वतन के गीत गाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती। नये पौधे लगाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती।। सुमन खिलते हुए हमने, मसल कर रख दिये सारे, मिटे रिश्ते बनाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती। मुहब्बत में अगर दम है, निभाओ आख़िरी दम तक, लगन सच्ची लगाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती। बनाओ महल तुम बेशक, उजाड़ो झोंपड़ी को मत, रोते को हँसाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती। सुबह उठकर कबाड़ा बीनते हैं, दुधमुहे बच्चे, उन्हें पढ़ने-लिखाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती। बिगाड़ा “रूप” हमने ही, वतन की लोकशाही का, मेहनत से कमाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती। |
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शनिवार, 25 अगस्त 2012
"हमें फुर्सत नहीं मिलती" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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प्रेरणास्पद रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना। सच का एक आइना प्रस्तुत किया है आपने।
जवाब देंहटाएंप्रतीक संचेती
बनाओ महल तुम बेशक, उजाड़ो झोंपड़ी को मत,
जवाब देंहटाएंरोते को हँसाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती।
सुबह उठकर कबाड़ा बीनते हैं, दुधमुहे बच्चे,
उन्हें पढ़ने-लिखाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती।
्सच्चाई को प्रस्तुत करती उम्दा रचना
रैपर टाफ़ी का दिखा, दीखे छिलके सेब |
जवाब देंहटाएंभारत सुन्दर सा लिखा, कचड़े में न ऐब |
कचड़े में न ऐब, कतरने टुकड़े बीने |
पड़ा कबाड़ा ढेर, कबाड़ी बचपन छीने |
कड़े नियम कानून, लिखाते संसद पेपर |
खाँय करिंदे माल, बटोरें बच्चे रैपर ||
सही सन्देश देती अच्छी कविता , अपने से ही किसी को फुर्सत नहीं जो गैर की सोचे !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंहम को अपनी ही सोच बदलने की फुर्सत नहीं मिलती ...वाह करना ...दाद देना कितना आसन हैं ना ...उतना ही मुश्किल हैं खुद को बदलना ..
काश फुर्सत मिले, सुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएंआपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
वतन के नगमे गाने की..,
जवाब देंहटाएंशाख्समर उगाने की..,
समन-ए-गुल शुआ हमने, मसल्सल मसल दिया हमने..,
कोई और गुल खिलाने की..,
मुहब्बत में है गर अदद दम वफादार हो आखिर दम..,
मगर ज़िगर लगाने की हमें फुर्सत नहीं मिलती.....
Saman = (fa.)chameli
शास्त्री सर! गंभीर सच है ये और दुखदायी भी !
जवाब देंहटाएंबहुत गंभीर मसला है...दर्द भी दिल में होता है..
उंगली सब उठाते हैं, क़दम न कोई उठता है....
बचाएँ मासूम कलियाँ जो ...समय से पहले मुरझाती..
न जाने क्यों ज़माने में....हमें फ़ुर्सत नहीं मिलती... :(
~सादर!!!
बहुत सारगर्भित रचना. हमें न अपनों के लिए फुर्सत है न देश समाज के लिए...
जवाब देंहटाएंसुमन खिलते हुए हमने, मसल कर रख दिये सारे,
मिटे रिश्ते बनाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती।
विचारपूर्ण रचना, बधाई.
अत्यंत सार्थक एवं संदेशात्मक रचना, दुआ करता हूँ की यह अपील देश के कोने तक पहुचे
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसुबह उठकर कबाड़ा बीनते हैं, दुधमुहे बच्चे,
उन्हें पढ़ने-लिखाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती।
इस पर भी बहस करवा देंगे ये संसद में .....बढ़िया पोस्ट .कृपया यहाँ भी पधारें -
शनिवार, 25 अगस्त 2012
काइरोप्रेक्टिक में भी है समाधान साइटिका का ,दर्दे -ए -टांग का
काhttp://veerubhai1947.blogspot.com/
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंअपनी अपनी फुर्सतों
में मसरूफ इतना
कि अब आदमी को
अपने लिये भी
फुरसत नहीं मिलती
आप ने लिखे डाली
इन की किस्मत
उसे इसको देखने की भी
फुरसत नहीं मिलती !
badhiya
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरणास्पद सारगर्भित रचना तस्वीर को परिभाषित करती हुई
जवाब देंहटाएं