-- इस भौतिक संसार में, माता के नवरूप। रहती बारहमास ही, खिली रूप की धूप।। -- ज्ञानदायिनी शारदे, मन के हरो विकार। मुझ सेवक पर कीजिए, इतना सा उपकार।। -- मेरे शब्दों को करो, माता जी साकार। बिना आपके है नहीं, इनका कुछ आधार।। -- खाली झोली साथ है, मेला लगे उदास। भर दो कंचन ज्ञान से, करता हूँ अरदास।। -- श्रोता बनकर आ गया, माता जी के द्वार। वीणा की झंकार का, माँग रहा उपहार।। -- मेरी करुण पुकार पर, देना माता ध्यान। पूजन-वन्दन का नहीं, मुझको कुछ भी ज्ञान।। -- ज्ञानदायिनी आप हो, सेवक है नादान। छन्दों में भर दीजिए, माता सुर-लय-तान।। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 6 अक्तूबर 2024
दोहे "माता के नवरूप" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बुधवार, 22 मार्च 2023
दोहे "सबको देते प्रेरणा, माता के नवरूप" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- निष्ठा से पूजन करो, लेकर दीपक-धूप।। -- सच्चे मन से कीजिए, माता का गुण-गान। माता तो सन्तान का, रखती पल-पल ध्यान।। -- अभ्यागत को देखकर, होना नहीं उदास। करो प्रेम से आरती, रक्खो व्रत-उपवास।। -- शुद्ध बनाने के लिए, आते हैं नवरात्र। ज्ञानी बनने के लिए, पढ़ो नियम से शास्त्र।। सारे सपनों को करें, माता जी साकार। कर्मों से ही तो बने, जीवन का आधार।। -- ज्ञानदायिनी शारदे, भर दो खाली ताल। वीणा की झंकार से, कर दो मुझे निहाल।। -- |
बुधवार, 6 अक्तूबर 2021
दोहे "सबको देते प्रेरणा, माता के नवरूप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- श्राद्ध गये तो आ गये, माता के नवरात्र। लीला का मंचन करें, रामायण के पात्र।। -- सबको देते प्रेरणा, माता के नवरूप। निष्ठा से पूजन करो, लेकर दीपक-धूप।। -- सच्चे मन से कीजिए, माता का गुण-गान। माता तो सन्तान का, रखती पल-पल ध्यान।। -- अभ्यागत को देखकर, होना नहीं उदास। करो प्रेम से आरती, रक्खो व्रत-उपवास।। -- शुद्ध बनाने के लिए, आते हैं नवरात्र। ज्ञानी बनने के लिए, पढ़ो नियम से शास्त्र।। -- सारे सपनों को करें, माता जी साकार। कर्मों से ही तो बने, जीवन का आधार।। -- ज्ञानदायिनी शारदे, भर दो खाली ताल। वीणा की झंकार से, कर दो मुझे निहाल।। -- |
बुधवार, 14 अप्रैल 2021
दोहे "सबको देते प्रेरणा, माता के नवरूप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
निष्ठा से पूजन करो, लेकर दीपक-धूप।। -- सच्चे मन से कीजिए, माता का गुण-गान। माता तो सन्तान का, रखती पल-पल ध्यान।। -- अभ्यागत को देखकर, होना नहीं उदास। करो प्रेम से आरती, रक्खो व्रत-उपवास।। -- शुद्ध बनाने के लिए, आते हैं नवरात्र। ज्ञानी बनने के लिए, पढ़ो नियम से शास्त्र।। सारे सपनों को करें, माता जी साकार। कर्मों से ही तो बने, जीवन का आधार।। -- ज्ञानदायिनी शारदे, भर दो खाली ताल। वीणा की झंकार से, कर दो मुझे निहाल।। |
रविवार, 2 अक्तूबर 2016
दोहे "माता के नवरूप" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
इस भौतिक संसार में, माता के नवरूप।
रहती बारहमास ही, खिली रूप की धूप।।
--
ज्ञानदायिनी शारदे, मन के हरो विकार।
मुझ सेवक पर कीजिए, इतना सा उपकार।।
--
मेरे शब्दों को करो, माता जी साकार।
बिना आपके है नहीं, इनका कुछ आधार।।
--
खाली झोली साथ है, मेला लगे उदास।
भर दो कंचन ज्ञान से, करता हूँ अरदास।।
--
श्रोता बनकर आ गया, माता जी के द्वार।
वीणा की झंकार का, माँग रहा उपहार।।
--
मेरी करुण पुकार पर, देना माता ध्यान।
पूजन-वन्दन का नहीं, मुझको कुछ भी ज्ञान।।
--
ज्ञानदायिनी आप हो, सेवक है नादान।
छन्दों में भर दीजिए, माता सुर-लय-तान।।
|
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...