जिन्दगी चल रही चिमनियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। लाडलों के लिए पूरे घर-बार हैं, लाडली के लिए संकुचित द्वार हैं, भाग्य इनको मिला कंघियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। रंक माता पिता की हैं मुश्किल बढ़ी, ताड़ सी पुत्रियों की हैं चिन्ता बड़ी, भूख नर की बढ़ी भेड़ियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। शादियों में बहुत माँग जर की बढ़ी, नोट की गड्डियों पर नजर हैं गड़ी, रोग है बढ़ रहा कोढ़ियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। ये ही पीड़ा हृदय में रहेगी सदा, लेखनी दर्द इनका लिखेगी सदा, इनकी ससुराल है बेड़ियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। |
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बुधवार, 29 अगस्त 2012
"ससुराल है बेड़ियों की तरह" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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उम्दा सोच के साथ खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसजीव चित्रण शास्त्री सर!
जवाब देंहटाएंमगर, हम अगर कोशिश करें तो..~
आएँगे हम-आप जैसे ही आगे...छुड़ाने बेटियों को...
जो जी रही हैं.... क़ैदियों की तरह...,
बनाएँगे उनको तलवार और ढाल भी.. उन्हीं की...
देकर ऊँची शिक्षा, पहुँचाएँगे उन्हें ऊँचे मुक़ाम पर...!
करेंगे ससुराल क्या..दुनिया में भी ये साबित....
" बेटी हमारी 'नहीं' मजबूर...बेटी है हमारे 'माथे का गुरूर' ....!" :-)
~ सादर !!!
ससुराल भी अपना घर सा लगे..
जवाब देंहटाएंरंक माता पिता की हैं मुश्किल बढ़ी,
जवाब देंहटाएंताड़ सी पुत्रियों की हैं चिन्ता बड़ी,
भूख नर की बढ़ी भेड़ियों की तरह।
बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।
ye vastav me chinta kee bat hai.nice presentation.
आपकी पोस्ट 30/8/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 987 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
भूख नर की बढ़ी भेड़ -इयों की तरह ,.समस्या मूलक रचना ...मार्मिक ,कारुणिक ,शर्मसार करती सारी कायनात को
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति है कृपया यहाँ भी पधारे -
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
अस्थि-सुषिर -ता (अस्थि -क्षय ,अस्थि भंगुरता )यानी अस्थियों की दुर्बलता और भंगुरता का एक रोग है ओस्टियोपोसोसिस
http://veerubhai1947.blogspot.com/
कलम से सच निकल कर आया है
जवाब देंहटाएंबहुत सी जगह पर ऎसा पाया है
बेटियाँ खुद अपनी किस्मत बनायेंगी
मुश्किल की डगर से निकल कर आयेंगी
हौसला उनका आसमान में
हम आप की सोच ले जायेंगी !
उफ़ ………बेटियों के दर्द को बहुत संजीदगी से संजोया है।
जवाब देंहटाएंसही में,"बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह"
जवाब देंहटाएंउनकी हालात पर आपकी कलम की पीड़ा....अतिसुंदर |
यथार्थ का आईना दिखती सार्थक पोस्ट...आज की ज़िंदगी का एक कड़वा सच आभार...
जवाब देंहटाएं