-- फिर से उपवन के सुमनों में देखो यौवन मुस्काया है। उपहार हमें कुछ देने को, नूतन सम्वत्सर आया है।। -- उजली-उजली ले धूप सुखद, फिर सुख का सूरज सरसेगा, चौमासे में बादल आकर, फिर उमड़-घुमड़ कर बरसेगा, फिर नई ऊर्जा देने को, नूतन सम्वत्सर आया है।। -- क्रिसमस-दीवाली-ईद, दिलों में खुशियाँ लेकर आयेगी, भूले-बिछुड़ों को अपनों से, आ कर फिर गले मिलायेगी, प्रगति के खुलते द्वार लिए, नूतन सम्वत्सर आया है।। -- पागलपन का उन्माद न हो, हो और न कोई बँटवारा, शस्त्रों की भूख मिटे मन से, फैले जग में भाईचारा, भू का अभिनव शृंगार लिए, नूतन सम्वत्सर आया है।। -- शिक्षा में हो विज्ञान भरा, गुरुओं का आदर-मान रहे, प्राचीन धरोहर बनी रहे, मर्यादा का भी ध्यान रहे, नवल-अमल सुविचार लिए, नूतन सम्वत्सर आया है।। -- शासक अपने खुद्दार बनें, गद्दार न गद्दी को पाये, सारे जग में सबसे अच्छा, गणतन्त्र हमारा कहलाए, झंकृत वीणा के तार लिए, नूतन सम्वत्सर आया है।। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 30 मार्च 2025
"नूतन नवसम्वत्सर आया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 20 मार्च 2025
"कैसे बचे यहाँ गौरय्या" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आज विश्व गौरय्या दिवस है! मित्रों! खेतों में विष भरा हुआ है, ज़हरीले हैं ताल-तलय्या। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या? -- अन्न उगाने के लालच में, ज़हर भरी हम खाद लगाते, खाकर जहरीले भोजन को, रोगों को हम पास बुलाते, घटती जाती हैं दुनिया में, अपनी ये प्यारी गौरय्या। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या?? -- चिड़िया का तो छोटा तन है, छोटे तन में छोटा मन है, विष को नहीं पचा पाती है, इसीलिए तो मर जाती है, सुबह जगाने वाली जग को, अपनी ये प्यारी गौरय्या।। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या?? -- गिद्धों के अस्तित्व लुप्त हैं, चिड़ियाएँ भी अब विलुप्त हैं, खुशियों में मातम पसरा है, अपनी बंजर हुई धरा है, नहीं दिखाई देती हमको, अपनी ये प्यारी गौरय्या।। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या?? -- |
शुक्रवार, 14 मार्च 2025
दोहे "कुछ घण्टों का खेल है, होली में हुड़दंग" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
--
देख खेत में अन्न को, हर्षित हुए किसान।
होली के प्रिय पर्व पर, करते सब अभिमान।।
--
चमत्कार को देखकर, उतर गया उन्माद।
जली होलिका आग में, बचा भक्त प्रहलाद।।
--
होली में करना नहीं, मर्यादा को भंग।
जो लगवायें प्यार से, उन्हें लगाना रंग।।
--
दहीबड़े-पापड़ सजे, गुझिया का मिष्ठान।
रंग-गुलाल लगा सभी, गाते होली गान।।
--
होली के त्यौहार के, बहुत निराले ढंग।
जुगलबन्दियाँ कर रहे, ढोलक और मृदंग।।
--
मद्यपान करना नहीं, कभी न पीना भंग।
दूर करे दुर्गन्ध को, एला और लवंग।।
--
कुछ घण्टों का खेल है, होली में हुड़दंग।
अपनों की मत काटना, उड़ती हुई पतंग।।
--
रंग-बिरंगे हो रहे, गोरे-श्यामल गाल।
हँसी-ठिठोली कर रहे, राधा सँग गोपाल।।
--
कुर्ता होली खेलता, अंगिया के सँग आज।
रँगा प्यार के रंग में, अपना देश-समाज।।
--
गाँजा-भाँग शराब का, होता है उपयोग।
होली के त्यौहार में, बौराये हैं लोग।।
--
होली अब होली हुई, छोड़ गयी सन्देश।
भस्म बुराई को करो, निर्मल हो परिवेश।।
--
बुधवार, 12 मार्च 2025
"देखिये तमाशा होली का" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मित्रों ! आज किसी ने आकर बताया कि कल होली के अवसर पर एक समस्यापूर्ति (तरही-मिसरा) पर आधारित -- "देख तमाशा होली का" अचानक कुछ पंक्तियाँ बन गई हैं आप भी इनका आनन्द लीजिए! मौसम हँसी-ठिठोली का। देख तमाशा होली का।। -- उड़ रहे पीले-हरे गुलाल, हुआ है धरती-अम्बर लाल, भरे गुझिया-मठरी के थाल, चमकते रंग-बिरंगे गाल, गोप-गोपियाँ खेल रहे हैं, खेला आँख-मिचौली का। देख तमाशा होली का।। -- मस्त फुहारें लेकर आया, मौसम हँसी-ठिठोली का। देख तमाशा होली का।। -- पिचकारी बच्चों के कर में, हुल्लड़ मचा हुआ घर-घर में, हुलियारे हैं गली-डगर में, प्यार बसा हर जिगर-नजर में, चारों ओर नजारा पसरा, फागुन की रंगोली का। देख तमाशा होली का।। -- मस्त फुहारें लेकर आया, मौसम हँसी-ठिठोली का। देख तमाशा होली का।। -- डाली-डाली है गदराई, बागों में छाई अमराई, गुलशन में कलियाँ मुस्काई, रंग-बिरंगी तितली आई, कानों को अच्छा लगता सुर, कोयलिया की बोली का। देख तमाशा होली का।। -- मस्त फुहारें लेकर आया, मौसम हँसी-ठिठोली का। देख तमाशा होली का।। -- गीत प्यार का आओ गाएँ, मीत हमारे सब बन जाएँ, बैर-भाव को दूर भगाएँ, मिल-जुलकर त्यौहार मनाएँ, साथ सुहाना मिले सभी को, होली में हमजोली का। देख तमाशा होली का।। -- मस्त फुहारें लेकर आया, मौसम हँसी-ठिठोली का। देख तमाशा होली का।।-- |
शनिवार, 8 मार्च 2025
दोहे "महिला दिवस-नारी दुर्गा-रूप" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- लीक पीटने का कहीं, छूट न जाय रिवाज। मना रहा है इसलिए, महिला-दिवस समाज।। -- जग में अब भी हो रहे, मौखिक जोड़-घटाव। कैसे होगा दूर फिर, लिंग-भेद का भाव। -- नारी की अपनी अलग, कैसे हो पहचान। ढोती है वो उमर भर, साजन का उपनाम।। -- सीमाओँ में है बँधी, नारी की परवाज। नारी की कमनीयता, कमजोरी है आज।। -- सदियों से ही नारि का, होता मर्दन मान। अहंकार का पुरुष में, अब भी भाव प्रधान।। -- केवल पोथी-कलम में, नारी दुर्गा-रूप। मान नहीं उसको मिला, पोथी के अनुरूप।। -- अब तक भी परिवेश में, आया नहीं सुधार। केवल हैं कानून में, नारी के अधिकार।। -- शक्ति-स्वरूपा हो भले, माता का अवतार। नारी की सुनता नहीं, कोई करुण पुकार।। -- आओ महिलादिवस पर, ऐसे करें उपाय। जग में नारी-जाति पर, कहीं न हो अन्याय।। -- |
बुधवार, 5 मार्च 2025
गीत "पौत्र प्राँजल का 26वाँ जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- वासन्ती मौसम में उपवन, खुल करके मुस्काया है। पौत्र प्रांजल ने आँगन को, खुशबू से महकाया है।। -- नेह नीर की पावन सरिता, मेरे मन मॆं बहती है, बीससाल से पाँच मार्च की, प्रबल प्रतीक्षा रहती है, मार्च मास सूनी बगिया में, खुशियाँ लेकर आया है। पौत्र प्रांजल ने आँगन को, खुशबू से महकाया है।। -- जैसे मथुरा नगरी चहक रही है, कान्हा-कृष्ण-मुरारी से, वैसे ही गुंजित है मेरा, सदन सहज किलकारी से, सौम्य-सलौना और खिलौना, बालक मैंने पाया है। पौत्र प्रांजल ने आँगन को, खुशबू से महकाया है।। -- बालक होते हैं जिस घर में, वो लगता गहवारा सा, दादा-दादी को तब मिलता, अभिनव एक सहारा सा, शिवजी ने भी इस अवसर पर, डमरू खूब बजाया है। पौत्र प्रांजल ने आँगन को खुशबू से महकाया है।। -- कल के नन्हे पौधे पर, अब नूतन यौवन आया है, पथ पर जाने वालों को, वो देता अपनी छाया है, जन्मदिवस पर शुभ आशीषों का, यह गीत बनाया है। पौत्र प्रांजल ने आँगन को खुशबू से महकाया है।। -- |
गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025
दोहे "जगतनियन्ता रुद्र" (डॉ-रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गंगा की महिमा सभी, करते हैं स्वीकार। कट जायेंगे पाप सब, हर-हर के हरद्वार।। -- तन-मन के हरने चले, अपने सारे दोष। लगे गूँजने धरा पर, शिवजी के उद्घोष।। -- काँवड़ काँधे पर धरे, चले जा रहे भक्त। सबका पावन चित्त है, श्रद्धा से अनुरक्त।। -- ब्रह्मा, विष्णु-महेश की, गाथा कहें पुराण। भोले बाबा कीजिए, सब जग का कल्याण।। -- पुण्यागिरि के शिखर पर, पार्वती का धाम। नित्य-नियम से लीजिए, माँ दुर्गा का नाम।। -- जगतनियन्ता रुद्र है, दुनिया का आधार। शिवशंकर का नाम ही, करता भव से पार।। -- अपने भारत देश में, कण-कण में हैं राम। राम-नाम के जाप से, बनते बिगड़े काम।। -- |
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...