अभिमानी का एक दिन, होगा चूर गरूर।।
अपना हक लेना नहीं, कहलाता है पाप।
पीओके के राग का, बन्द करो आलाप।।
सारा जग है जानता, सिंहों की हुंकार।
गीदड़-भभकी है नहीं, भारत की ललकार।।
है सिर पर लटकी हुई, दोधारी तलवार।
टुकड़े पाकिस्तान के, देखेगा संसार।।
सारी दुनिया में बना, पाकिस्तान कलंक।
भारत देगा अब मिटा, उग्रवाद-आतंक।।
अपना है करतारपुर, अपना है लाहौर।
पूरा ही कशमीर है, भारत का शिरमौर।।
आज उठाने हैं हमें, वीरों कदम कठोर।
सरसेगी तब देश में, निशदिन सुख की भोर।।
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शनिवार, 31 अगस्त 2019
दोहे "भारत की ललकार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 29 अगस्त 2019
दोहे "उपमा में उपमान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जीवन के हर क्षेत्र में, साँठ-गाँठ भरपूर।
अब मयंक की चाँदनी, शीतलता से दूर।।
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सूखा है बरसात में, आती नहीं उमंग।
चौमासे में खो गयी, जाने कहाँ तरंग।।
बदल गया है आदमी, बदल गया किरदार।
खोजो पानीदार को, करो प्रीत-मनुहार।।
तौल रहे सामान को, सब अपने अनुसार।
निर्मल अब बहती नहीं, गंगा जी की धार।।
मन के घोड़े पर हुआ, लालच आज सवार।
मधुमक्खी सा हो गया, लोगों का व्यवहार।।
नवयुग के इंसान में, नहीं रही वो बात।
बता रहा है समय अब, दुनिया को औकात।।
छन्दशास्त्र गायब हुए, है भेड़िया-धसान।
नहीं रहा साहित्य में, उपमा में उपमान।।
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गीत "अब तो युद्ध जरूरी है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपने हक के लिए पाक से अब तो युद्ध जरूरी है
दशकों से हमने झेला, आतंकी कुटिल-कुचालो को
पूर्णविराम लगा देंगे अब, उठते हुए सवालो को
मखबूजा कश्मीर बिना आजादी अभी अधूरी है
अपने हक के लिए पाक से अब तो युद्ध जरूरी है
हमें तिरंगा पीओके पर जा करके फहराना है
अपने हिस्से के फिर से अपना भूभाग बनाना है
मुजफ्फऱाबाद से अब तो केवल चार कदम की दूरी है
अपने हक के लिए पाक से अब तो युद्ध जरूरी है
देखेगा होकर भौचक्का जगत शौर्य सैनिक-बल का
आने वाला है अवसर, जब खेल खतम होगा छल का
पूर्ण स्वराज दिलाने की अब तो तैयारी पूरी है
अपने हक के लिए पाक से अब तो युद्ध जरूरी है
आतंकी का मुल्क कई टुकड़ों में अब बँट जायेगा
झेलम का पानी दुनिया में अपना रंग दिखायेगा
अब दिल्ली के शासक से मिलने वाली मंजूरी है
अपने हक के लिए पाक से अब तो युद्ध जरूरी है
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बुधवार, 28 अगस्त 2019
दोहे "वाकिफ आज जहान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पलभर में ही हट गई, शोलों पर से राख।
भारत का कश्मीर है, भारत का लद्दाख।।
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भूल गया इतिहास को, याद नहीं भूगोल।
गीदड़ फिर भी शेर की, रहा बोलियाँ बोल।।
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नाम भले ही पाक हो, लेकिन है शैतान।
कुटिल चाल से हो गया, वाकिफ आज जहान।।
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छलनी को दिखते नहीं, खूद अपने सूराख।।
सिखा रही वो सूप को, आज अदब-अखलाख।।
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जिस शाखा पर घोंसला, काट रहा वो डाल।
कौन बचायेगा उसे, जिसके सिर पर काल।।
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मूरख जब कोशिश करे, बनने की चालाक।
अपने घर की आग से, हो जाता वो ख़ाक।।
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चौमासा मत समझना, जेठ और बैसाख।
चिंगारी मत फेंकना, ओ जालिम-गुस्ताख।।
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सोमवार, 26 अगस्त 2019
गीत "गीत बन जाऊँगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुनगुनाओ जरा कोई धुन प्यार से,
मैं तुम्हारे लिए गीत बन जाऊँगा।
मेरी सूरत बसाओ हृदय में प्रिये!
जन्मभर के लिए मीत बन जाऊँगा।
आग बुझने न देना कभी प्यार की,
बात करना सदा नव्य उपहार की,
हीरे-पन्ने तो पत्थर हैं-निष्प्राण हैं,
मैं तुम्हारे लिए प्रीत बन जाऊँगा।
मैं तुम्हारे लिए मीत बन
जाऊँगा।।
मन के विश्वास को हारना मत कभी
हार संसार से मानना मत कभी,
तुम बुरे वक्त में याद करना मुझे,
मैं तुम्हारे लिए जीत बन जाऊँगा।
मैं तुम्हारे लिए मीत बन
जाऊँगा।।
धन-घटा देख भयभीत होना न तुम,
चश्म को आँसुओं से भिगोना न तुम,
ढाल की क्या जरूरत तुम्हें है प्रिये!
मैं तुम्हारे लिए भीत बन जाऊँगा।
मैं तुम्हारे लिए मीत बन
जाऊँगा।।
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रविवार, 25 अगस्त 2019
दोहे "पण्डित टीकाराम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मित्रों!
आज मेरे मित्र कविमना स्व. टीकाराम पाण्डेय
जी की
6वीं पुण्यतिथि पर उनके पुत्र रवीन्द्र
पाण्डेय पपीहा ने
बनबसा चम्पावत में एक कविगोष्ठी का आयोजन
किया।
इस अवसर पर श्रद्धांजलिस्वरूप मेरे कुछ
दोहे-
पण्डित टीकाराम थे, जिन्दादिल इंसान।
सदा सींचते वो रहे, कविता का उद्यान।।
कैसे भी हालात हों, कभी न मानी हार।
मीठी वाणी से दिया, लोगों को उपहार।।
स्वरलहरी थी मोहिनी, अद्भुत शब्द विधान।
उद्घोषक के रूप में, जिनकी थी पहचान।।
काव्यकला में निपुण थे, पण्डित टीका राम।
अनुशासित होकर किये, अपने सारे काम।।
करते श्रद्धाभाव से, हम जिनको हैं याद।
सैनिक सा जीवन जिया, सेवा के भी बाद।।
गूँज रहे हैं व्योम में, उनके शुभ सन्देश।
जाति-धर्म से है बड़ा, अपना भारत देश।।
चलता उनकी राह पर, उनका है परिवार।
धूप-दीप श्रद्धासुमन, करो मित्र स्वीकार।।
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ग़ज़ल "हो गये हैं लोग कितने बेशरम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अब नहीं आँखों में कोई भी शरम
हो गये हैं लोग कितने बेशरम
की नहीं जिसने कभी कोई मदद
चाहते वो दूसरों से क्यों करम
जब जनाजा उठ गया ईमान का
क्या करेगा फिर वहाँ दीनो-धरम
तम्बुओं में रह रहा जब राम हो
दिल में अपने पालते हो क्यों भरम
चोट कब मारोगे ओ मेरे सनम
ढाल दो साँचे में लोहा है गरम
जर्रे-जर्रे में समाया है खुदा
हैं दिखावे के लिए दैरो-हरम
रूप पर अभिमान मत इतना करो
दिल को अपने कीजिए थोड़ा नरम
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शनिवार, 24 अगस्त 2019
दोहे "कृष्णचन्द्र गोपाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बीत गया सावन सखे, आया भादौ मास।
जन्मदिवस श्रीकृष्ण का, पर्व बहुत है खास।।
दोपायों से हो रहे, चौपाये भयभीत।
मिल पायेगा फिर कहाँ, दूध-दही नवनीत।।
जब आयेंगे देश में, कृष्णचन्द्र गोपाल।
आशा है गोवंश का, तब सुधरेगा हाल।।
हाथ थाम कर अनुज का, जब चलते बलराम।
धरा और आकाश में, मानो हों घनश्याम।।
जल थल में क्रीड़ा करें, बालक जब नन्दलाल।
नृत्य करें तब गोपियाँ, ग्वाले देते ताल।।
बजती है जब चैन की, बंशी आठों याम।
धन्य हुआ गोपाल से, तब मथुरा का धाम।।
वसुन्धरा में कृष्ण जब, ले लेंगे अवतार।
अपने भारतवर्ष का, होगा तब उद्धार।।
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शुक्रवार, 23 अगस्त 2019
दोहे "योगिराज का जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
योगिराज का जन्मदिन, मना रहा संसार।
हे मनमोहन देश में, फिर से लो अवतार।।
सुनने को आतुर सभी, बंसी की झंकार।
मोहन आओ धरा पर, भारत रहा पुकार।।
श्री कृष्ण भगवान ने, दूर किया अज्ञान।
युद्ध भूमि में पार्थ को, दिया अनोखा ज्ञान।।
भारत के वर्चस्व का, जिससे हो आभास।
लगता वो ही ग्रन्थ तो, हमको सबसे खास।।
वेद-पुराण-कुरान का, गीता में है सार।
भगवतगीता पाठ से, होते दूर विकार।
दो माताओं का मिले, जिसको प्यार दुलार।
वो ही करता जगत में, दुष्टों का संहार।।
दुर्योधन जब हो गया, सत्ता मद में चूर।
तब मनमोहनश्याम ने, किया दर्प को दूर।।
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ग़ज़ल "सच्चाई अब डरने लगी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बेवफाई वफा से लड़ने लगी
जब से अपने शहर आवारा हुए
रास्तों में गन्दगी बढ़ने लगी
जब से पच्छिम की चलीं हैं आँधियाँ
गाँव में अश्लीलता सड़ने लगी
मतलबी रिश्ते औ’ नाते हो गये
फूट हर परिवार में पड़ने लगी
जूतियाँ हरजाई जब से हो गयी
पाँव में कीलें बहुत गड़ने लगी
परबतों पर सज रहे हैं मयकदाँ
बेहयाई सीढ़ियाँ चढ़ने लगी
शोर के संगीत में सुर हैं कहाँ
मौशिकी में शायरी मरने लगी
इल्म के उस्ताद बौने हो गये
पाठशाला पाठ खुद पढ़ने लगी
अदब में है 'रूप' की महफिल सजी
आशिकी बौनी ग़ज़ल गढ़ने लगी
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नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...