-- चतुर्दशी बैकुण्ठ की, है पावन त्यौहार। कलकल-छलछल बह रही, गंगाजी का धार।1। -- नदियों में स्नान को, आये हैं नर-नार। गंगाजी के घाट पर, उमड़ी भीड़ अपार।2। -- गढ़गंगा-हरद्वार में, मेला लगा विशाल। खिचड़ी खाकर लोग सब, सजा रहे चौपाल।3। -- जल में डुबकी मार कर, मना रहे आनन्द। भजन-कीर्तन कर रहे, स्वामी ओमानन्द।4। -- हरे सिँघाड़े बिक रहे, ठेले पर मिष्ठान। गंगा-मेला देखकर, खुश हो रहे किसान।5। -- लोगों को होने लगा, सरदी का आभास। पर्वों का पर्याय है, स्वयं कार्तिक मास।6। -- कम्बल और रजाइयाँ, दिखा रहे हैं रूप। रोज सुबह अब सेंकते, लोग गुनगुनी धूप।7। -- |
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गुरुवार, 14 नवंबर 2024
दोहे "बैकुण्ठ चतुर्दशी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
मंगलवार, 12 नवंबर 2024
दोहे "इगास-देव उत्थान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
-- आया पर्व इगास का, कर लो देव उठान। श्रद्धा से पूजन करो, और करो कुछ दान।। -- दिन है देवोत्थान का, व्रत-पूजन का खास। भोग लगा कर ईश को, तब खोलो उपवास।। -- होते देवउठान से, शुरू सभी शुभ काम। दुनिया में सबसे बड़ा, नारायण का नाम।। -- मंजिल की हो चाह तो, मिल जाती है राह। आज रचाओ हर्ष से, तुलसी जी का ब्याह।। -- पूरी निष्ठा से करो, शादी और विवाह। बढ़ जाता शुभ कर्म से, जीवन में उत्साह।। -- चलकर आये द्वार पर, नारायण देवेश।। आयी है एकादशी, लेकर शुभ सन्देश।। -- खेतों में अब ईख ने, खूब सँवारा रूप। खाने को मिल जायगा, नवमिष्ठान अनूप।। -- पावन-निर्मल हो गया, गंगा जी का नीर। सुबह-शाम बहने लगा, शीतल-सुखद समीर।। -- |
बुधवार, 6 नवंबर 2024
दोहे "उपासना का पर्व" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- उगते-ढलते सूर्य की, उपासना का पर्व। अपने-अपने नीड़ से, निकल पड़े नर-नार। -- |
मंगलवार, 5 नवंबर 2024
दोहे "छठ का है त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--उगते ढलते सूर्य का, छठपूजा त्यौहार।माता जी कलि काल में, सबके हरो विकार।। |
सोमवार, 4 नवंबर 2024
गीत "शीत का होने लगा अब आगमन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- खिल उठे फिर से वही सुन्दर सुमन। छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।। उष्ण मौसम का गिरा कुछ आज पारा, हो गयी सामान्य अब नदियों की धारा, नीर से आओ करें हम आचमन। खिल उठे फिर से वही सुन्दर सुमन। छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।। रात लम्बी हो गयी अब हो गये छोटे दिवस, सूर्य की गर्मी घटी, मिटने लगी तन की उमस, बाँटती है सुख, हमें शीतल पवन। अर्चना-पूजा की चहके दीप लेकर थालियाँ, धान के बिरुओं ने पहनी हैं सुहानी बालियाँ, अन्न की खुशबू से, महका है चमन। खिल उठे फिर से वही सुन्दर सुमन। छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।। -- तितलियाँ उड़ने लगीं बदले हुए परिवेश में, भर गयीं फिर से उमंगे आज अपने देश में, शीत का होने लगा अब आगमन। खिल उठे फिर से वही सुन्दर सुमन। छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।। -- |
रविवार, 3 नवंबर 2024
गीत "भइया दूज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- मेरे भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर, कर रही हूँ प्रभू से यही कामना। लग जाये किसी की न तुमको नजर, दूज के इस तिलक में यही भावना।। -- चन्द्रमा की कला की तरह तुम बढ़ो, उन्नति के शिखर पर हमेशा चढ़ो, कष्ट और क्लेश से हो नही सामना। दूज के इस तिलक में यही भावना।। -- थालियाँ रोली चन्दन की सजती रहें, सुख की शहनाइयाँ रोज बजती रहें, पूर्ण हों भाइयों की सभी साधना। दूज के इस तिलक में यही भावना।। -- रोशनी से भरे दीप जलते रहें, नेह के सिन्धु नयनों में पलते रहें, आज बहनों की हैं ये ही आराधना। दूज के इस तिलक में यही भावना।। -- |
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