साथी साथ निभाते रहना। मेरे मन के उपवन में तुम, सुन्दर सुमन खिलाते रहना।। दुख आया या सुख मुस्काया, साथ-साथ सब हमने झेले, गाड़ी के दो पहिए बनकर, पार किये हैं सभी झमेले, मेरी सरगम में आगे भी, तुम आवाज़ मिलाते रहना। मेरे मन के उपवन में तुम, सुन्दर सुमन खिलाते रहना।। मेरे माता और पिता जी, धन्य हुए बेटी को पाकर, सगी बेटियाँ भूल गये हैं, तुमसे पाकर इतना आदर, बेटे, पोते-पोती पर भी, स्नेह सुधा बरसाते रहना। मेरे मन के उपवन में तुम, सुन्दर सुमन खिलाते रहना।। रोटी-दूध उन्हें भी मिलता, जो बिन झोली के बेचारे, चौकीदारी करते रहते, टॉम-फिरंगी प्यारे-प्यारे, अपनी मोहक मुस्कानों से, सबका मन बहलाते रहना। मेरे मन के उपवन में तुम, सुन्दर सुमन खिलाते रहना।। सफर हुआ अड़तिस वर्षों का, घर मेरा बन गया हबेली, लेकिन तुम लगती हो मझको, अब भी बिल्कुल नई-नवेली, स्वप्निल आँखो के कोनों में, सुख-सपने दिखलाते रहना। मेरे मन के उपवन में तुम, सुन्दर सुमन खिलाते रहना।। |
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सोमवार, 5 दिसंबर 2011
"हमारी 38वीं वैवाहिक वर्षगाँठ पर " डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
शुक्रवार, 21 जनवरी 2011
"आज उच्चारण हुआ दो वर्ष का" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
आज का दिन है बहुत ही हर्ष का। आज उच्चारण हुआ दो वर्ष का।। कठिन पथ था और अनजाना सफर था। अजनबी था मैं, नया सा यह नगर था।। प्यार से सबने यहाँ मुझको सराहा। सभी ने स्वागत किया उर से लगाया।। बन गया दो साल में घर-बार नूतन। रम गया है ब्लॉग के संसार में मन।। शब्द की तुकबन्दियों को मिल गया आधार है। सभी रचनाधर्मियों का हृदय से आभार है।। ब्लॉग की दुनिया में रचनाकार आएँ। जाल पर आकर नया चिट्ठा बनाएँ।। शारदे माँ सभी को वरदान दो। विश्व भर को ज्ञान दो-विज्ञान दो।। |
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