वतन के गीत गाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती। नये पौधे लगाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती।। सुमन खिलते हुए हमने, मसल कर रख दिये सारे, मिटे रिश्ते बनाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती। मुहब्बत में अगर दम है, निभाओ आख़िरी दम तक, लगन सच्ची लगाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती। बनाओ महल तुम बेशक, उजाड़ो झोंपड़ी को मत, रोते को हँसाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती। सुबह उठकर कबाड़ा बीनते हैं, दुधमुहे बच्चे, उन्हें पढ़ने-लिखाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती। बिगाड़ा “रूप” हमने ही, वतन की लोकशाही का, मेहनत से कमाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 25 अगस्त 2012
"हमें फुर्सत नहीं मिलती" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
प्रेरणास्पद रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना। सच का एक आइना प्रस्तुत किया है आपने।
जवाब देंहटाएंप्रतीक संचेती
बनाओ महल तुम बेशक, उजाड़ो झोंपड़ी को मत,
जवाब देंहटाएंरोते को हँसाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती।
सुबह उठकर कबाड़ा बीनते हैं, दुधमुहे बच्चे,
उन्हें पढ़ने-लिखाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती।
्सच्चाई को प्रस्तुत करती उम्दा रचना
रैपर टाफ़ी का दिखा, दीखे छिलके सेब |
जवाब देंहटाएंभारत सुन्दर सा लिखा, कचड़े में न ऐब |
कचड़े में न ऐब, कतरने टुकड़े बीने |
पड़ा कबाड़ा ढेर, कबाड़ी बचपन छीने |
कड़े नियम कानून, लिखाते संसद पेपर |
खाँय करिंदे माल, बटोरें बच्चे रैपर ||
सही सन्देश देती अच्छी कविता , अपने से ही किसी को फुर्सत नहीं जो गैर की सोचे !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंहम को अपनी ही सोच बदलने की फुर्सत नहीं मिलती ...वाह करना ...दाद देना कितना आसन हैं ना ...उतना ही मुश्किल हैं खुद को बदलना ..
काश फुर्सत मिले, सुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएंआपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
वतन के नगमे गाने की..,
जवाब देंहटाएंशाख्समर उगाने की..,
समन-ए-गुल शुआ हमने, मसल्सल मसल दिया हमने..,
कोई और गुल खिलाने की..,
मुहब्बत में है गर अदद दम वफादार हो आखिर दम..,
मगर ज़िगर लगाने की हमें फुर्सत नहीं मिलती.....
Saman = (fa.)chameli
शास्त्री सर! गंभीर सच है ये और दुखदायी भी !
जवाब देंहटाएंबहुत गंभीर मसला है...दर्द भी दिल में होता है..
उंगली सब उठाते हैं, क़दम न कोई उठता है....
बचाएँ मासूम कलियाँ जो ...समय से पहले मुरझाती..
न जाने क्यों ज़माने में....हमें फ़ुर्सत नहीं मिलती... :(
~सादर!!!
बहुत सारगर्भित रचना. हमें न अपनों के लिए फुर्सत है न देश समाज के लिए...
जवाब देंहटाएंसुमन खिलते हुए हमने, मसल कर रख दिये सारे,
मिटे रिश्ते बनाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती।
विचारपूर्ण रचना, बधाई.
अत्यंत सार्थक एवं संदेशात्मक रचना, दुआ करता हूँ की यह अपील देश के कोने तक पहुचे
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसुबह उठकर कबाड़ा बीनते हैं, दुधमुहे बच्चे,
उन्हें पढ़ने-लिखाने की, हमें फुर्सत नहीं मिलती।
इस पर भी बहस करवा देंगे ये संसद में .....बढ़िया पोस्ट .कृपया यहाँ भी पधारें -
शनिवार, 25 अगस्त 2012
काइरोप्रेक्टिक में भी है समाधान साइटिका का ,दर्दे -ए -टांग का
काhttp://veerubhai1947.blogspot.com/
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंअपनी अपनी फुर्सतों
में मसरूफ इतना
कि अब आदमी को
अपने लिये भी
फुरसत नहीं मिलती
आप ने लिखे डाली
इन की किस्मत
उसे इसको देखने की भी
फुरसत नहीं मिलती !
badhiya
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरणास्पद सारगर्भित रचना तस्वीर को परिभाषित करती हुई
जवाब देंहटाएं