बिना किसी हथियार के, करते
हैं सब वार।
देखो कितना मुक्त है, आभासी संसार।।
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बिना किसी आकार के, लगता
जो साकार।
सपनों में सबके बसे, आभासी
संसार।।
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बिना किसी सम्बन्ध के, भावों
का संचार।
अनुभव करते हृदय से, आभासी
संसार।।
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होता अन्तर्जाल पर, दूर-दूर
से प्यार।
अच्छा लगता है बहुत, आभासी
संसार।।
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बिन माँगे मिलते जहाँ, बार-बार
उपहार।
अपनापन है बाँटता, आभासी
संसार।।
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साझा करते हैं जहाँ, अपने
सभी विचार।
टिप्पणियाँ स्वीकारता, आभासी
संसार।।
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लिए अधूरे ज्ञान को, भरते
सब हुंकार।
भरा हुआ है दम्भ से, आभासी
संसार।।
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कवियों के तो नाम की, लम्बी
लगी कतार।
छन्दों को है लीलता, आभासी
संसार।।
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माली हों जब लूटते, अपनी
स्वयं बहार।
आपाधापी का हुआ, आभासी
संसार।।
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सत्य बताने के लिए, “रूप” हुआ लाचार।
नौसिखियों के सामने, सर्जक
हैं बेकार।।
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"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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सोमवार, 7 अक्तूबर 2019
दोहे "आभासी संसार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मंगलवार, 31 मई 2016
दोहे "आभासी संसार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बिना
किसी सम्बन्ध के, भावों का संचार।
अनुभव
करते हृदय से, आभासी संसार।।
--
होता
अन्तर्जाल पर, दूर-दूर से प्यार।
अच्छा
लगता है बहुत, आभासी संसार।।
--
बिना
किसी हथियार के, करते हैं सब वार।
होता बिल्कुल मुक्त है, आभासी
संसार।।
--
बिना
किसी आकार के, लगता जो साकार।
सपनों
में सबके बसे, आभासी संसार।।
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बिन
माँगे मिलते जहाँ, बार-बार उपहार।
अपनापन
है बाँटता, आभासी संसार।।
--
साझा
करते हैं जहाँ, अपने सभी विचार।
टिप्पणियाँ
स्वीकारता, आभासी संसार।।
--
लिए
अधूरे ज्ञान को, भरते सब हुंकार।
भरा
हुआ है दम्भ से, आभासी संसार।।
--
कवियों
के तो नाम की, लम्बी लगी कतार।
छन्दों
को है लीलता, आभासी संसार।।
--
माली
ही खुद लूटते, अब तो बाग-बहार।
आपाधापी
का हुआ, आभासी संसार।।
--
सत्य
बताने के लिए, “रूप” हुआ लाचार।
नौसिखियों
के सामने, सर्जक हैं बेकार।।
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सोमवार, 19 अक्तूबर 2015
दोहे "आभासी संसार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
बिना किसी सम्बन्ध
के, भावों का संचार।
अनुभव करते हृदय
से, आभासी संसार।।
--
जालजगत पर उमड़ता, दूर-दूर से प्यार।
अच्छा लगता है
बहुत, आभासी संसार।।
--
बिना किसी हथियार
के, करते हैं सब वार।
भय से होता मुक्त
है, आभासी संसार।।
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निराकार होकर लगें,
सभी यहाँ साकार।
सपनों में सबके
बसे, आभासी संसार।।
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बिन माँगे मिलते
जहाँ, बार-बार उपहार।
अपनापन है बाँटता,
आभासी संसार।।
--
साझा करते हैं यहाँ, अपने सभी विचार।
टिप्पणियाँ
स्वीकारता, आभासी संसार।।
--
लिए अधूरे ज्ञान
को, भरते सब हुंकार।
भरा हुआ है दम्भ
से, आभासी संसार।।
--
कवियों के तो नाम
की, लम्बी लगी कतार।
छन्दों में बँधता नहीं, आभासी संसार।।
--
माली ही खुद
लूटते, अब तो बाग-बहार।
आपाधापी का हुआ,
आभासी संसार।।
--
सत्य बताने के लिए, "रूप" हुआ लाचार।
नौसिखियों के सामने, सर्जक हैं बेकार।।
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