पुस्तक समीक्षा

समीक्ष्य-
दोहा-कृति- 'खिली रूप की धूप'
दोहाकार-'डा.रूपचन्द्र
शास्त्री 'मयंक'
प्रथम
संस्करण-2016
मूल्य-200/-
प्रकाशक-आरती
प्रकाशन, लालकुआँ
(नैनीताल) उत्तराखंड
समीक्षक-मनोज
कामदेव कवि/लेखक/समीक्षक
गाजियाबाद(यू.पी.)।
(मो.न.09818750159)
समीक्ष्य
दोहा-कृति 'खिली रूप की धूप' कवि के उत्कृष्ट, सामाजिक प्रभावपूर्ण
व ह्र्दयस्पर्शी दोहों का मात्र एक गुलदस्ता नहीं बल्कि एक समग्र उपवन है। इस
दोहे संग्रह में जिन्दगी के विभिन्न रंग, अनेक पहलू, अनेक यथार्थ, अनुभूतियाँ, सामाजिक चिंतन, आँसू, मुस्कान, पीर, हर्ष-विषाद के अनेक
परिदृश्य इस संग्रह में अति श्रेष्ठता, कलात्मकता, गहनता व परिपवक्ता के
साथ समाहित किए गए हैं।
कवि
की वैचारिकता में वैशिष्ट्य है, तो कथ्य में गहराई व
वजन भी है। सम्प्रेषणीयता की दृष्टि से हर दोहा खरा उतरता है। प्रस्तुति में
रवानगी है तो विषयवस्तु में मौलिकता, प्रखरता, तरलता व विविधता भी
है। तभी तो 144 पृष्ठीय कृति में जीवन के यथार्थ व सत्य को उकेरते हुए
प्रायः हर विषयवस्तु के दोहे समाहित हो गये हैं।
डॉ.रूपचन्द्र
शास्त्री 'मयंक जी ने 'खिली रूप की धूप' में उर्दू और एंव हिन्दी के शब्दों
का उत्तम प्रयोग किया है तथा अपने मन के भावों को शब्दों के माध्यम से इस
पुस्तक के फलक पर सजीवरूप में उतार दिया है। इस पुस्तक को मैंने पढ़ा और यह मेरे दिल को छू गई ये पुस्तक। उदाहरण के तौर पर उसके कुछ दोहों के अंश प्रस्तुत हैं-
माँ
ममता का रूप है, पिता सबल आधार।
मात-पिता
सन्तान को, करते प्यार अपार।।
(तात मुझे बल दीजिए)
गुरु-शिष्य
पागल हुए, ज्ञान हुआ विकलांग।
नहीं
भरोसा कर्म पर, बाँच रहे पंचांग।।
(पागलपन)
आभासी
संसार है, आभासी सम्बन्ध।
मिलने-जुलने
के लिए, हो जाते अनुबन्ध।।
(मुखपोथी बनाम फेसबुक)
हिन्दी
का दिन बन गया, अब तो एक मखौल।
अंग्रेजी
के भक्त भी, बजा रहे हैं ढोल।।
(हिन्दी दिवस)
अपनी
सूरत देख कर, विदित हुआ परिणाम।
उगते
सूरज को करें, झुककर सभी प्रणाम।।
(मत होना मगरूर)
अब
मजहब के नाम पर, होते ओछे कर्म।
मुल्ला-पण्डित-पादरी, के चंगुल में
धर्म।।
(धर्म)
ढाई
आखर में छिपा, जीवन का विज्ञान।
माँगे
से मिलता नहीं, कभी प्यार का दान।।
(छन्दों का विज्ञान)
पूरब
से होता शुरू, नूतन जीवन सत्र।
दिनचर्या
के भेजता, सूरज लिखकर पत्र।।
(आशा का अध्याय)
कच्चे
धागों से बँधी, रक्षा की पतवार।
रोली-अक्षत-तिलक
में, छिपा हुआ है प्यार।।
(रक्षाबन्धन)
मिलते
हैं संसार में, पग-पग पर आघात।
जाँच-परख
कर कीजिए, साझा मन की बात।।
(शैवाल)
थोथी-थोथी
सी लगें, सरकारी तकरीर।
कैसे
निर्मल हो यहाँ, गंगा जी का नीर।।
(लोभ)
नहीं
बुढ़ापे में चलें, यौवन जैसे पाँव।
बरगद
बूढ़ा हो चला, कब तक देगा छाँव।।
(उलझे तार)
इतने
पर भी बोलता, पाक झूठ पर झूठ।
जब
बनता माहौल कुछ, तब ही जाता रूठ।।
(वन्देमातरम्)
कण-कण
में जो रमा है, वो ही है भगवान।
मंदिर-मस्जिद
में उसे, खोज रहा नादान।।
(ईश्वर आता याद)
भारत
माँ कोख से, जन्मा पूत कलाम।
करते
श्रद्वा-भाव से, उसको आज सलाम।।
(ए.पी.जे.अब्दुल कलाम)
सरकारी
अनुभाग में, रिश्वत की भरमार।
आम
आदमी पूछता, ये कैसी सरकार।।
(नौकरशाही)
नीम
करेला जगत में, कभी न मीठा होय।
मगर
न छोड़े दुष्टता, पीकर निर्मल तोय।।
(अच्छे दिन)
जर्रे-जर्रे
में बसा, राम और रहमान।
सिखलाते
इंसानियत, पूजा और अजान।।
(ईद मुबारक)
दोहे
लिखने में कभी, चलता नहीं जुगाड़।
नियमों
से करना नहीं, कोई भी खिलवाड़।।
(नियम-विधान)
पेड़
कट गये धरा के, बंजर हुई जमीन।
प्राणवायु
घटने लगी, छाया हुई विलीन।।
(पर्यावरण)
दोहा
छोटा छ्न्द है, करता भारी मार।
सीधे-सादे
शब्द ही, करते सीधा वार।।
(दोहा छोटा छन्द)
वास्तव
में हर दोहा एक से एक बढकर एक हैं। मुखपृष्ठ सादा पर आकर्षक है,
छपाई
उत्तम है। निष्कर्ष यह कि यह दोहा-संग्रह साहित्य की एक बहुत बड़ी धरोहर है और "खिली रूप की धूप"समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।
समीक्षक-मनोज
कामदेव कवि/लेखक/समीक्षक
गाजियाबाद(यू.पी.)।
(मो.न.09818750159)
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बहुत अच्छा, ज्ञान की बाते ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा प्रस्तुति ..
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