मधुर केला भी कसैला हो गया है।। -- लाज कैसे अब बचायेगी की अहिंसा, पल रही चारों तरफ है आज हिंसा सत्य कहने में झमेला हो गया है। मधुर केला भी कसैला हो गया है।। -- अब किताबों में सजे हैं ढाई आखर, सिर्फ कहने को बचे हैं नाम के घर, आदमी कितना अकेला हो गया है। मधुर केला भी कसैला हो गया है।। -- इंसान के अब दाँत पैने हो गये हैं. मनुज के सिद्धान्त सारे खो गये हैं, बस्तियों का ढंग बनैला हो गया है। मधुर केला भी कसैला हो गया है।। -- प्रीत की अब आग ठण्डी हो गयी है, पीढ़ियों की सोच गन्दी हो गयी है, सभ्यता का रूप मैला हो गया है। मधुर केला भी कसैला हो गया है।। -- |
| "उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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बुधवार, 17 दिसंबर 2025
गीत "सभ्यता का रूप मैला हो गया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 20 नवंबर 2025
"ग़ज़ल-फासले इतने तो मत पैदा करो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
हौसला रख कर कदम आगे धरो। फासले इतने तो मत पैदा करो।। -- चाँद तारों से भरी इस रात में, मत अमावस से भरी बातें करो। -- जिन्दगी है बस हकीकत पर टिकी, मत इसे जज्बात में रौंदा करो। -- उलझनों का नाम ही है जिन्दगी, हारकर, थककर न यूँ बैठा करो। -- छोड़ दो शिकवों-गिलों की बात अब, मुल्क पर जानो-जिगर शैदा करो। -- ज़िन्दगी है चार दिन की चाँदनी, “रूप” पर इतना न तुम ऐंठा करो। -- |
मंगलवार, 11 नवंबर 2025
गीतिका "बर्फ सारा पिघल जायेगा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सुबह होगी तो सूरज निकल जायेगा वक्त के साथ सब कुछ बदल जायेगा जिन्दगी में कभी हार मत मानना धूप में बर्फ सारा पिघल जायेगा दिल की कोटर में भी तो जलाओ दिया देखकर रौशनी मन मचल जायेगा पोथियाँ तो जगत की पढ़ो प्यार से दम्भ का आशियाँ खुद दहल जायेगा जूझना मत कभी बे-वजहा आप से नेह का दीप जीवन में जल जायेगा अपने अशआर तो अंजुमन में कहो बात कहने से दिल भी बहल जायेगा इस जहाँ में अमर कोई होता नहीं एक दिन नगमगी 'रूप' ढल जायेगा |
बुधवार, 5 नवंबर 2025
दोहे "गंगास्नान मेला" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दोहे "गंगास्नान मेला"


सोमवार, 20 अक्टूबर 2025
गीत "नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
!! शुभ-दीपावली !! -- रोशनी का पर्व है, दीपक जलायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- बातियाँ नन्हें दियों की कह रहीं, इसलिए हम वेदना को सह रहीं, तम मिटाकर, हम उजाले को दिखायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- डूबते को एक तृण का है सहारा, जीवनों को अन्न के कण ने उबारा, धरा में धन-धान्य को जम कर उगायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- जेब में ज़र है नही तो क्या दिवाली, मालखाना माल बिन होता है खाली, किस तरह दावा उदर की वो बुझायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- आज सब मिल-बाँटकर खाना मिठाई, दीप घर-घर में जलाना आज भाई, रोज सब घर रोशनी में झिलमिलायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- |
रविवार, 19 अक्टूबर 2025
"धनतेरस, नर्क चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भइयादूज की शुभकामनाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
![]() ![]() ![]() ![]() | ![]() आलोकित हो वतन हमारा। हो सारे जग में उजियारा।। कंचन जैसा तन चमका हो, उल्लासों से मन दमका हो, खुशियों से महके चौबारा। हो सारे जग में उजियारा।। आओ अल्पना आज सजाएँ, माता से धन का वर पाएँ, आओ दूर करें अँधियारा। हो सारे जग में उजियारा।। घर-घर बँधी हुई हो गैया, तब आयेगी सोन चिरैया, सुख का सरसेगा फव्वारा। होगा तब जग में उजियारा।। आलोकित हो वतन हमारा। हो सारे जग में उजियारा।। ♥♥♥ पर्वों की शृंखला में आप सभी को धनतेरस, नर्क चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भइयादूज की हार्दिक शुभकामनाएँ! ♥ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”♥ |
दोहे "धन्वन्तरि जयन्ती-नरक चतुर्दशी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
देती नरकचतुर्दशी, सबको यह सन्देश। साफ-सफाई को करो, सुधरेगा परिवेश।। -- दीपक यम के नाम का, जला दीजिए आज। पूरी दुनिया से अलग, हो अपने अंदाज।। -- जन्मे थे धनवन्तरी, करने को कल्याण। रहें निरोगी सब मनुज, जब तक तन में प्राण।। -- भेषज लाये धरा से, खोज-खोज भगवान। धन्वन्तरि संसार को, देते जीवनदान।। -- रोग किसी के भी नहीं, आये कभी समीप। सबके जीवन में जलें, हँसी-खुशी के दीप।। -- त्यौहारों की शृंखला, पावन है संयोग। इसीलिए दीपावली, मना रहे सब लोग।। -- कुटिया-महलों में जलें, जगमग-जगमग दीप। सरिताओं के रेत में, मोती उगले सीप।। |
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