मेरी एक पुरानी रचना! करते-करते भजन, स्वार्थ छलने लगे। करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। झूमती घाटियों में, हवा बे-रहम, घूमती वादियों में, हया बे-शरम, शीत में है तपन, हिम पिघलने लगे। करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। उम्र भर जख्म पर जख्म खाते रहे, फूल गुलशन में हरदम खिलाते रहे, गुल ने ओढ़ी चुभन, घाव पलने लगे। करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। हो रहा हर जगह, धन से धन का मिलन, रो रहा हर जगह, भाई-चारा अमन, नाम है आचमन, जाम ढलने लगे। करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। |
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बुधवार, 1 अगस्त 2012
"जाम ढलने लगे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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bahut sundar srijan, saadar.
जवाब देंहटाएंप्रिय महोदय
"श्रम साधना "स्मारिका के सफल प्रकाशन के बाद
हम ला रहे हैं .....
स्वाधीनता के पैंसठ वर्ष और भारतीय संसद के छः दशकों की गति -प्रगति , उत्कर्ष -पराभव, गुण -दोष , लाभ -हानि और सुधार के उपायों पर आधारित सम्पूर्ण विवेचन, विश्लेषण अर्थात ...
" दस्तावेज "
जिसमें स्वतन्त्रता संग्राम के वीर शहीदों की स्मृति एवं संघर्ष गाथाओं , विजय के सोल्लास और विभाजन की पीड़ा के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र की यात्रा कथा , उपलब्धियों , विसंगतियों ,राजनैतिक दुरागृह , विरोधाभाष , दागियों -बागियों का राजनीति में बढ़ता वर्चस्व , अवसरवादी दांव - पेच तथा गठजोड़ के दुष्परिणामों , व्यवस्थागत दोषों , लोकतंत्र के सजग प्रहरियों के सदप्रयासों , ज्वलंत मुद्दों तथा समस्याओं के निराकरण एवं सुधारात्मक उपायों सहित वह समस्त विषय सामग्री समाहित करने का प्रयास किया जाएगा , जिसकी कि इस प्रकार के दस्तावेज में अपेक्षा की जा सकती है /
इस दस्तावेज में देश भर के चर्तित राजनेताओं ,ख्यातिनामा लेखकों, विद्वानों के लेख आमंत्रित किये गए है / स्मारिका का आकार ए -फोर (11गुणे 9 इंच ) होगा तथा प्रष्टों की संख्या 600 के आस-पास / इस अप्रतिम, अभिनव अभियान के साझीदार आप भी हो सकते हैं / विषयानुकूल लेख, रचनाएँ भेजें तथा साथ में प्रकाशन अनुमति , अपना पूरा पता एवं चित्र भी / विषय सामग्री केवल हिन्दी , उर्दू अंगरेजी भाषा में ही स्वीकार की जायेगी / लेख हमें हर हालत में 10 सितम्बर 2012 तक प्राप्त हो जाने चाहिए ताकि उन्हें यथोचित स्थान दिया जा सके /
हमारा पता -
जर्नलिस्ट्स , मीडिया एंड राइटर्स वेलफेयर एसोसिएशन
19/ 256 इंदिरा नगर , लखनऊ -226016
ई-मेल : journalistsindia@gmail.com
मोबाइल 09455038215
behad saarthak lekhna
जवाब देंहटाएंवाह: बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएं"उम्र भर जख्म पर जख्म खाते रहे,
जवाब देंहटाएंफूल गुलशन में हरदम खिलाते रहे,
गुल ने ओढ़ी चुभन, घाव पलने लगे।
करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।।"
सुन्दर...
कुँवर जी,
वाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहो रहा हर जगह, धन से धन का मिलन,
जवाब देंहटाएंरो रहा हर जगह, भाई-चारा अमन,
नाम है आचमन, जाम ढलने लगे।
करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।।
....बहुत खूब! बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
बहुत ही सुन्दर और प्रभावशाली प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंअद्भुत!!
जवाब देंहटाएंबहुत - बहुत सुन्दर रचना:-)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रागात्मक रचना है गेयता लिए संगीत लिए .
जवाब देंहटाएंसुन्दर और प्रभावशाली प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंरक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
सशक्त रचना कुछ सिखने व सिखाने लायक
जवाब देंहटाएंयूनिक तकनीकी ब्लाग
वाह क्या जाम है !
जवाब देंहटाएंpuraani hee sahee lekin mad-mast kar dene wali rachna hai!
जवाब देंहटाएं