-- अपनी भाषा में नहीं, न्यायालय में काज। आजादी से है अभी, मीलों दूर सुराज।। -- इन्द्र देवता आपसे, इतनी है अरदास। उतना पानी दीजिए, जितनी जग को प्यास।। -- भुवन भास्कर जब कभी, ले लेता अवकाश। मेघों से आछन्न हो, तब नीला आकाश।। -- दाता सबका एक है, लेकिन नाम अनेक। लीला उसकी देखकर, है असमर्थ विवेक।। -- राम और रहमान में, लोग कर रहे भेद। इसीलिए तो हो रहे, आपस में मतभेद।। -- देशभक्ति का हो रहा, धीरे-धीरे ह्रास। ऐसी हालत देखकर, मन हो रहा उदास।। -- नहीं बड़ा है देश से, भाषा-धर्म-प्रदेश। भेद-भाव की भावना, पैदा करती क्लेश।। -- |
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शुक्रवार, 16 अगस्त 2024
दोहे "है असमर्थ विवेक" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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