-- हमको प्राणों ,से प्यारा, हमारा वतन। सारे संसार में, सब से न्यारा वतन।। गंगा-जमुना निरन्तर, यहाँ बह रही, वादियों की हवाएँ, कथा कह रही, राम और श्याम का है, दुलारा वतन। सारे संसार में, सब से न्यारा वतन।1। बुद्ध-गांधी अहिंसा के आधार थे, सत्य नौका की मजबूत पतवार थे, जान वीरों ने देकर, सँवारा वतन। सारे संसार में, सब से न्यारा वतन।2। शैल-शिखरों पे, संजीवनी की छटा, सर्दी-गर्मी कभी है, कभी घन-घटा, कितनी सुन्दर धरा, कितना प्यारा गगन। सारे संसार में, सब से न्यारा वतन।3। पेड़-पौधों का, निखरा हुआ रूप है, घास है मखमली, गुनगुनी धूप है, साधु-सन्तों ने तपकर, निखारा वतन। सारे संसार में, सब से न्यारा वतन।4। सबको पूजा-इबादत का, अधिकार है, सर्व धर्मों का सम्भाव-सत्कार है, दीन-दुखियों को देता, सहारा वतन। सारे संसार में, सब से न्यारा वतन।5। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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रविवार, 26 जनवरी 2025
देशभक्ति गीत "संसार में सब से न्यारा वतन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मंगलवार, 14 जनवरी 2025
चौदह दोहे "उत्तरायणी पर्व" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- आया है उल्लास का, उत्तरायणी पर्व। झूम रहे आनन्द में, सुर-मानव-गन्धर्व।१। -- जल में डुबकी लगाकर, पावन करो शरीर। नदियों में बहता यहाँ, पावन निर्मल नीर।२। -- जीवन में उल्लास के, बहुत निराले ढंग। बलखाती आकाश में, उड़ती हुई पतंग।३। -- तिल के मोदक खाइए, देंगे शक्ति अपार। मौसम का मिष्ठान ये, हरता कष्ट-विकार।४। -- उत्तरायणी पर्व के, भिन्न-भिन्न हैं नाम। लेकर आता हर्ष ये, उत्सव ललित-ललाम।५। -- सूर्य रश्मियाँ आ गयीं, खिली गुनगुनी धूप। शस्य-श्यामला धरा का, निखरेगा अब रूप।६। -- भुवनभास्कर भी नहीं, लेगा अब अवकाश। कुहरा सारा छँट गया, चमका भानुप्रकाश।७। -- अब अच्छे दिन आ गये, हुआ शीत का अन्त। धीरे-धीरे चमन में, सजने लगा बसन्त।८। -- रजनी आलोकित हुई, खिला चाँद रमणीक। देखो अब आने लगे, युवा-युगल नज़दीक।९। -- पतझड़ का मौसम गया, जीवित हुआ बसन्त। नवपल्लव पाने लगा, अब तो बूढ़ा सन्त।१०। -- पौधों पर छाने लगा, कलियों का विन्यास। दस्तक देता द्वार पर, खड़ा हुआ मधुमास।११। -- रवि की फसलों के लिए, मौसम ये अनुकूल। सरसों पर आने लगे, पीले-पीले फूल।१२। -- भँवरा गुन-गुन कर रहा, तितली करती नृत्य। खुश होकर करते सभी, अपने-अपने कृत्य।१३। -- आज सार्थक हो गयी, पूजा और नमाज। जीवित अब होने चला, जीवन में ऋतुराज।१४। -- |
सोमवार, 13 जनवरी 2025
दोहे "लोहड़ी पर्व-सुधरेगा परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- नये साल का आगमन, लाया है सौगात। पर्व लोहड़ी में करो, सबसे मीठी बात।। -- कुदरत ने हमको दिया, षड ऋतुओं का दान। खेतों ने पहना हुआ, पीताम्बर परिधान। -- शैल शिखर पर हो रहा, जम करके हिमपात। तिल-गुड़ की की दे दीजिए, अपनों को सौगात।। -- सरदी में अच्छा लगे, खिचड़ी का आहार। मूँगफली खाकर करो, तन के दूर विकार।। -- पर्व लोहड़ी देश को, देती है सन्देश। थोड़े दिन के बाद में, सुधरेगा परिवेश।। -- झड़बेरी पर छा गये, खट्टे-मीठे बेर। धूप सेंकने कोकिला, बैठी है मुंडेर।। -- सरसों फूली खेत में, लहर-लहर लहराय। षटपद-मधु की मक्खियाँ, गुन-गुन गीत सुनाय।। -- मिलजुल कर सब प्रेम से, भँगड़ा करते लोग। लोहड़ी में उत्साह से, लगा रहे हैं भोग।। -- |
रविवार, 12 जनवरी 2025
दोहे "घोषित हिन्दू देश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- कहने भर से तो नहीं, होगा हिन्दू देश। आदिकाल से
देश में, है हिन्दू परिवेश।1। -- हुआ धर्म
के नाम पर, घोषित पाकिस्तान। वंचित
हिन्दू देश से, क्यों है हिन्दुस्तान।2। -- बँटवारे
में जब लिया, मजहब का आधार। फिर कैसे
शासक हुए, इतने क्यों लाचार।3। -- भावनाओं पर
कर लिया, कुर्सी ने अधिकार। मत-मजहब के
फेर में, हुई करारी हार।4। -- सच्चाई दम
तोड़ती, झूठ हो रहा पुष्ट। परम्परा को
नष्ट कर, खुश होते हैं दुष्ट।5। -- भगवा की
सरकार से, जनमानस को आस। बुझा दीजिए
नीति से, अब हिन्दू की प्यास।6। -- गौ-गंगा
मइया करे, कब से करुण पुकार। मिटा दीजिए
देश से, अब तो अत्याचार।7। -- |
मंगलवार, 7 जनवरी 2025
"अंकुर हिन्दी पाठमाला में बिना मेरी अनुमति के मेरी बाल कविता"
आज “चैतन्य का कोना” ब्लॉग पर अचानक ही डॉ. मोनिका शर्मा की इस पोस्ट पर भी नजर पड़ी। ब्लॉगिंग से जुड़े सभी लोग रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी की बाल कवितायेँ पढ़ ही चुके हैं । मुझे भी उनकी बाल कवितायेँ बहुत पसंद हैं । आज चैतन्य की हिन्दी की टेक्सटबुक (अंकुर हिन्दी पाठमाला) खोली तो इन दिनों स्कूल में पढ़ाई जा रही बाल कविता “कंप्यूटर” रूपचंद्र शास्त्री जी की ही थी । बहुत अच्छा लगा.... सुखद आश्चर्य हुआ कि मैं उन्हें पहले से जानती हूँ जब से ब्लॉगिंग की दुनिया से जुड़ी हूँ, उनकी बालसुलभ रचनाएँ पढ़ती आ रही हूँ "कम्प्यूटर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) मन को करता है मतवाला। कम्प्यूटर है बहुत निराला।। यह इसका अनिवार्य भाग है। कम्प्यूटर का यह दिमाग है।। चलते इससे हैं प्रोग्राम। सी.पी.यू.है इसका नाम।। गतिविधियाँ सब दिखलाता है। यह मॉनीटर कहलाता है।। सुन्दर रंग हैं न्यारे-न्यारे। आँखों को लगते हैं प्यारे।। इसमें कुंजी बहुत समाई । टाइप इनसे करना भाई।। सोच-सोच कर बटन दबाना। हिन्दी-इंग्लिश लिखते जाना।। यह चूहा है सिर्फ नाम का। माउस होता बहुत काम का।। यह कमाण्ड का ऑडीटर है। इसके वश में कम्प्यूटर है।। कविता लेख लिखो जी भर के। तुरन्त छाप लो इस प्रिण्टर से।। नवयुग का कहलाता ट्यूटर। बहुत काम का है कम्प्यूटर।। |
सोमवार, 6 जनवरी 2025
गीत "भगवान कल्कि अब आयेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- लो
वर्ष पुराना बीत गया। अब
रचो सुखनवर गीत नया।। -- फिरकों
में क्यों इन्सान बँटा, क्यों
अकस्मात् अटपटा घटा। क्यों
आज विधर्मी मतवाला, झूठे
दावों के साथ डटा। क्यों
अपने घर की चौखट पर, मानवता
का घर रीत गया। अब
रचो सुखनवर गीत नया।। -- जो
कुटिया थी मंगलकारी, वीरानी क्यों उपवन-क्यारी। भाषण
में उग्रवाद पसरा, नस-नस
में उभरी मक्कारी। उन्मादी
कट्टरपन्थी क्यों, इस वसुन्धरा से मीत गया। अब
रचो सुखनवर गीत नया।। -- भगवान
कल्कि अब आयेंगे, फिर
से मानव सुख पायेंगे। उपवन
सुमनों से महकेगा, भँवरे
गुन-गुन गायेंगे। आशायें
दिलाशा देती हैं, अब
रुदनभरा संगीत गया। अब
रचो सुखनवर गीत नया।। -- नया
सूर्य अब चमकेगा, सारा
अँधियारा हर लेगा। जब
सुख के बादल बरसेंगे, तब
“रूप” देश का
दमकेगा। धावकमन
बाजी जीत गया। अब रचो सुखनवर गीत नया।। -- |
बुधवार, 1 जनवरी 2025
"आप सबको मुबारक नया वर्ष हो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- देशभक्ति के ज़ज़्बे का उत्कर्ष हो सारी दुनिया में पसरा हुआ हर्ष हो। धानी धरती हमेशा रहे उर्वरा, आप सबको मुबारक नया वर्ष हो।। -- देखो फिर से आ गया, नया-नवेला साल। आशाएँ मन में जगीं, सुधरेंगे अब हाल।। -- एक निमिष में हो गया, गया साल इतिहास। होगा नूतन साल में, जीवन में उल्लास।। -- हों सबसे नववर्ष में, अब अच्छे सम्बन्ध। जिससे हो जाये भला, करें वही अनुबन्ध।। -- अपना भारत देश तो, माँगे सबकी खैर। किसी देश से भी कभी, नहीं चाहता बैर।। चैन-अमन होते सदा, जीवन के पर्याय। आतंकी आयें नहीं, ऐसे करो उपाय।। -- |
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