नहीं दिल्लगी कोई दिल को लगाना मुहब्बत को करके, कठिन है निभाना सूरत छिपी हैं मुखौटों के पीछे मासूम चेहरों से धोखा न खाना बाहर से नाजुक हैं भीतर से पत्थर अगर हो सके तो ज़िगर को बचाना उमड़ते हैं ज़ज़्बात बनते हैं मिसरे आसां नहीं उनको गाकर सुनाना काँटों भरी है डगर आशिकी की समझ-बूझकर ही कदम को बढ़ाना मुहब्बत का कोई नहीं “रूप” होता उल्फत के जंगल में बिखरा ख़जाना |
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गुरुवार, 9 अगस्त 2012
"ग़ज़ल-उल्फत का खेतों में बिखरा ख़जाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत ही खूब ।
जवाब देंहटाएंबाहर से नाजुक हैं भीतर से पत्थर
जवाब देंहटाएंअगर हो सके तो ज़िगर को बचाना....बहुत ही खूब ।
शानदार गजल
जवाब देंहटाएं:-)
फैला है चारों ओर यही खजाना..हर एक के लिये..
जवाब देंहटाएंकाँटों भरी है डगर आशिकी की
जवाब देंहटाएंसमझ-बूझकर ही कदम को बढ़ाना......यहाँ जो भी आये उठा करके जोखिम ,है ताबूत उनका पड़ा है गढ़ाना ..बढ़िया प्रस्तुति है भाई साहब .जन्म अष्टमी मुबारक .कृपया यहाँ भी देखें -
बृहस्पतिवार, 9 अगस्त 2012
औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली
औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली
प्राभावशाली लेखन
जवाब देंहटाएं--- शायद आपको पसंद आये ---
1. Twitter Follower Button के साथ Followers की संख्या दिखाना
2. दिल है हीरे की कनी, जिस्म गुलाबों वाला
3. तख़लीक़-ए-नज़र
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंक्या बात है
कम ही ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं
बहुत खूब,,,बेहतरीन गजल,,,,
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
दमदार है
जवाब देंहटाएंअसरदार है
'रूप' के पास
खजानों की
भरमार है!!
जिगर तो कठोर व नरम दोनो प्रकार का होता है पर समय विशेष की भावनाये उसे उसके अनुसार ही बना देती है मोहब्बत तो हमेश सभी को पिघला देती हे
जवाब देंहटाएंआपको भी जन्माष्टमी की शुभकामनाये
यूनिक तकनीकी ब्लाग