ऊसर जमीन में हम, उपहार बो रहे हैं।
हम गीत और ग़ज़ल के उदगार ढो रहे हैं।।
बन कर सजग सिपाही, हम दे रहे हैं पहरे,
हम मेटने चले हैं, पर्वत के दाग गहरे,
उनको जगा रहे हैं, थककर जो सो रहे
हैं।
हम गीत और ग़ज़ल के उदगार ढो रहे हैं।।
तूफान आँधियों में, हमने दिये जलाये,
फानूस बन गये हम, जब दीप झिलमिलाये,
उनको गले लगाते, जो ख़ार हो रहे हैं।
हम गीत और ग़ज़ल के उदगार ढो रहे हैं।।
मनके सभी पिरोये, टूटे सुजन मिलाये.
वीरान वाटिका में, रूठे सुमन खिलाये,
माला के तार में हम, अब प्यार पो रहे
हैं।
हम गीत और ग़ज़ल के उदगार ढो रहे हैं।।
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मंगलवार, 15 जनवरी 2013
"ऊसर ज़मीन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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