इक हादसे में उनसे मुलाकात हो गयी। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। देखा उन्हें मगर न कोई बात कर सके, केवल नजर मिली, नजर में बात हो गयी। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। वो भी थे बेकरार और हम भी थे गरजमन्द, दोनो के लिए प्रेम की सौगात हो गयी। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। इक दूजे के जज्बात दोनो तोलते रहे, हम डाल-डाल थे वो पात-पात हो गयी। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। खाई थी खेल में उन्होंने शह हजार बार, जब अन्त आ गया तो मेरी मात हो गई। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। धूप-छाँव के चले थे सिलसिले बहुत, मंजिल के बीच में ही तो बरसात हो गई। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। साया तलाशते रहे हम तो तमाम दिन, केवल इसी उधेड़-बुन में रात हो गई। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। आँखें खुली हसीन ख्वाब टूट गया था, सूरज चढ़ा हुआ था और प्रात हो गई। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। |
---|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 28 जुलाई 2009
‘‘हसीन ख्वाब’’ (डा0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
क्या खूब लपेटा है दादा इस उम्र में लाजबाब...
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र मिश्र जी!
जवाब देंहटाएंकविता या शायरी का
उम्र से भी रिश्ता होता है क्या?
मन पर भी कभी बुढ़ापा आता है क्या?
आपके जज्बात की कद्र करता हूँ।
लेकिन प्रश्न अपनी जगह पर जरूर है।
बहुत सुन्दर रचना।।
जवाब देंहटाएंमेरे खयाल से कविता ताउम्र होती है -- उम्र से इसका रिश्ता नही होता. गुस्ताखी माफ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
मोहक
kamaal ki kaarigari
जवाब देंहटाएंshabdon ki bhi
aur
shilp ki bhi
waah !
waah !
anand aa gaya.............
aapko badhaai antar se
khoob badhaaiji..................
गजब लिखा है !!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!!
जवाब देंहटाएंवाह शाश्त्रीजी सही कहा. दिल हमेशा जवान रहें, बुढापा शरीर को आता है. भावनाएं और मन तो आदमी की अपनी सोच है. शानदार रचना. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत बढ़िया लगा! अत्यन्त सुंदर रचना!
जवाब देंहटाएंkhwab mein hi unke deedar ho gaye
जवाब देंहटाएंbina dekhe bhi nazrein char ho gayin
roj roj milne ki shuruaat ho gayi
shandar likha hai.........khwab wakai bahut haseen hai.
बहुत सुन्दर रचना शास्त्रीजी और रचना से भी अधिक सुन्दर आपका यह जबाब :
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र मिश्र जी!
कविता या शायरी का
उम्र से भी रिश्ता होता है क्या?
मन पर भी कभी बुढ़ापा आता है क्या?
आपके जज्बात की कद्र करता हूँ।
लेकिन प्रश्न अपनी जगह पर जरूर है।