-- बातों का जिससे कोई बना सिलसिला नहीं शिकवा नहीं हैं उससे जो अब तक मिला
नहीं -- अपनों के दिये जख्म याद रहते उम्र भर गैरों की बात का कभी होता गिला नहीं -- दोस्ती करो तो निभाओ वफा के साथ दो कदम का होता कोई फासला नहीं -- आग के दरिया को पार करना इश्क है आशिक कभी भी हारते हैं हौसला नहीं -- दर्जी में अगर काम का हुनर नहीं भरा जिसने कभी फटा हुआ दामन सिला नहीं -- अब आरती के थाल भी खाली ही रह गये किस काम का गुलशन जहाँ गुंचा खिला नहीं -- महफिल सजेगी क्या भला बिन 'रूप' के वहाँ आबाद बादशाह बिना होता किला नहीं -- |
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सोमवार, 15 जुलाई 2024
ग़ज़ल "गुंचा खिला नहीं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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