त्यौहारों पर किसी का, रहे न खाली हाथ। पञ्च पर्व दीपावली, लाती अपने साथ।। -- नौ दिन ही नवरात्र के, होते पुत्री पर्व। देवी हैं सब बेटियाँ, जिन पर हमको गर्व।। -- विजय पर्व के बाद में, लोग हुए निःशंक। अँधियारे को चीरकर, नभ में हँसे मयंक।। -- साजन-सजनी के लिए, चौथ दिवस है खास। सजनी करवाचौथ पर, रखती है उपवास।। -- कुलदीपक के है लिए, पर्व अहोई खास। होती अपने तनय पर माताओं को आस।। -- खुश हो करके बाँटिए, लोगों को उपहार। मास कार्तिक में बहुत, आते हैं त्यौहार।। -- चाहे कोई वार हो, कोई हो तारीख। संस्कार देते हमें, कदम-कदम पर सीख।। -- |
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शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2024
दोहे "विजय पर्व के बाद में, लोग हुए निःशंक" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बुधवार, 16 अक्तूबर 2024
दोहे "शरद पूर्णिमा पर हँसा, खुलकर आज मयंक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शरद पूर्णिमा पर हँसा, खुलकर आज मयंक। |
मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024
दोहे "साले हैं उपहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- अपनी सजनी से अगर, पाना चाहो प्यार। जीवनभर करते रहो, सालों की मनुहार।। -- होते हैं ससुराल का, साले ही आधार। समय-समय पर बाँटिए, सालों को उपहार।। -- घर का हो गर चाहते, आप शान्त परिवेश। धन पर करने दीजिए, निज सालों को ऐश।। -- साधारण से हों अगर, जीजा के परिधान। मिलता है ससुराल में, बस उसको अपमान।। -- अगर देखना चाहते, दुनिया में मक्कार। मन में आये उभर कर, सालों का आकार।। -- जीवन अपना ढालिए, सालों के अनुसार। सालों से करना नहीं, नोंक-झोंक-तकरार।। -- सतयुग या कलिकाल हो, कहता जीवन शास्त्र। साले जीजा के लिए, रहे दया के पात्र।। -- रूप सुहाना हो भले, आदत में हैं कंस। बगुलों को तो भूल से, समझ न लेना हंस।। -- खान-पान में चाहिए, रोगी को अनुपान। बिन अनुभव बेकार है, दुनियाभर का ज्ञान।। -- |
सोमवार, 14 अक्तूबर 2024
दोहे "साली रस की खान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- सम्बन्धों का है यहाँ, अजब-गजब संसार। घरवाली से भी अधिक, साली से है प्यार।। -- अपनी बहनों से नहीं, भाई करते प्यार। किन्तु सालियों से करें, प्यारभरी मनुहार।। -- जीजा-साली का बहुत, होता नाता खास। जिनके साली हैं नहीं, वो हैं बहुत उदास।। -- साली से अनुराग है, सालों से ससुराल। साली जीजा का रखे, सबसे ज्यादा ख्याल।। -- साली जीजा के लिए, होती है अनुकूल। लगती उसकी गालियाँ, जीजा जी को फूल।। -- साली के बिन तो लगे, सूना सब संसार। सम्बन्धों का सालियाँ, होती हैं आधार।। -- छोटी हो चाहे बड़ी, साली रस की खान। इसीलिए तो सब करें, साली का गुणगान।। -- साली है ऐसा सुमन, जिसमें है मकरन्द। साली की तो गन्ध से, मिल जाता आनन्द।। -- कभी रहे इकरार तो, कभी रहे इनकार। जीजा साली में चले, मधुर-मधुर तकरार।। -- जब करती हैं सालियाँ, खुलकर हँसी मजाक। घरवाली यह देखकर, रह जाती आवाक।। ---- आधी घरवाली नहीं, कहना इसको मित्र। रखना हरदम चाहिए, अपना साफ चरित्र।। |
रविवार, 13 अक्तूबर 2024
दोहे "दशकन्धर था दुष्ट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- लोग समझते हैं यही, दशकन्धर था दुष्ट। लेकिन कलि के काल में, दुष्ट हो रहे पुष्ट।। -- रावण युग में था नहीं, इतना पापाचार। वर्तमान में है नहीं, लोगों में आचार।। -- सत्य आचरण को दिया, लोगों ने अब छोड़। केवल पुतले दहन की, लगी हुई है होड़।। -- पुतले सदियों से सभी, जला रहे हर साल। मन का रावण आज भी, लोग रहे हैं पाल।। -- अच्छाई के सामने, रही बुराई जीत। रीत-रीत ही रह गयी, अब तो केवल रीत।। -- एक दूसरे की यहाँ, कभी न खीँचो टाँग। चीन-पाक से युद्ध हो, यही समय की माँग।। -- महँगाई की राह में, बिछे हुए हैं शूल। भोली जनता के लिए, समय नहीं अनुकूल।। -- बैरी अपना पाक है, लंका अपना मीत। अब तो पाकिस्तान की, मिट्टी करो पलीत।। -- विजयादशमी का तभी, सपना हो साकार। नक्शे पर से जब मिटे, बैरी का आकार।। -- जो समाज को दे दिशा, वो ही है साहित्य। दोहों में मेरे नहीं, होता है लालित्य।। -- |
शनिवार, 12 अक्तूबर 2024
दोहे "विजयादशमी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अच्छाई के सामने, गयी बुराई हार।। -- विजयादशमी विजय का, पावन है त्यौहार। आज झूठ है जीतता, सत्य रहा है हार।। -- रावण के जब बढ़ गये, भू पर अत्याचार। लंका में जाकर उसे, दिया राम ने मार।। -- तब से पुतले दहन का, बढ़ता गया रिवाज। मन का रावण आज तक, जला न सका समाज।। -- आज भोग में लिप्त हैं, योगी और महन्त। भोली जनता को यहाँ, भरमाते हैं सन्त।। -- दावे करते हैं सभी, बदलेंगे तकदीर। अपनी रोटी सेंकते, राजा और वजीर।। -- मनसा-वाचा-कर्मणा, नहीं सत्य भरपूर। आम आदमी मजे से, आज बहुत है दूर।। -- |
शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024
दोहे "नवमी तो श्रीराम की, करती मार्ग प्रशस्त" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- त्यौहारों की शृंखला, लाते हैं नवरात्र।। साफ कीजिए नित्य ही, मन के मैले पात्र।। -- अगर आचरण शुद्ध हो, उज्जवल रहे चरित्र। प्रतिदिन तन के साथ में, मन भी रहे पवित्र।। -- दुर्गा माँ की अष्टमी, देती है सन्देश। जग में पूजा-पाठ का, बन जाये परिवेश।। -- नवमी तो श्रीराम की, करती मार्ग प्रशस्त। बैरी के कर दीजिए, सभी हौसले पस्त।। -- विजयादशमी विजय का, है पावन त्यौहार। उत्सव मानवमात्र के, जीवन का आधार।। -- |
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