कदम-कदम पर घास
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
टनकपुर-रोड, खटीमा (उत्तराखंड)
मूल्य-200/-
प्रकाशक- आरती प्रकाशन, लालकुआँ (नैनीताल)
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी ने अपने कर कमलों
द्वारा अपनी पुस्तक स्वंय भेंट की जिसका नाम है 'कदम-कदम पर घास'। यह पुस्तक दोहा-संग्रह है। यह दोहा-संग्रह मैंने जब
पढ़ना शुरू किया तो मैं इस दोहा-संग्रह में डूबता ही चला गया और डूबता ही चला
गया समय कब गुजर गया पता ही नहीं चला। डा. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी
के पास शब्दों की वो भाषा है जो वो अपनी बात को बहुत ही सरल शब्दों से आम पाठक
के जन मानस में अपना स्थान बता लेती है। इस पुस्तक में 75 विषयों पर दोहे लिखे हैं। बड़ा साहित्यकार वही होता है जो
थोड़े शब्दों में ही अपनी बात को अपने पाठकों तक पहुँचा सके जिसमें डा. रूपचन्द्र
शास्त्री 'मयंक'जी बहुत ही खरे उतरे हैं।
सच कहूँ तो डा. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'जी ने इस दोहा-संग्रह में
विभिन्न पहलुओं को छुआ है विशेषकर माता-दिवस पर,साहित्य पर,छ्न्द विधान पर,राजनीति पर,
साक्षरता
पर,जनतंत्र पर,जीवन के आधार पर,हमारे त्योहारों पर, समय पर,महापुरूषों पर, और प्राकृतिक-उपादानों के माध्यम से संसार और अपने पाठको
को ज्ञान और उपदेश प्रत्यक्ष रूप से देते दिखाई देते हैं और समस्त समस्याओं को
चिन्तन हेतू बाध्य करने वाली समस्याओं पर ध्यान आकर्षित किया है समाज का। हिन्दी
साहित्य के क्षेत्र में छ्न्दों को महत्वपूर्ण माना जाता है तथा आज के दौर में
छन्द विधान में लिखना एक बेहद कठिन कार्य है परन्तु डा. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'जी ने इस कठिन कार्य को
एक नये अंदाज़ से लिखा और अपने दोहों को एक नया आयाम भी दिया। जिसे आने वाले वक्त
में बड़े आदर के भाव से साहित्य की दुनियाँ में पढ़ा जायेगा।
आपके द्वारा लिखे इस दोहे संग्रम में दोहे एक से बढ़कर एक हैं जो
दोहे मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति के स्मृति पटल पर अपना सकारात्मक प्रभाव छोड़ने
में सफल रहे जिसका आपको बहुत-बहुत बधाई व साधुवाद। इस पुस्तक में कुछ
अति-विशिष्ठ दोहे तो आला दर्जें के हैं जो इस प्रकार हैं-
1. वृक्ष बचाते धरा को,देते सुखद समीर।
लहराते
जब पेड़ हैं, घन बरसाते नीर।।
(जल जीवन आधार)
2. लालन-पालन
में दिया, ममता और दुलार।
बोली-भाषा
को सिखा, करती माँ उपकार।।
(माता-दिवस)
3. पेड़
लगाकर कीजिए, अपने पर उपकार।
करो
हमेशा यत्न से, घरती का सिंगार।।
(धरा दिवस)
4. समय
न करता है दया, जब अपनी पर आय।
बली
और विद्वान को, देता धूल चटाय।।
(समय)
5. छ्न्दशास्त्र
का है नहीं, जिनको कुछ भी ज्ञान।
वो
कविता के क्षेत्र में, पा जाते सम्मान।।
(तुलसी और कबीर)
6. वेदों
ने हमको दिया, आदिकाल में ज्ञान।
इनके
जैसा है नहीं, जग में
छ्न्दविधान।।
(छ्न्दविधान)
7. अनुष्ठान
वो है सफल, जिसका हो आधार।
लोकतंत्र
के सामने, झुक जाती सरकार।।
(लोकतंत्र)
8. विषय-वस्तु
में सार हो, लेकिन हो लालित्य।
दुनियाँ
को जो दे दिशा, वो ही है साहित्य।।
(साहित्य)
9. सुथरे
तन में ही रहे, निर्मल मन का वास।
मोह
और छ्लछ्ह्म भी, नहीं फटकता पास।।
(खोलो मन का द्वार)
10. लुप्त
हुआ है काव्य का, नभ में सूरज आज।
बिना
छ्न्द रचना रचें, ज्यादतर कविराज।।
(मन की टीस)
11. मक्कारों
ने हर लिया, जनता का आराम।
बगुलों
ने टोपी लगा, जीना किया हराम।।
(टोपीदार दोहे)
12. पेड़
नीम का झेलता, पीड़ा को चुपचाप।
देता
शीतल छाँव को, हरता सबके ताप।।
(नीम का पेड़)
13. भरा
पिटारा ज्ञान का, देखो इसको खोल।
इस
गठरी में हैं भरे, शब्द बहुत अनमोल।।
(अन्तर्जाल)
14. भाषा,धर्म,प्रदेश से, ऊपर होता देश।
भेदभाव,असमानता, से बढता है क्लेश।।
(मातृभूमि)
15. त्योहारों
में बाँटिए, खुशी और आनन्द।
सम्बन्धों
में कीजिए, बैर-भाव को बन्द।।
(खिचड़ी)
16. वर्तमान
जो आज है, कल हो जाए अतीत।
कालचक्र
के चक्र में, जीवन हुआ व्यतीत।।
(रचता पात्र कुम्हार)
17. बैंगन
का करना नहीं, कोई भी विश्वास।
माल-ताल
जिस थाल में, जाते उसके पास।।
(चापलूस बैंगन)
18. गाँधी
जी के देश में, रावण करते राज।
काराग्रह
मेम बन्द हैं, राम-लक्ष्मण आज।।
(वोटनीति)
19. मोटी
रकम डकार कर, करते बहस वकील।
गद्दारों
के पक्ष में, देते तर्क दलील।।
(अन्धा कानून)
20. नौका
लहरों में फँसी, बेबस खेवनहार।
ऐसा
नाविक चाहिए, जो ले जाये पार।।
(विविध दोहावली)
21. अंगारा
सेमल हुआ, वन में खिला पलाश।
मन
के उपवन में उठी, भीनी मन्द-सुवास।।
(पलाश के फूल)
अंत में यही कहना चाहुँगा कि आज के साहित्य के क्षेत्र में डा.
रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी बहुत ही अच्छा लिख रहे हैं। मैं उनके सफल भविष्य की
कमना करता हूँ और आशा करता हूँ वो यूँहीं निरन्तर लिखते रहें। यह दोहा- संग्रह
पठनीय और संग्रहणीय भी है। पुनः आपको बधाई।
मनोज'कामदेव'
कवि/लेखक/समीक्षक
09818750159
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बधाई ।
जवाब देंहटाएंbadhai shubhkamnayen
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