कई दिनों से नभ में, बादल ने डाला है डेरा। सूरज मना रहा है छुट्टी, दिन में हुआ अन्धेरा।। हरियाली बिखरी धरती पर, दादुर गाते गान मधुर। शाम ढली तो सन्नाटे को, चीर रहा झींगुर का सुर। आसमान का पानी पीकर, धान खेत में लहराते। काफल-सेब, खुमानी-आड़ू, छटा अनोखी दिखलाते। बाहर पानी-भीतर पानी, पानी की है ग़जब रवानी। इठलाती-बलखाती आयी, नद-नालों में नई जवानी। बरस रहा चौमास झमाझम, बारिश में मत जाओ। आलू, प्याज और बैंगन के, गरम पकौड़े खाओ। पढ़कर के अख़बार, आओ गड्ढों के ठहरे पानी में, अपनी नौका तैरायें। |
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गुरुवार, 23 अगस्त 2012
"नद-नालों में नई जवानी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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bahut hee badhiyaa guru jee
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सरल रचना !
जवाब देंहटाएंआभार !
बहुत खूब!......गाँव की याद आ गयी!.........
जवाब देंहटाएंपकौड़े वाला चित्र मोह गया।
जवाब देंहटाएंऐसा देश है मेरा...शानदार रचना |
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार रहेगा-
"मन के कोने से..."
प्रकृति नटी का बढ़िया विवरण देती पोस्ट ...बेहतरीन शब्द चित्र मौसम की रवायत का .
जवाब देंहटाएंकृपया यहाँ भी पधारें -
"आतंकवादी धर्मनिरपेक्षता "-डॉ .वागीश मेहता ,डी .लिट .,/ http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
ram ram bhai/
बृहस्पतिवार, 23 अगस्त 2012
Neck Pain And The Chiropractic Lifestyle
Neck Pain And The Chiropractic Lifestyle
पंक्तियाँ मन -भावन हैं हीं ,पर दृष्य और आकर्षक -विशेष रूप से पकौड़ोंवाला,बस खट्टी चटनी की कसर रह गई !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दृश्यों के साथ
जवाब देंहटाएंकविता जैसे बोल रही है !
वर्षा ऋतु के दृश्य दिखाती सुन्दर कविता !
जवाब देंहटाएंआई बारीस घनघोर , फिर याद आई वो कागज की कस्ती , याद दिलाने के लिये धन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंयूनिक तकनीकी ब्लाकग