नदिया-नाले सूख रहे हैं, जलचर प्यासे-प्यासे हैं। पौधे-पेड़ बिना पानी के, व्याकुल खड़े उदासे हैं।। चौमासे के मौसम में, सूरज से आग बरसती है। जल की बून्दें पा जाने को, धरती आज तरसती है।। नभ की ओर उठा कर मुण्डी, मेंढक चिल्लाते हैं। बरसो मेघ धड़ाके से, ये कातर स्वर में गाते हैं।। दीन-कृषक है दुखी हुआ, बादल की आँख-मिचौली से। पानी अब तक गिरा नही, क्यों आसमान की झोली से? तितली पानी की चाहत में दर-दर घूम रही है। फड़-फड़ करती तुलसी की ठूँठों को चूम रही है।। दया करो घनश्याम, सुधा सा अब तो जम करके बरसो। रिम-झिम झड़ी लगा जाओ, क्यों करते हो कल और परसों? |
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शनिवार, 25 जुलाई 2009
‘‘अब तो जम करके बरसो, क्यों करते हो कल और परसों?’’(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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तरस रहे हैं नैन सभी के बारिश की बूँदों को,
जवाब देंहटाएंमत तरसायो,अब तो बरसो,
क्यों करते हो अब कल परसो..
सुंदर गीत...धन्यवाद
बहुत सुन्दर रचना है!
जवाब देंहटाएं---
विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
इतना सुंदर लिखा है .. ईश्वर आपकी प्रार्थना अवश्य सुनेंगे !!
जवाब देंहटाएंमतलब वहां भी बारिश नहीं हो रही? सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंतरस रहे हैं नैन सभी के
जवाब देंहटाएंबारिश की बूँदों को,
मत तरसायो,अब तो बरसो,
क्यों करते हो अब कल परसो
मंयम्क जी आजकल सावन खूब बरस रहा है आपकी कलम से बहुत सुन्दर सामयिक रचना है बधाई
नभ की ओर उठा कर मुण्डी, मेंढक चिल्लाते हैं।
जवाब देंहटाएंबरसो मेघ धड़ाके से, ये कातर स्वर में गाते हैं।।
स्वाभाविक और सार्थक रचना
बहुत सुन्दर
काश, अब भी बरस जाए।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
दया करो घनश्याम, सुधा सा अब तो जम करके बरसो।
जवाब देंहटाएंरिम-झिम झड़ी लगा जाओ, क्यों करते हो कल और परसों?
bahut hi sunder geet hai.badhai
बहुत बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ishwar se aasmay prarthna vyarth nhi jati........wo avashya sunenge........bahut hi behtreen likha hai.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएं