चिड़िया रानी फुदक-फुदक कर, मीठा राग सुनाती हो। आनन-फानन में उड़ करके, आसमान तक जाती हो।। --मेरे अगर पंख होते तो, मैं भी नभ तक हो आता। पेड़ो के ऊपर जा करके, ताजे-मीठे फल खाता।। -- जब मन करता मैं उड़ कर के, नानी जी के घर जाता। आसमान में कलाबाजियाँ कर के, सबको दिखलाता।। --सूरज उगने से पहले तुम, नित्य-प्रति उठ जाती हो। चीं-चीं, चूँ-चूँ वाले स्वर से , मुझको रोज जगाती हो।। --तुम मुझको सन्देशा देती, रोज सवेरे उठा करो। अपनी पुस्तक को ले करके, पढ़ने में नित जुटा करो।। -- चिड़िया रानी बड़ी सयानी, कितनी मेहनत करती हो। एक-एक दाना बीन-बीन कर, पेट हमेशा भरती हो।। -- अपने कामों से मेहनत का, पथ हमको दिखलाती हो।। श्रम के लिए बना है जीवन, सीख यही सिखलाती हो। -- |
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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020
बालकविता "श्रम के लिए बना है जीवन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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