आज विदेशी जाल में, जकड़ा हिन्दुस्तान। दूर गरीबों से हुआ, खादी का परिधान।। चरखे-खादी ने दिया, आजादी का मन्त्र। बन्धक अर्वाचीन में, अपना प्यारा तन्त्र।। देश-भक्ति का हो रहा, पग-पग पर अवसान। दूर गरीबों से हुआ, खादी का परिधान।। करता है सूरजमुखी, सरसों का उपहास। खेतों में बोते नहीं, अब तो लोग कपास। शिकवें और शिकायतें, किससे करें किसान। दूर गरीबों से हुआ, खादी का परिधान।। लोग समझते ही नहीं, कुदरत के संकेत। वसुन्धरा बंजर हुई, सिमट रहे हैं खेत।। आज उर्वरा भूमि पर, बनते भव्य मकान। दूर गरीबों से हुआ, खादी का परिधान।। चाव विदेशों का लगा, नवयुवकों को आज। कोलाहल संगीत में, दबे देश के साज।। आग भले ही बुझ गई, सुलग रहे अरमान। दूर गरीबों से हुआ, खादी का परिधान।। थाली से गायब हुई, हलवा-पूड़ी खीर। पिज्जा-बर्गर शान से, खाने लगे अमीर।। रास नहीं आते हमें, अब देशी पकवान। दूर गरीबों से हुआ, खादी का परिधान।। -- |
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बुधवार, 14 अगस्त 2024
दोहागीत "बन्धक अर्वाचीन में, अपना प्यारा तन्त्र" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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