“एहसास के गुंचे” जीवन्ता की सम्वेदना “एहसास के गुंचे” की रचयिता को मन मिला है एक
कवयित्री का, जो सम्वेदना की प्रतिमूर्ति तो एक कुशल गृहणी और एक कामकाजी महिला है।
ऐसी प्रतिभाशालिनी कवयित्री का नाम है अनीता सैनी "दीप्ति" जिनकी साहित्य
निष्ठा देखकर मुझे प्रकृति के सुकुमार चितेरे श्री सुमित्रानन्दन पन्त जी की यह
पंक्तियाँ याद आ जाती हैं- "वियोगी होगा पहला कवि, हृदय से उपजा होगा
गान। निकल कर नयनों से चुपचाप, बही होगी कविता
अनजान।।" आमतौर पर देखने
में आया है कि जो महिलाएँ अपनी भावनाओं को मूर्त काव्य का रूप दे रही हैं उनमें
से ज्यादातर चौके-चूल्हे और रसोई की बातों में ही अपना समय व्यतीत करती हैं या
अपने ब्लॉग पर अपनी रचना को लगाकर इतिश्री कर लेती हैं। किन्तु अनीता सैनी ने इस
मिथक को झुठलाते हुए, सदैव साहित्यिक सृजन ही अपने ब्लॉग “गूँगी गुड़िया” और "अवद्त् अनीता" में किया है। चार-पाँच दिन पूर्व मुझे डाक द्वारा “एहसास के गुंचे” काव्य संकलन प्राप्त
हुआ। पुस्तक के नाम और आवरण ने मुझे प्रभावित किया और मैं इसको पढ़ने के लिए
स्वयं को रोक न सका। जबकि इससे पूर्व में प्राप्त हुई कई मित्रों की कृतियाँ
मेरे पास समीक्षा के लिए कतार में हैं। “एहसास के गुंचे” काव्य संकलन की भूमिका विद्वान साहित्यकार
रवीन्द्र सिंह यादव ने लिखी है। जिसमें उन्हों ने कहा है- "एहसास के गुंचे" काव्य संग्रह को पढ़ते हुए सामाजिक सरोकारों
के विभिन्न पहलुओं पर कवयित्री का गहन चिन्तन पृथक-पृथक विषयों पर स्पष्टता के
साथ नजर आया। प्रत्येक खण्ड की रचनाओं में अनेक सवाल खड़े होते हैं जिनके उत्तर
हमें और भावी पीढ़ी के खोजने हैं क्योंकि सामाजिक मूल्यों का सतत ह्रास पतन का
मार्ग है।...सामाजिक-राजनीतिक परिवेश को कविता में समेटना एक चुनौतीभरा कार्य है
जिसे कवयित्री ने निष्पक्ष रहते हुए आम जन की पीड़ा से जुड़े विषयों के साथ बखूबी
अभिव्यक्ति का जरिया बनाया है....।" कवयित्री अनीता सैनी ने अपनी बात में लिखा है- "कविता में लोक-संस्कृति, आंचलिकता के सांस्कृतिक आयाम, समसामयिक
घटनाएँ, पर्यावरण के समक्ष उत्पन्न खतरे, जीवन दर्शन, सौन्दर्य बोध के साथ भाव
बोध, वैचारिक विमर्श को केन्द्र में रखते हुए सम्वेदना को समाहित करना मुझे
आवश्यक लगता है।....आशा है कविताएँ आपके मर्म को छूने का प्रयास करेंगी।" छन्दबद्ध काव्य के सौष्ठव का अपना अनूठा ही
स्थान होता है जिसका निर्वहन कवयित्री ने इस संकलन का प्रारम्भ करते हुए गुरु की
महत्ता के दोहों में कुशलता के साथ किया है- “गुरु की महिमा का करें, कैसे शब्द बखान। जाकरके गुरु धाम में, मिलता हमको ज्ञान -- कठिन राह में जो हमें, चलना दे सिखलाय। गुरू की भक्ति से यहाँ, सब सम्भव हो जाय।।” अनीता सैनी ने अपने काव्य संग्रह “एहसास के गुंचे” में यह सिद्ध कर
दिया है कि वह न केवल एक कवयित्री है बल्कि शब्दों की कुशल चितेरी भी हैं।
उदाहरणस्वरूप "गलीचा अपनेपन का" रचना के कुछ अंश देखिए- "क्यों न हम बिछा दें एक गलीचा अपनेपन का प्रखर धूप में अपने अशान्त चित्त पर स्नेह करुण और बन्धुत्व का" कवयित्री ने प्राची डिडिटल द्वारा प्रकाशित 180 पृष्ठों के अपने काव्यसंग्रह की मंजुलमाला में एक सौ अट्ठाइस रचनाओं के मोतियों को पिरोया है जिनमें विरह, आँसू, अदब-ए-जहाँ, सावन, बोल चिड़िया के, बोलता ताबूत, स्मृति, ढूँठ, सर्द हवाएँ, क्षितिज, साँझ, व्यथा, वेदना नारि की, धरती पुत्र, माँ, गरीबी, अनुभूति, दीप प्रेम का, दर्द दिल्ली का, बटोही, द्वन्द्व, प्रस्थान, मानवता, वक्तआस्था आदि अमूर्त मानवीय संवेदनाओं पर तो अपनी संवेदना बिखेरी है साथ ही दूसरी ओर प्राकृतिक उपादानों को भी अपनी रचना का विषय बनाया है। प्रेम के
विभिन्न रूपों को भी उनकी रचनाओं में विस्तार मिला है। देखिए संकलन की रचना
"दीप प्रेम का" का यह अंश- “झूम उठी खामोशी हवाओं ने सन्देश दिया चौखट ने दीदार किया आँगन ने रूप शृंगार कोना-कोना बतिया उठा गुम हुई खामोशी खुशियाँ चौखट पार उतरीं आओ प्रेम दीप जलायें” “एहसास के गुंचे” काव्यसंग्रह में कवयित्री
ने "आखिर
क्यों" नामक रचना में व्यथा को कुछ इस प्रकार अपने शब्द दिये हैं- “विचारों का प्रलय हृदय को क्षुब्ध, मार्मिक समय मन को स्तब्धता के, घनघोर भँवर में डुबो बैठा, गुरूर की हिलोरे मार रहा मन, स्वाभिमान दौड़ रहा रग-रग में, झलकी आँखों से लाचारी, न जिन्दगी ने भरा दम. न लड़खड़ाये कदम” “एहसास के गुंचे” काव्य संकलन में अनीता
सैनी ने छंदो को अपनी रचनाओं में अधिक महत्व न देकर भावों को ही प्रमुखता दी है
और सोद्देश्य लेखन के भाव को अपनी रचनाओं में हमेशा जिन्दा रखा है। देखिए उनकी
एक अतुकान्त रचना "बोलता ताबूत" का एक दृश्य- "अमन का पैगाम लहू से लिख दिया दिया जो जख्म सीने में छिपा दिया ..... शहीद का दर्जा, चोला केसरिया का पहना दिया खेल गये थे वे राजनीति, मुझे ताबूत में सुला दिया" भावों से
सिक्त सारगर्भित रचना जन्मदात्री "माँ" में कवयित्री ने लेखनी से कुछ
इस प्रकार रचा है- “अन्तर्मन में बहे करुणा माँ स्नेह का संसार निःशब्द भावों में झलके माँ मौन, माँ मुखर हृदय का उद्गार” "गरीबी" नामक
कविता में कवयित्री ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए लिखा है- "हवा ही ऐसी चली जमाने की अमीरी बनी सरताज, गरीबी मुहताज हो गयी सदा रौंदी गयी कुचली गयी गरीबी मिटाने की कोशिशे भी नाकाम हो गयीं"
“एहसास के गुंचे” काव्यसंकलन को पढ़कर
मैंने अनुभव किया है कि कवयित्री अनीता सैनी ने शब्द सौन्दर्य के अतिरिक्त संयोग
और वियोग शृंगार की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह
अत्यन्त सराहनीय है। मुझे
पूरा विश्वास है कि पाठक “एहसास के गुंचे” काव्यसंकलन को पढ़कर
अवश्य लाभान्वित होंगे और यह कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी। “एहसास के गुंचे” काव्यसंकलन को आप कवयित्री के पते- अनीता सैनी करघनी स्कीम, गोविन्दपुरा (ढोटवाड़ा) जयपुर (राजस्थान) से प्राप्त कर सकते हैं। Email-anitasaini.poetry@gmail.com ब्लॉग का नाम- गूँगी गुड़िया BLOG U.R.L. http://www. Gungigudia.com पुस्तक का मूल्य मात्र रु. 240/- है। दिनांकः 05 अक्टूबर, 2020 (डॉ. रूपचन्द्र
शास्त्री ‘मयंक’) कवि एवं साहित्यकार टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308 E-Mail .
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सोमवार, 5 अक्तूबर 2020
समीक्षा “एहसास के गुंचे” (समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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