढ़ापा होता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
-- बहता जल का सोता है हाथ-हाथ को धोता है -- फूल कहाँ से पायेगा वो जो काँटों को बोता है -- जिसके पास अधिक है होता वही अधिकतर रोता है -- साथ समय के सब सम्भव है क्यों धीरज को खोता है -- फसल उगेगी कैसे अच्छी नहीं खेत को जोता है -- मुखिया अच्छा वो कहलाता जो रिश्तों को ढोता है -- धूप “रूप” की ढल जाती तो कठिन बुढ़ापा होता है -- |
रविवार, 25 अक्तूबर 2020
दोहे "हुआ दशानन पुष्ट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- लीलाएँ बाधित हुई, जला नहीं लंकेश। चारों ओर बुराई का, जीवित है परिवेश।। -- कोरोना के काल में, हुआ दशानन पुष्ट।। -- ओढ़ लबादा राम का, घूम रहे हैं दशकन्ध।। -- असभ्यता की बह रही, चारों ओर बयार।। -- मन के शठ संहार के, बने नहीं हथियार।। -- विजय-पर्व के तब तलक, लक्ष्य बहुत हैं दूर।। -- भारत माता कह रही, करो शत्रु का नाश।। -- |
शनिवार, 24 अक्तूबर 2020
विजयादशमी, "दोहे-गौरव का आभास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- मन का रावण मारना, है उत्तम उपहार। विजयादशमी विजय का, है पावन त्यौहार।१। जो दुष्टों के दलन का, करता काम तमाम। उसका ही होता सदा, जग में ऊँचा नाम।२। मानवीयता का रखा, दुनिया में आधार। इसीलिए तो राम की, होती जय-जयकार।३। त्यौहारों का कीजिए, नहीं कभी उपहास। सब पर्वों के मूल में, घटनाएँ हैं खास।४। विजय पर्व पर बाँचिए, स्वर्णिम निज इतिहास। हो जायेगा आपको, गौरव का आभास।५। सत्यनिष्ठ होकर यहाँ, जो करता है काम। कहलाता है जगत में, वो ही राजा राम।६। सुख-सुधिधाएँ त्यागना, नहीं यहाँ आसान। निष्कामी इंसान का, होता है गुण-गान।७। आज हमारे देश में, कृषक नहीं सम्पन्न। फिर भी सुमन समान वो, रहता सदा प्रसन्न।८। नहीं सत्य का है बना, कोई कहीं विकल्प। सत्य बोलने का करो, धारण अब संकल्प।९। मंजिल पाने के लिए, बदलो अपने ढंग। अच्छे लोगों का करो, जीवन में तुम संग।१०। |
शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020
बालकविता "हो हर बालक राम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- जो करता है अच्छे काम। उसका ही होता है नाम।। -- मर्यादा जो सदा निभाता। उसको राम पुकारा जाता। -- राम नाम है सबसे प्यारा। निर्बल का है एक सहारा।। -- सदाचार होता सुखदायक। जिससे राम बने गणनायक।। -- समता का व्यवहार किया। जीवन का आधार दिया।। -- जब आई सम्मुख अच्छाई।। हुई पराजित सकल बुराई।। -- करो न कुंठित प्रतिभाओं को। करो साक्षर ललनाओं को।। -- हो हर बालक राम जब। विश्वगुरू हो देश तब।। -- |
गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020
Remember a poem : Christina Rossetti (अनुवादक : डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Remember a poem : Christina Rossetti अनुवादक : डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” -- मैं जब दूर चला जाऊँगा,मेरी याद तुम्हें आयेगी! जब हो जाऊँगा चिरमौन, तुम्हें यादें तड़पायेंगी! मृत हो जायेगी यह देह, चला जाऊँगा शान्त नगर में! पकडकर तब तुम मेरा हाथ, पुकारोगी मुझको स्वर में! नही अधूरी मंजिल से, मैं लौट पाऊँगा! तुमसे मैं तो दूर, बहुत ही दूर चला जाऊँगा! इक क्षण ऐसा भी आयेगा! मम् अस्तित्व सिमट जायेगा! तुम सवाँर लेना अपना कल! नई योजना बुनना प्रतिपल! यादें तो यादें होती है, तब तुम यही समझना! मुझ अदृश्य के लिए, नही तुम कभी प्रार्थना करना! ऐसा करते-करते इक दिन, भूल मुझे जाओगी! किन्तु अगर तुम याद करोगी, दुःख बहुत पाओगी!! Christina Rossetti AKA Christina Georgina Rossetti जन्म: 5 दिसम्बर, 1839 मृत्यु: 29 दिसम्बर, 1984 |
बुधवार, 21 अक्तूबर 2020
बालकविता "सबका ऊँचा नाम करूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मैं अपनी मम्मी-पापा के, नयनों का हूँ नन्हा-तारा। मुझको लाकर देते हैं वो, रंग-बिरंगा सा गुब्बारा।। -- मुझे कार में बैठाकर, वो रोज घुमाने जाते हैं। पापा जी मेरी खातिर, कुछ नये खिलौने लाते हैं।। -- मैं जब चलता ठुमक-ठुमक, वो फूले नही समाते हैं। जग के स्वप्न सलोने, उनकी आँखों में छा जाते हैं।। -- ममता की मूरत मम्मी-जी, पापा-जी प्यारे-प्यारे। मेरे दादा-दादी जी भी, हैं सारे जग से न्यारे।। -- सपनों में सबके ही, सुख-संसार समाया रहता है। हँसने-मुस्काने वाला, परिवार समाया रहता है।। -- मुझको पाकर सबने पाली हैं, नूतन अभिलाषाएँ। क्या मैं पूरा कर कर पाऊँगा, उनकी सारी आशाएँ।। -- मुझको दो वरदान प्रभू! मैं सबका ऊँचा नाम करूँ। मानवता के लिए जगत में, अच्छे-अच्छे काम करूँ।। -- |
सोमवार, 19 अक्तूबर 2020
गीत "कुछ मजदूरी होगी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- महक रहा है मन का आँगन, दबी हुई कस्तूरी होगी। दिल की बात नहीं कह पाये, कुछ तो बात जरूरी होगी।। -- सूरज-चन्दा जगमग करते, नीचे धरती, ऊपर अम्बर। आशाओं पर टिकी ज़िन्दग़ी, अरमानों का भरा समन्दर। कैसे जाये श्रमिक वहाँ पर, जहाँ न कुछ मजदूरी होगी। कुछ तो बात जरूरी होगी।। -- प्रसारण भी ठप्प हो गया, चिट्ठी की गति मन्द हो गयी। लेकिन चर्चा अब भी जारी, भले वार्ता बन्द हो गयी। ऊहापोह भरे जीवन में, शायद कुछ मजबूरी होगी। कुछ तो बात जरूरी होगी।। -- हर मुश्किल का समाधान है, सुख-दुख का चल रहा चक्र है। लक्ष्य दिलाने वाला पथ तो, कभी सरल है, कभी वक्र है। चरैवेति को भूल न जाना, चलने से कम दूरी होगी। कुछ तो बात जरूरी होगी।। -- अरमानों के आसमान का, ओर नहीं है, छोर नहीं है। दिल से दिल को राहत होती, प्रेम-प्रीत पर जोर नहीं है। जितना चाहो उड़ो गगन में, चाहत कभी न पूरी होगी। कुछ तो बात जरूरी होगी।। -- “रूप”-रंग पर गर्व न करना, नश्वर काया, नश्वर माया। बूढ़ा बरगद क्लान्त पथिक को, देता हरदम शीतल छाया। साजन के द्वारा सजनी की, सजी माँग सिन्दूरी होगी। कुछ तो बात जरूरी होगी।। -- |
रविवार, 18 अक्तूबर 2020
गीत "मुकद्दर रूठ जाते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
शनिवार, 17 अक्तूबर 2020
माता की वन्दना "दया करो हे दुर्गा माता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')
तुमको सच्चे मन से ध्याता। दया करो हे दुर्गा माता।। व्रत-पूजन में दीप-धूप हैं, नवदुर्गा के नवम् रूप हैं, मैं देवी का हूँ उद् गाता। दया करो हे दुर्गा माता।। प्रथम दिवस पर शैलवासिनी, शैलपुत्री हैं दुख विनाशिनी, सन्तति का माता से नाता। दया करो हे दुर्गा माता।। देवी तुम हो मंगलकारिणी, निर्मल रूप आपका भाता। दया करो हे दुर्गा माता।। बनी चन्द्रघंटा तीजे दिन, मन्दिर में रहती हो पल-छिन, सुख-वैभव तुमसे है आता। दया करो हे दुर्गा माता।। कूष्माण्डा रूप तुम्हारा, भक्तों को लगता है प्यारा, पूजा से संकट मिट जाता। दया करो हे दुर्गा माता।। पंचम दिन में स्कन्दमाता, मोक्षद्वार खोलो जगमाता, भव-बन्धन को काटो माता। दया करो हे दुर्गा माता।। कात्यायनी बसी जन-जन में, आशा चक्र जगाओ मन में, भजन आपका मैं हूँ गाता। दया करो हे दुर्गा माता।। कालरात्रि की शक्ति असीमित, ध्यान लगाता तेरा नियमित, तव चरणों में शीश नवाता। दया करो हे दुर्गा माता।। महागौरी का है आराधन, कर देता सबका निर्मल मन, जयकारे को रोज लगाता। दया करो हे दुर्गा माता।। सिद्धिदात्री तुम कल्याणी सबको दो कल्याणी-वाणी। मैं बालक हूँ तुम हो माता। दया करो हे दुर्गा माता।। |
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