-- घिर गये बादल गगन में, चल पड़ी पुरवा पवन। पा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।। -- गाँववासी रोपने को धान, खेतों में चले हैं, देख वर्षा को नयन में, अन्न के सपने पले हैं, पड़ रहीं रिमझिम फुहारें, मिट गयी सारी तपन। पा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।। -- आज फिर बालक खुशी से, नाव आँगन में चलाते, भीगना लगता सुहाना, तेज बारिश में नहाते, आज तो नन्हें सुमन भी, कर रहे हैं आचमन। पा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।। -- देखकर काली घटा, सूरज गया छुट्टी मनाने, बया ने भी बुन लिए थे, कुछ निरापद आशियाने, इन जुलाहों की कला को, सभी करते हैं नमन। पा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।। -- |
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शनिवार, 6 जुलाई 2024
गीत "खिलने लगा सूखा चमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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